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आरम्मणमालिन
तत्थ द्वे मरियादा किलेसमरियादा च आरम्मणमरियादा च, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.62. आरम्मणमालिन त्रि ध्यान के आलम्बनों की माला को धारण करने वाला - लिना पु०, तृ. वि., ए. व. योगिना योगावचरेन आरम्मणमालिना भवितब्ब, मि. प.
358.
आरम्मणरस पु०, तत्पु० स० [आलम्बनरस], आलम्बन का मुख्य कार्य, आलम्बन का आधारभूत गुण, आलम्बन का रस - सं द्वि. वि., ए. व. - इस्सरवताय विस्सविताय सामिभावेन वेदनाव आरम्मणरसं अनुभवति, ध. स. अ. 155; - स्सष. वि., ए. व. - अवसेसधम्मानं आरम्मणरसस्स एकदेसानुभवनं, ध. स. अट्ठ. 156; सानुभवन नपुं. तत्पु० स०, आलम्बन के कार्य अथवा रस का अनुभव - नं प्र. वि., ए. व. - मातरा कम्मे उपनीतकालो विय जवनस्स आरम्मणरसानुभवनं वेदितब्बं ध. स. अदु. 317; - - सेकदेस पु., तत्पु० स०, आलम्बनभूत पदार्थ या धर्म का एक भाग - सं द्वि. वि., ए. व. - सेसधम्मापि आरम्मणरसेकदेसमेव अनुभवन्ति, ध. स. अट्ठ. 156.
आरम्मणवड्डन नपुं., तत्पु० स० [ आलम्बनवर्धन ], आलम्बन की वृद्धि, आलम्बन का विस्तार - नं. प्र. वि., ए. व. - उपचारे वा अप्पनाय वा पत्ताय आरम्मणवड्डून, ध. स. अट्ठ●
239.
आरम्मणवन नपुं, तत्पु० स०, आलम्बन रूपी वन, घने जंगल जैसे रूप आदि आलम्बन - नं. प्र. वि., ए. व. अरञमहावनं विय हि आरम्मणवनं वेदितब्ब, स. नि. अट्ट. 2.87; - ने सप्त. वि., ए. व. - तस्मिं वने विचरणमक्कटो विय आरम्मणवने उप्पज्जनकचित्तं, स. नि. अट्ठ. 2.87. आरम्मणववत्थान नपुं० तत्पु० स० [ आलम्बनव्यवस्थान ], ध्यान के क्रम में आलम्बनों का निर्धारण, आलम्बन-विषयक निश्चय - नं प्र. वि., ए. व. - न च तानि धम्मारम्मणानि भवन्तीति वुत्तनयेनेव ... आरम्मणववत्थानं वेदितब्बं, ध. स. अ. 117; - तो प. वि., ए. व.
आरम्मणववत्थानतोति
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इमेहि चुद्दसहाकारेहि चित्तं परिदमेतब्बं ध. स. अट्ठ 231; पञ्ञा स्त्री०, आलम्बनों का निर्धारण करने वाली प्रज्ञा - य तृ. वि., ए. व. - अपिच खो पन इमेसु सोळससु ठानेसु आरम्मणववत्थानपञ्ञायाति अत्थो, म. नि. अट्ठ ( मू०प०) 1 (1).125. आरम्मणववत्थापन नपुं, उपरिवत् - नं प्र. वि., ए. व. आरम्मणमत्तस्सेव ववत्थापनं आरम्भणववत्थापनं नाम,
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आरम्मणविभावन
विसुद्धि 2.4; स. प. में किरियमनोविञ्ञाणधातुया आरम्भणववत्थापनमत्तकमेव किच्च ध. स. अट्ठ. 309. आरम्मणवार पु.. आलम्बन की बारी, आलम्बन का संप्राप्त क्रम - रो प्र. वि., ए. व. - इति मूलवारो... आरम्मणवारो, समुदयवारोति सब्बेपि दस वारा होन्ति, प. प. अ.
288.
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2.107.
आरम्भणविजाननलक्खण त्रि०, ब० स०, वह जिसका लक्षण आलम्बनों का ज्ञान कराना है। - णं नपुं. प्र. वि., ए. व. - यस्मा पन आरम्मणविजाननलक्खणं चित्तं पटि० म० अ० आरम्मणविभत्ति स्त्री० तत्पु० स० [आलम्बनविभक्ति ] ध्यान प्रक्रिया के सन्दर्भ में आलम्बनों का विभाजन या वर्गीकरण यो' प्र. वि., ब. व. - अत्थि ... तेन भगवता ... आरम्मणविभत्तियो अक्खाता, मि. प. 302; - यो द्वि. वि., ब. व. - अट्टतिंस आरम्मणविभत्तियो, अ. नि. अट्ठ. 3.219; - निद्देस पु०, आलम्बनों के विभाजनों का विवेचनात्मक व्याख्यान, स. उ० प०, में परिचिण्णा. - त्रि., आलम्बनों के विभाजनों के विवेचनपरक व्याख्यान में अभ्यस्त - सा पु०, प्र. वि., ब. व. भिक्खू उळारदेसनापटिवेधा परिचिण्णारम्मणविभत्तिनिद्देसा सिक्खागुणपारमिप्पत्ता, मि.
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प. 313.
आरम्मणविभाग पु०, तत्पु० स० [ आलम्बनविभाग]. क. आलम्बनों का वर्गीकरण, आलम्बनों का पार्थक्यीकरण गो प्र. वि., ए. व. तेसं आरम्भणविभागो जानितब्बो तत्थ विपस्सनाञाणं परित्तमहग्गतअतीतानागतपच्चुप्पन्न अज्झत्तबहिद्धावसेन सत्तविधारम्मणं दी. नि. अट्ठ. 1. 183;
गे सप्त वि., ए. व. आरम्मणविभागे पन विञ्ञाणञ्चायतनं ध. स. अड. 439; ख. आलम्बनों के भेद - गेसु सप्त. वि., ब. व. - आरम्मणविभागेसु पवत्तति कथं पन, अभि. अव. 1143. आरम्मणविभागनिद्देस पु., अभि. अव. के छट्टे परिच्छेद का शीर्षक, जिसमें रूप आदि छ आलम्बनों के प्रभेदों का विवेचन किया गया है, अभि. अव. 50-57; गा. 291
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आरम्भणविभावन नपुं० तत्पु० स०, आलम्बनों का स्पष्टीकरण आलम्बनों का स्पष्ट रूप से प्रकाशन ठान नपुं०, आलम्बनों के सुस्पष्ट प्रकाशन का स्थल - ने सप्त. वि., ए. व. - आरम्मणविभावनट्ठाने चित्तं पुब्बङ्गमं पुरेचारिकं होति, ध. स. अट्ठ. 158.