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आरम्मणपथवी
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आरम्मणमरियादा
में, ध्यानपूर्वक, एकाग्रतापूर्वक, सावधानी से - तत्थ आरम्मणपटिसङ्घाति यं किञ्चि आरम्मणं पटिसङ्काय जानित्वा, खयतो वयतो दिस्वाति अत्थो, विसुद्धि. 2.277. आरम्मणपथवी स्त्री., कर्म. स. (ध्यान के) आलम्बन के रूप में पृथ्वी, एक झान-कसिण के रूप में पृथ्वी - लक्खणपथवी ससम्भारपथवी आरम्मणपथवी सम्मुतिपथवीति चतुबिधा पथवी, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).28; ... आरम्मणपथवी, निमित्तपथवीतिपि, वच्चति,
तदे..
आरम्मणपणीतता स्त्री. भाव., ध्यान के आलम्बन की सूक्ष्मता, आलम्बन का सूक्ष्मभाव - य तृ. वि., ए. व. - आरम्मणपणीतताय पणीतो अतित्तिकरो, अङ्गपणीततायपीति. स. नि. अट्ठ. 3.300. आरम्मणपरिग्गह पु., तत्पु. स. [आलम्बनपरिग्रह], आलम्बनों को अपने अधीन में ले लेना अथवा उन्हें दृढ़ता से ग्रहण कर लेना - रहित त्रि., आलम्बनों के परिग्रह से रहित - तानं च. वि., ब. व. - सोळ ससु ठाने सु आरम्मणपरिग्गहरहितानंयेव तादिसानि सेनासनानि दुरभिसम्भवानि, न तेसु आरम्मणपरिग्गाहयुत्तानं, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).120. आरम्मणपुरेजात 1. नपुं, कर्म, स., पूर्व में उत्पन्न आलम्बन, आलम्बन की पूर्ववर्तिता, पूर्व में उत्पन्न आलम्बन-प्रत्यय - तं प्र. वि., ए. व. - "... सेक्खा वा पुथुज्जना वा चक्खु अनिच्चतो दुक्खतो अनत्ततो विपस्सन्तीति आगतत्ता मनोद्वारे पि आरम्मणपुरेजातं लभतेव, प. प. अट्ठ. 369; 2. नपुं, द्व. स., आलम्बन एवं पूर्ववर्तिता, स. प. के रूप में - बाहिरे सु पन रूपायतन चक्खु सम्फस्सस्स
आरम्मणपुरेजातअत्थिअविगतवसेन चतुधा पच्चयो होति, विभ, अट्ठ. 169. आरम्मणप्पभेद पु., तत्पु. स., आलम्बनों का भेद, आलम्बन का विभाजन - दं द्वि. वि., ए. व. - आरम्मणप्पभेदं पन
अनुगन्त्वा , खु. पा. अट्ट, 198. आरम्मणभाव पु., [आलम्बनभाव]. चित्त-चैतसिकों का आलम्बन होना, आलम्बन होने की स्थिति - वं द्वि. वि., ए. व. - आरम्मणभावं उपगन्त्वा , ध. स. अट्ठ. 89; 95; -- वेन त. वि., ए. व. - आसवानं आरम्मणभावेन पच्चयभूतं, स. नि. अट्ठ. 2.239; - वाय च. वि., ए. व. - कायपटिबद्धो वण्णो परिसस्स चक्खुविआणस्स आरम्मणभावाय उपकप्पति. थेरगा. अट्ठ. 2.236.
आरम्मणभूत त्रि., आलम्बन हो चुका, वह, जो किसी के लिए आलम्बन बन गया है अथवा किसी के ज्ञान का विषय है-ता' पु., प्र. वि., ब. व. - सङ्घारा चेतिता पकप्पिता च आरम्मणभूता होन्ति, पेटको. 307; तस्मा सब्बेपि चित्तचेतसिकानं धम्मानं आरम्मणभूता धम्मा आरम्मणपच्चयो ति वेदितब्बा, प. प. अट्ठ. 345; - ता स्त्री., प्र. वि., ए. व. - पञआपि आरम्मणभूता जेय्यं, नेत्ति. 163; आरम्मणभूता ओय्यन्ति ओय्यतो विसु कत्वा पञआ वुत्ता, नेत्ति. अट्ठ. 388; - ता स्त्री., प्र. वि., ब. व. - ... विपस्सनाय आरम्मणभूता झानसमापत्तियो वृत्ता, पटि. म. अट्ठ. 1.255; - ता' नपुं. प. वि., ए. व. - एवं सो तस्मा चतुत्थज्झानस्स आरम्मणभूता कसिणरूपा निबिज्ज ..., विसुद्धि. 1.317; - तं नपुं॰, प्र. वि., ए. व. - यं किञ्चि आरम्मणभूतं अज्झत्तिकं वा बाहिरं वा, सब्बं तं सतेन असतेन च निद्दिसितब्ब, नेत्ति. 163; आरम्मणभूतन्ति यं किञ्चि आणस्स विसयभूतं रूपादि, नेत्ति. अट्ठ. 388 - त्त नपुं, आरम्मणभूत का भाव. [आलम्बनभूतत्त्व], आलम्बन होना, विषय रहना, स. प. के रूप में वत्था.- चक्षु आदि वत्थुओं का विषयीभाव होना - त्ता प. वि., ए. व. -- वत्थारम्मणभूतत्ता
संघटनवसेन गहेतब्बतो थूलंध. स. अट्ट. 368. आरम्मणभेद पु., तत्पु. स. [आलम्बनभेद], 1. आलम्बनों (रूप आदि विषयों) का वर्गीकरण या भेद-प्रभेद - दो प्र. वि., ए. व. - तस्सा तेसु वृत्तनयेनेव आरम्मणभेदो वेदितब्बो, ध. स. अट्ठ. 432; - देन तृ. वि., ए. व. - झानं नाम यथा पटिपदाभेदेन एवं आरम्मणभेदेनापि चतुबिधं होति, ध. स. अट्ठ. 229; 2. आलम्बनों की विविधता - देन तृ. वि., ए. व. --- आरम्मणभेदेन हि बहुका एता सतियो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).249; आरम्मणभेदेन सतिबहुत्ता बहुवचनं
वेदितब्बं तदे- दे सप्त. वि., ए. व. - आरम्मणभेदे, किच्चभेदे च बहुवचनं होति, सद्द. 3.736; - भिन्न त्रि., तत्पु. स., आलम्बनों के भेद के कारण भिन्न - न्नं पु.. द्वि. वि., ए. व. - छळारम्मणभेदभिन्नं विपस्सनाय विसयं, उदा. अट्ठ. 73; - दाभाव पु., तत्पु. स., आलम्बनों अथवा रूप आदि विषयों में भेद का अभाव - तो प्र. वि., ए. व. - आरुप्पझाने सु पन आरम्मणभेदाभावतो पुरिमकारणद्वयवसेनेव बहुवचनं वेदितब्ब, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).194. आरम्मणमरियादा स्त्री., तत्पु. स., आलम्बन की मर्यादा, रूप आदि विषयों की सीमा, आलम्बन-विषयिणी मर्यादा
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