Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 188
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आरकूट 161 आरक्खगहणत्थ आरकावस्स चेतना आरका पत्थना आरका पणिधि, स. नि. 1(2).88; आरकावस्साति दूरेयेव भवेय्य, स. नि. अट्ठ. 2.98. आरकूट पु./नपुं.. [आरकूट]. तीन प्रकार की मिश्रित धातुओं में एक, पीतल - टो/टं पु./नपुं. प्र. वि., ए. व. - रीरित्थी आरकुटो वा, अभि. प. 492; कंसलोह, वट्टलोहं, आरकुटन्ति तीणि कित्तिमलोहानि नाम, विभ. अट्ठ. 60; तीणि हि कित्तिमलोहानि कंसलोहं, वट्टलोह आरकूटन्ति ... रसकतम्बे मिस्सेत्वा कतं आरकूट कङ्ग्रा. अभि. टी. 390; - मय त्रि., पीतल से बना हुआ - यं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - आरकूटमयं सुवण्णवणं आभरणजातं. स. नि. अट्ठ. 2.177; - लोह नपुं, कर्म, स., तीन प्रकार की मिश्रित लौहधातुओं में से एक - हं प्र. वि., ए. व. - आरकूटलोहन्ति सुवण्णवण्णो कित्तिमलोहविसेसो, विनया. टी. 1.68. आरक्ख'/आरक्खा पु./स्त्री., [आरक्षा, स्त्री.], सुरक्षा, संधारण, देखरेख, रखवाली, निगरानी - क्खो पु., प्र. वि., ए. व. - आरक्खो वा सो ते न भविस्सती ति, पारा. 18; आरक्खोति अन्तो च बहि च रत्तिञ्च दिवा च आरक्खणं, पारा. अट्ठ. 1.162; मच्छरियं पटिच्च आरक्खो , दी. नि. 2.46; - क्खा स्त्री, प्र. वि., ए. व. - आचरियेन। अन्तेवासिम्हि सततं समितं आरक्खा उपट्टपेतब्बा, मि. प. 105; - क्खं स्त्री., द्वि. वि., ए. व. - आरक्खं याचति, पाचि. 301; सत्तानुरक्खणं, महाराज, परित्तं अत्तना कतेन आरक्खं जहति, मि. प. 153; - क्खेन पु., तृ. वि., ए. व. - तं आरक्खेन गुत्तिया सम्पादेस्साम, अ. नि. 2(1).33; -स्स पु., ष. वि., ए. व. - आरक्खस्स, यदिदं मच्छरियं, दी. नि. 2.46; - क्खाय' स्त्री., तृ. वि., ए. व. - भगवतो ओवादे ठितानं एदिसाय आरक्खाय करणीयं, थेरगा. अट्ठ. 1.46; - क्खाय' च. वि., ए. व. - छन्नं इन्द्रियानं आरक्खाय सिक्खति, स. नि. 2(2).179-80; - खे पु., सप्त. वि., ए. व. -- सब्बसो आरक्खे असति, दी. नि. 2.46; स. प. के अन्त., आरक्खत्थाय भण्डस्स, निधानकुसलं नरं, अप. 1.41. आरक्ख' पु.. रक्षा करने वाला, रखवाला, देखरेख रखने वाला - क्खो प्र. वि., ए. व. - रथस्स आरक्खो सारथि नाम योग्गियो, स. नि. अट्ट. 3.158; पिटकत्तयधम्मभण्डस्स आरक्खो रक्खको पालको, अप. अट्ठ. 1.296. आरक्खक त्रि., आ + रक्ख + क से व्यु. [आरक्षक], शा. अ., रखवाला, रक्षा करने वाला, संधारण करने वाला - का पु., प्र. वि., ब. व. - सब्बे आरक्खका देव सुखं यन्तु नवं नवं सद्द. 3.928; आरक्खका पटिच्छन्ना हुत्वा तस्स सन्तिकं आगच्छन्ते ओलोकन्ति, जा. अट्ठ. 4.27; - के पु., द्वि. वि., ब. व. -- पटिसत्तुं निवारेतुं योजेत्वारक्खके जने, चू. वं. 94.8; आरक्खके खग्गेन पहरन्तो, जा. अट्ठ. 4.135; विशेष अर्थ, पु., विहार में नियुक्त रक्षाधिकारी - क्खके द्वि. वि., ब. व. - आरक्खके च हत्थिभण्डे च उपट्टापेसि, अप. अट्ठ. 1.85; - कानं च./ष. वि., ब. व. - लाभग्गामं अदा तस्सारक्खकानं महेसिया, चू. वं. 42. 61; - जेट्ठक पु., तत्पु. स., रक्षा करने वालों के बीच सभी से वरिष्ठ या ज्येष्ठ - को प्र. वि., ए. व. - आरक्खकजेट्ठको एकोव नदन्तो वग्गन्तो पहरित्चा, ..., जा. अट्ठ. 2.278; - देवता स्त्री०, कर्म. स., रक्षा करने वाला देवता, अधिष्ठाता देवता - ता प्र. वि., ब. व. - तेसं सुत्वा आरक्खदेवता धि-कारं अकंसु. स. नि. अट्ठ. 1.192; - पुरिस पु., कर्म स., द्वारपाल, रखवाला, सिपाही - सेहि तृ. वि., ब. व. - चोरो पापधम्मो घरसन्धिं छिन्दन्तो सन्धिमुखे आरक्खकपुरिसेहि गहितो, थेरगा. अठ्ठ 2.253. आरक्खकम्मनाथ पु., व्य. सं., एक प्रधान रक्षाधिकारी का नाम - थं द्वि. वि., ए. व. - आरक्खकम्मनाथं च तथा कञ्चुकिनायक, चू. वं. 72.58. आरक्खकारण/आरक्खाकरण 1. नपुं., रखवाली या सुरक्षा करने का काम, रखवाली, सुरक्षा-कर्म - णं द्वि. वि., ए. व. - उप्पलवण्णस्स आचिक्खि दीपं आरक्खकारणं दी. वं. 9.24; स. प. के रूप में, – आरक्खाकरणत्थाय दक्खिणस्मिं दिसन्तरे, चू. वं. 88.22; 2. - णा प. वि., प्रतिरू. निपा., रखवाली करने के कारण से - आरक्खाधिकरणन्ति आरक्खकारणा, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).369. आरक्खकिच्च नपुं., तत्पु. स. [आरक्षाकृत्य], रक्षा करने का कार्य, रखवाली का काम - च्चं प्र. वि., ए. व. - भगवतो वा आरक्खकिच्चं अत्थीति? स. नि. अट्ट, 2.125. आरक्खगहणत्थ पु., तत्पु. स., निगरानी अथवा देखभाल रखने का प्रयोजन - त्थं द्वि. वि., ए. व., क्रि. वि., निगरानी रखने के लिए - देवदत्तो सत्थरि पदुद्दचित्तो अनत्थम्पि कातुं उपक्कमेय्या ति आरक्खग्गहणत्थं स. नि. अट्ठ. 2.125. For Private and Personal Use Only

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