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आरद्ध
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आरद्धविपस्सक
पारा. अट्ठ 1.103; - द्धे पु., सप्त. वि., ए. व. - अञ्जस्मि परियाये आरद्धे, ध. स. अट्ट, 189; - द्धाय' स्त्री., सप्त. वि., ए. व. - 'कित्तका विहारे समणाति गणनाय आरद्धाय, स. नि. अट्ठ. 3.83; - द्धाय स्त्री., ष. वि., ए. व. - मधुरस्सरेन आरद्धाय धम्मदेसनाय सदं सुत्वा, अ. नि. अट्ठ. 3.258; - द्धा पु.. प्र. वि., ब. व. - चत्तारो इद्धिपादा आरद्धा, स. नि. 3(2).328; -द्धायो स्त्री., द्वि. वि., ब. व. - अत्तानं उद्दिस्स अत्तनो अत्थाय आरद्धायोति अत्थो, पारा. अट्ठ. 2.134; - द्धापरिसमत्त त्रि., व्या. के विशेष सन्दर्भ में प्रयुक्त, प्रारम्भ कर दिया गया परन्तु समाप्त नहीं हो सका - त्ते पु., सप्त. वि., ए. व. - वत्तमाने आरद्धापरिसमत्ते अत्थे, मो. व्या. 6.1. आरद्ध त्रि., आ + vराध से व्यु.. भू. क. कृ. [आराद्ध], शा.
अ., अनुष्ठित, निष्पन्न, सम्पन्न हो चुका, पूर्ण हो चुका, तैयार हो चुका, प्राप्त हो चुका, ला. अ., प्रसन्न, सन्तुष्ट -द्धो पु., प्र. वि., ए. व. - अयञ्चेव लोको आरद्धो होति परो च लोको, दी. नि. 3.137; आरद्धो होति परितोसितो चेव निफादितो च, दी. नि. अट्ठ. 3.114; आरद्धो होतीति संसाधितो होति..., दी. नि. टी. 3.116; -द्धा स्त्री., प्र. वि., ए. व. - या उद्दिसित्वा आरद्धा, इद्धा विनयवण्णना, परि. अट्ठ. 267; -द्धं नपुं..प्र. वि., ए. व. - अमतं तेसं. ... आरद्धं, अ. नि. 110.61; आरद्धन्ति परिपुण्णं, अ. नि.
अट्ठ. 1.404. आरद्ध' आ + vराध का पू. का. कृ. [आराध्य], प्राप्त करके, पूर्ण करके, सन्तुष्ट होकर, प्रसन्न होकर - आरद्ध,
आरभित्वा/आराधित्वा, क. व्या. 602. आरद्धकम्मट्ठान त्रि., ब. स. [बौ. सं. आरब्धकर्मस्थान], ध्यान के कर्म स्थानों (आलम्बनों) को ग्रहण करने का काम प्रारम्भ कर चुका (साधक)- स्स पु., ष. वि., ए. व. - "आरद्धकम्मट्ठानस्स भिक्खुनो कम्मट्ठानकारको अय"न्ति
जानित्वा ..., विसुद्धि. 1.97. आरद्धकम्मन्त नपुं.. कर्म. स., प्रारम्भ कर दिया गया काम, हाथ में ले लिया गया काम - न्ता प्र. वि., ब. व. - सब्बेसं आरद्धकम्मन्ता च इच्छिता च अत्था सिद्धिमगमंसू. बु. वं. अट्ठ. 256.. आरद्धकाल पु., तत्पु. स., वह समय जब कार्य का आरम्भ किया गया है - तो प. वि., ए. व. - आरद्धकालतो पढ़ाय तुरिततुरितो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).151; आरद्धकालतो पट्ठाय परिभोगं अकासि, स. नि. अट्ठ. 3.24; - ले सप्त.
वि., ए. व. - ञा आरद्धकाले... पञ्च धातुयो निय्यादेसि,
सा. वं. 88(ना.). आरद्धचित्त त्रि., ब. स. [आराद्धचित्त, प्रसन्न अथवा
आनन्दित चित्त वाला, सन्तुष्ट चित्त वाला - त्तो पु.. प्र. वि., ए. व. - आरद्धचित्तो उपसम्पदं अनुजानि, पारा. अट्ठ. 1.190; आरद्धचित्तोति आराधितचितो, सारत्थ. टी. 2.46; - तेन पु., तृ. वि., ए. व. - आरद्धचित्तेन भगवता अनुज्ञातउपसम्पदा..., थेरगा. अट्ठ.2.453; - त्ता पु.. प्र. वि., ब. व. -- आरद्धचित्ता भिक्खू पब्बाजेन्ति, उपसम्पादेन्ति भिक्खुभावाय, दी. नि. 1.159; आरद्धचित्ताति अढवत्तपूरणेन तुट्टचित्ता, दी. नि. अट्ठ. 1.269. आरद्धञ्जस नपुं., कर्म. स., ऐसा सीधा मार्ग, जिस पर चलना प्रारम्भ कर दिया गया है, गृहीत सरल मार्ग - सा तृ. वि., ए. व. - तेनारद्धञ्जसा धीरो याचित्वान पदेसक, जिन. च. 41(रो.). आरद्धत्त नपुं., आरद्ध का भाव., सन्तुष्टि, आनन्द या हर्ष से परिपूर्ण होना - त्ताय च. वि., ए. व. - आरद्धत्तायेव च
मे तं असल्लीनं अहोसि, पारा. अट्ट, 1.103. आरद्धबलवीरिय त्रि०, ब. स., प्रबल शक्ति एवं उत्साह से भरपूर, सुदृढ़ बल एवं वीर्य से युक्त - यो पु., प्र. वि., ए. व. - सतिमा पञ्जवा भिक्खु, आरद्धबलवीरियो, थेरगा. 165; सद्धादिबलानञ्चेव चतुबिधसम्पप्पधानवीरियस्स च
संसिद्धिपारिपुरिया आरद्धबलवीरियो, थेरगा. अट्ठ 1.316. आरद्धभाव पु., कर्म. स. [आरब्धभाव], आरम्भ कर देने की
अवस्था, प्रारम्भ कर देना - वं द्वि. वि., ए. व. - तेसं विपस्सनाय आरद्धभावं ञत्वा, अ. नि. अट्ठ. 1.34. आरद्धभावन त्रि., ब. स., वह, जिसने ध्यानभावना करना प्रारम्भ कर दिया है - स्स पु., ष. वि., ए. व. - अरहत्तं पापुणितुं आरद्धभावनस्स कायपरिळाहादीनं उप्पत्तिं वारेत्वा ..., स. नि. अट्ठ. 3.237. आरद्धयञ्ज पु., कर्म. स. [आरब्धयज्ञ], प्रारम्भ कर दिया गया यज्ञ, अनुष्ठित किया जा रहा यज्ञ-विधान - जो प्र.
वि., ए. व. - भिक्खूहि रुओ आरद्धयओ तथागतस्स __ आरोचितो, स. नि. अट्ठ. 1.124. आरद्धविपस्सक त्रि., ब. स., विपश्यना-ध्यान को आरम्भ कर चुका (साधक), सुदृढ़ भाव से विपश्यना की भावना करने वाला (साधक), विपश्यना में शिक्षाप्राप्ति की अवस्था में विद्यमान (आर्यश्रावक) – को पु., प्र. वि., ए. व. - यस्साधिगमा आरद्धविपस्सको ति सङ्घ गच्छति, चूळनि.
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