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आदिअक्खर
साधारणदारस्सा तिआदिवचनं अब्रदि जा. अट्ट. 7.180 स. उ. प. के रूप में द्रष्ट. उणा, संयोगा के अन्त.. आदिअक्खर नपुं॰, कर्म. स. [आद्यक्षर], प्रथम अक्षर, वर्ग या पंक्ति का प्रथम अक्षर रानि प्र. वि., ब. व. - एकेक गाथं यत्थुकामेहि उच्चारितानं तासं गाधानं आदिअक्खरानि पे. व. अट्ठ. 244.
आदिअत्थ त्रि. ब. स. [ आद्यर्थक ] आदि के अर्थ को प्रकट करने वाला (शब्द) त्थो पु. प्र. वि. ए. व. इतिसद्दो आदिअत्थो पकारत्थो वा उदा. अड. 174. आदिअन्तवन्तता स्त्री, आदिअन्तवन्तु का भाव, आदि
प्रारम्भ तथा अन्त से युक्त रहना, उदय एवं व्यय के स्वभाव वाला होना - यतृ. वि., ए... य तृ. वि. ए. व. आदिअन्तवन्ततायाति आदिअन्तवन्ततायात पुब्बापरकोटिवन्तताय उदयब्बय धम्मतोति अत्थो विसुद्धि महाटी. 2.370.
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आदिआगम पु. तत्पु. स. [आद्यागम]. किसी भी शब्द के प्रारम्भ में किसी वर्ण का आगम मो प्र. वि., ए. व. आदिआगमो तावदुत्तो भगवता मुत्तमो इच्चेवमादि, क.
व्या. 406.
आदिआदेस पु., तत्पु० स० [आद्यादेश ], किसी शब्द के प्रारम्भ में किसी वर्ण के स्थान पर आया हुआ अन्य वर्ण - सो प्र. वि., ए. व. आदिआदेसो ताव - यूनं इच्चेवमादि, क. व्या. 406.
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आदिकं त्र [आदिक] 1. प्रथम प्रारम्भ का सबसे पहला, इत्यादि के नपुं द्वि. वि. ए. व. पञ्चसतेहि पुत्तेहि - फल पापुणि आदिक, म. के. 12.21; फलं पापुणि आदिकं ति सपुत्तदारो सोतापत्तिफलं पापुणी ति, म. वं. टी. 274 (ना०); - का स्त्री. प्र. वि. ब. व. "न मे आचरियो अत्थी "ति आदिका गाथायो च वित्थारेतब्बा, विसुद्धि० 1.199;
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आदिकम्मिक
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धातुअत्थेन नियोजनञ्चाति इमं तिविधं लक्खणं सङ्गण्हाति, विसुद्धि. महाटी 1.239; - को पु. प्र. वि. ए. क. - नयेन वृत्तो अविज्जादिको पच्चयाकारी, उदा. अड. 31: का स्त्री० प्र० वि०, ब० व. उप्पलवण्णाथेरिआदिका महासाविका अनेकेहि भिक्खुनिसतेहि म. नि. अट्ठ (मू.प.) 1(2)98 स्सष. वि., ए. व. वृत्तो अनापत्तिनयो - पनेवं, अक्तुकामस्स तथादिकस्स विन. वि. 310 कानं ष. वि०, ब० व. बीजरुक्खादिकानंव, पुब्बा कोटि न नायति, अभि. अव 1249 - - केसु सप्त. दि. ब. व. - पुब्बे दुक्खादिकेसु च अप. 2.284 के सप्त. वि., ए. व. उपसग्गो दिस्सति पादिकेपि च अभि. प. 1033. आदिकत्तु पु०, कर्म. स. [ आदिकर्तृ] किसी भी काम को अथवा किसी भी प्रवृत्ति को प्रारम्भ करने वाला, कर्म की उत्पत्ति को प्रारम्भ करने वाला त्ता प्र. वि., ए. व.
अकुसलानं धम्मान आदिकत्ता पुब्बङ्गमो पारा 22 आदिकत्ता पुष्बङ्गमोति सासनं सन्धाय वदति, पारा, अg. 1.171. आदिकम्प पु. कर्म. स. [आदिकल्प] प्रथम कल्प, संसार की सृष्टि प्रक्रिया का पहला युग म्हि सप्त. वि., ए. व. आदिकप्यम्हि राजूनं दस्सेन्तो चरियं विय चू. व.
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आरम्भ करने का अर्थ केन तृ. वि. ए. व. क्रि. वि. प्रारम्भ में ही तुरन्त ही. प्रथम प्रयोग में ही सधे भन्ते न सक्कुणेग्यं आदिकेनेव आहतुं म नि. 2.64: आदिकेनेव ओपिलवतीति एत्थ आदिकेनाति आदानेन गहणेन, स० नि० अट्ठ. 2.179; 2. स. उ. प. में, त्रि, आदि शब्द के ही अर्थ में, इत्यादि क नपुं. प्र. वि. ए. व. - यं मनुस्सानं वोहारूपगं अलङ्कारपरिभोगूपगञ्च जातरूपरजतमुत्तामणिवेळुरिय पवाळलोहितङ्कमसारगल्लादिक खु. पा. अड. 136 कंर पु०, द्वि. वि., ए. व. तत्थ वण्णागमो वण्णविपरिययोतिआदिकं निरुत्तिलक्खणं गहेत्वा ..... , विसुद्धि. 1.202: आदिकन्ति आदिसदेन वण्णविकारो वण्णलोपो
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51.2.
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आदिकम्म नपुं. कर्म, स.. 'आ' एवं 'प उप के अर्थों के व्याख्यानक्रम में प्रयुक्त [ आदिकर्मन् ], शा. अ. किसी कर्म का प्रारम्भ, किसी भी कर्म का प्रारम्भिक चरण, विशेष अर्थ, ध्यान-भावना का प्रारम्भिक चरण आभिमुख्यसमीपादिकम्मालिङ्गनपत्तिसु अभि. प. 1180 आदिभूतं योगकम्मं आदिकम्मं विसुद्धि महाटी. 2.4 म्मे सप्त वि. ए. व. आदिकम्मे भुसत्थे च सम्भवो तिष्ण तितिसु अभि. प. 1162:
त्थ पु., तत्पु० स०, कर्म को त्थे सप्त वि. ए. व. आदिकम्मत्थे प-कारो दडब्बो पटि म. अड. 1.249. आदिकम्मिक आदिकम्म से व्यु [आदिकर्मिक ]. शा. अ., कर्म को पहले पहल करने वाला, किसी कर्म को प्रारम्भ से ही करने वाला, किसी काम की नई नई शुरुआत करने वाला, ला. अ. (विनय के विशेष सन्दर्भ में ) विनय - आपत्ति में आपतित होने वाला, सहकर्म का प्रारम्भ कराने वाला को पु. प्र. वि. ए. क. अदिन्नपुब्बमसं भविस्सं आदिकम्मिको अप. 1.332; पुबे अभावितभावनो आदिकम्मिको योगावचरो इद्धिविकुब्बनं सम्पादेस्सतीति, ध. स. अट्ठ 231; तस्मिं वत्थुस्मि'न्ति परिवारे आगतत्ता
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