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आरक्खगोचर
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आरक्खपुरिस
आरक्खगोचर पु., कर्म. स./त्रि., ब. स., अच्छी तरह से रक्षित अथवा नियन्त्रित इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य विषयों का क्षेत्र, इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य रूप आदि ऐसे विषय जिनके ग्रहण के लिए इन्द्रियों के द्वार सुरक्षित कर लिए गए हैं, वह भिक्षु, जिसने अपने इन्द्रिय द्वारों का रूप आदि विषयों के अनियन्त्रित ग्रहण पर नियन्त्रण कर लिया है - रो पु., प्र. वि., ए. व. - यो भिक्खु अन्तरघरं पविट्ठो... न दिसाविदिसा पेक्खमानो गच्छति, अयं आरक्खगोचरो, इतिवु. अट्ठ. 2693; गोचरो पन उपनिस्सयगोचरो आरक्खगोचरो उपनिबन्धगोचरोति तिविधो, उदा. अट्ठ. 182. आरक्खडान नपुं., तत्पु. स. [आरक्षास्थान], 1. सैनिकों अथवा रक्षकों की चौकी, वह स्थान, जहां रक्षक अथवा रक्षासाधन मौजूद हों, 2. रक्षा करने योग्य स्थान - नं' प्र. वि., ए. व. - इदं पन अरओ आरक्खट्टानं नाम सङ्कघाततोपि गरुकतरं पारा. अट्ठ. 1.275; - नं द्वि. वि., ए. व. - अभिपारको अत्तनो आरक्खट्टानं गच्छन्तो, जा. अट्ठ. 5.201; - ने सप्त. वि., ए. व. - आरक्खट्ठाने बहि सुनखानं
ओकासो नत्थि, जा. अट्ट, 1.176. आरक्खति आ + रक्ख का वर्त, प्र. पु., ए. व. [आरक्षति]. रक्षा करता है, संधारण करता है, निगरानी रखता है, देखभाल करता है - तो पु., वर्त. कृ., ष. वि., ए. व. - तस्स एवं आरक्खतो गोपयतो ते भोगा विप्पलज्जन्ति, महानि. 113; - क्खिं अद्य., उ. पु., ए. व. - नारक्खिं मम जीवितं, चरिया. (पृ.) 390; जीवितं पन नारक्खिं चरिया. अट्ट, 141; - क्खितुं निमि. कृ. - आरक्खितुं जनपदं सम्पन्नबलवाहनं, म. वं. 24.2; आरक्खितुं जनपदं ति आदमिळपरिस्सया आदीघवापितो वा ओरं रोहणजनपद रक्खणत्थाय राजपुत्तं तिस्स दीघवापिम्ह वासयी ति अत्थो, म. वं. टी. 422 (ना.). आरक्खदायक पु., व्य. सं., एक स्थविर का नाम, अप. की कतिपय गाथाओं का रचयिता एक कवि-स्थविर - इत्थं सुदं आयस्मा आरक्खदायको थेरो इमा गाथायो अभासित्थाति,
अप. 1.225; अप. 1.272. आरक्खदुक्खमूल नपुं.. तत्पु. स., रक्षा करने के दुख की
जड़, रखवाली करने अथवा नियंत्रित करने के दुख का मूल कारण - लं नपुं. प्र. वि., ए. व. - आरक्खदुक्खमूलं
उपादानं सम्पत्तविसयग्गहणभावतो, विसुद्धि. महाटी. 2.308. आरक्खदेवता स्त्री०, कर्म. स., अधिष्ठाता देवता, रक्षक देवता - ता प्र. वि., ब. व. - ततो आरक्खदेवता,
अथापि परचित्तविदुनियो देवता, पारा. अट्ठ. 1.165; आरक्खदेवताति तस्स आरक्खत्थाय ठिता देवता, सारत्थ. टी. 2.13. आरक्खन/आरक्खण नपुं., आ + रक्ख से व्यु., क्रि.
ना. [आरक्षण], रखवाली, सुरक्षा, देखभाल - णं' प्र. वि., ए. व. - आरक्खोति अन्तो च बहि च रत्तिञ्च दिवा च आरक्खणं, पारा. अट्ठ. 1.162; - णं' द्वि. वि., ए. व. - उप्पन्नानं भोगानं आरक्खणञ्च करोति परिभोगनिमित्तञ्च, नेत्ति. 36; - णे सप्त. वि., ए. व. - आरक्खणे असन्तम्हि, लद्धं लद्ध विनस्सति, अभि. अव. 884; - त्थ पु., रक्षा का प्रयोजन - त्थाय च. वि., ए. व. - बोधिसत्तस्स आरक्खणत्थाय उपगन्त्वा सिरीगभं पविट्ठा, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.131; - द्वान नपुं.. तत्पु. स. [आरक्षणस्थान], रक्षा प्रदान करने का स्थान, रक्षा करने योग्य स्थान, नियन्त्रित करने योग्य विषय - नं प्र. वि., ए. व. - इदमारक्खणट्ठानं गरुकं सुङ्कघाततो, विन. वि. 172. आरक्खनिमित्त नपुं, तत्पु. स., संधारण अथवा संरक्षण वाला कारण, सुरक्षित बनाए रखने का कारण - उप्पन्नानं भोगानं आरक्खनिमित्तं परिभोगनिमित्तञ्च, पमादं आपज्जति ...., नेत्ति. 35. आरक्खनिरोध पु., तत्पु. स. [आरक्षानिरोध], रखवाली अथवा निगरानी की समाप्ति या अन्त -धा प. वि., ए. व. - सब्बसो आरक्खे असति आरक्खनिरोधा, दी. नि. 2.46. आरक्खपच्चुपट्ठान त्रि., ब. स., सुरक्षा अथवा संधारण के रूप में उदित होने वाला, सुरक्षा को उपस्थित कराने वाला - ना स्त्री., प्र. वि., ए. व. - सति ... आरक्खपच्चुपट्टाना, विसुद्धि. 1.156; किलेसेहि आरक्खा हुत्वा पच्चुपतिद्वति, ततो वा आरक्खं पच्चुपट्टपेतीति आरक्खपच्चुपट्टाना, विसुद्धि. महाटी. 1.175. आरक्खपत्ति स्त्री., तत्पु. स., सुरक्षा की संज्ञा, संरक्षण
का नाम - त्ति प्र. वि., ए. व. - आरक्खपत्ति कुसलानं धम्मानं, नेत्ति. 51. आरक्खपरिवार पु., तत्पु. स., अङ्गरक्षक, रक्षकों का घेरा - रेन तृ. वि., ए. व. – तत्थ अभिसरेनाति आरक्खपरिवारेन,
जा. अट्ठ. 5.370. आरक्खपुरिस पु., कर्म. स., रक्षा करने वाला पुरुष, संरक्षक, सिपाही, सैनिक - सो प्र. वि., ए. व. - आरक्खकपुरिसोपि सयितो कुमारो, सु. नि. अट्ठ. 1.83; - सा प्र. वि., ब. व. - पुनदिवसे आरक्खपरिसा आगन्वा
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