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आनन्तरियक
सद्यः विपाक देने
से
कं
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आनन्तरियक त्रि आनन्तरिय से व्यु वाले पांच प्रकार के गम्भीर पाप कर्मों युक्त अथवा इन्हे करने वाला का पु०, प्र. वि., ब.व. एवमिमस्मिं दुके ये च पुग्गला पञ्चानन्तरियका प. प. अ. 36 – क नपुं. द्वि. वि. ए. व. आनन्तरियवत्थुस्मिं, आनन्तरियकं वदे विन. वि. 286 आनन्तरियकं कम्म, आपज्जति कथं नरो, उत्त. वि. 741; मातरं पितरं हन्त्वा, नान्तरियकं फुसे, उत्त वि. 744.
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आनन्द पु. [ आनन्द ]. प्रसन्नता, हर्ष, आह्लाद सन्तुष्टि का भाव, प्रीतिभाव दो प्र. वि. ए. व. आनन्दो पमुदामोदा
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सन्तोसो नन्दि सम्मदो, अभि. प 87; तत्र तुम्हेहि न आनन्दो, न सोमनस्सं न चेतसो उप्पिलावितत्तं करणीयन्ति मि. प. 178; को न हासो किमानन्दो निष्य नु पञ्जलिते सति, ध० प० 146; आनन्दो च पमोदो च सदाहसितकीळितं मातरं परिचरित्वान, लब्ममेतं विजानतो, जा॰ अट्ठ॰ 5.324; महाराजकुले तस्मिं आनन्दो च महा अहु म. वं. 22.59; न्दं द्वि. वि. ए. व. आनन्दं तुद्धिं जननतो आनन्दो नाम पच्चेकबुद्धोति अत्थो, अप. अड. 2. 183; स. उ. प. के रूप में, गिरिमा. पु.. व्य. सं. एक स्थविर का नाम दो प्र. वि., ए. व. तेन खो पन समयेन आयस्मा गिरिमानन्दो आवाधिको होति दुक्खतो बाळ्हगिलानो, अ. नि. 3 ( 2 ) .90 निरा. - त्रि.. ब. स. [निरानन्द]. आनन्दरहित, प्रसन्नता से रहित दो पु प्र. वि. ए. व. तत्थ सेसिं निरानन्दो अनूना दस रत्तियो, जा. अट्ठ. 5.65; स० पू० प० के रूप में, कर त्रि. [ आनन्दकर] आनन्द का भाव उत्पन्न करने वाला, मन में प्रमोद भर देने वाला रं पु०, द्वि. वि., ए. व. ते थेरा थेरमानन्दं आनन्दकरमब्रवु, म. वं. 3.23; छण पु.. आरुन्ददायक महोत्सव या क्रियाकल्प - णं द्वि० वि०, ए. व.- कञ्चनलताविनद्धं आनन्दभेरिं चरापेत्वा आनन्दछणं आचरिंसु जा. अg. 7.375; जनन त्रि. आनन्द को उत्पन्न कर देने वाला नी स्त्री. प्र. वि. ए. व. येन जातासि कल्याणी, आनन्दजननी मम दी. नि. 2.195; 197; ने पु.. सप्त. कि. ए. व. सत्तमो अभिसम्बुद्धे सत्थरि सक्यकुलानन्दजनने भगवन्तं अनुपब्बजन्ता निक्खमिंसु मि. प. 117 जात आनन्द से भरपूर, त्रि, प्रमुदित प्रफुल्ल तो पु०, प्र. वि., ए. व. आनन्दीति आनन्दजातो, जा. अट्ठ. 5.488; - ते पु०, ० वि., ब.व. आनन्दजाते तिदसगणे पतीते, सक्कञ्च
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तत्थ
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आनन्द
मेरी स्त्री..
इन्द सुचिवसने च देवे, सु. नि. 684; आनन्द उत्पन्न करने वाला नगाड़ा - रिं द्वि. वि., ए. व. कञ्चनलता विनद्धं आनन्दभेरिं चरापेत्वा आनन्दछणं आचरिंसु जा. अ. 7.375 आनन्दमेरिकालोयं, किं वो अस्सूहि पुत्तिका, अप. 2.201 - रूप त्रि. ब. स. आनन्द से परिपूर्ण स्वभाव वाला, प्रमुदित प्रकृति से युक्त पो पु.. प्र. वि. ए. व. आनन्दो वत भो, आनन्दरूपो वत भो हेतुरूपं मन्ते म. नि. 2.339: आनन्दरूपोति आनन्दसभावो म. नि. अट्ट. (म.प.) 2.257; सोमनस्स नपुं, द्व० स०, आनन्द एवं सौमनस्य - स्सा प्र० वि०, ब० व. - पियजातिका हि खो भन्ते आनन्दसोमनस्सापियप्पभविका 'ति, म. नि. 2.316; 317.
आनन्द' पु॰, व्य॰ सं॰, बुद्ध के प्रमुख उपट्टाक (परिचारक ) शिष्य न्दो प्र. वि. ए. व. धम्मभण्डागारिको च आनन्दो द्वे समाथ च अभि. 436 क. जन्म से सम्बन्धित विवरण के लिए द्रष्ट, अ. नि. अट्ठ 1.219-226; थेरगा. अट्ठ. 2.349-363; अप. अट्ठ. 1.316-322; ख. बुद्ध के चचेरे भाई, पिता अमितोदन तथा माता मृगी सक्यकुलप्पसुतो चायं आयस्मा तथागतस्स भाता चूळपितपुत्तो पारा. अड. 1.7; खु. पा. अड. 75; आनन्दत्थेरो अमितोदनस्स, सो भगवतो कनिट्ठो, म. नि. अट्ठ. ( मू.प.) 1 (1).373; ग. बुद्ध की शरण जाने वाले छ शाक्यकुलीन क्षत्रिय कुमारों में एक
च,
छ यिमे, महाराज, खत्तियकुमारा भद्दियो च अनुरुद्धो च आनन्दो च भगु च किमिलो छ मि. प. 117: घ. उनके उपाध्याय का नाम बेलट्ठसीस आयस्मतो आनन्दस्स उपज्झायस्स आयस्मतो बेलसीसस्स बुल्लकच्छाबाधो होति महाव, 277; ख. बुद्ध के बहुश्रुत एवं स्मृतिमान् शिष्यों में अग्रगण्य एतदग्गं, भिक्खवे मम सावकानं भिक्खून बहुस्सुतानं यदिदं आनन्दो... अ. नि. 1 (1)-33: च. पूर्व-जन्मों की अनुस्मृति के अभिज्ञाबल से सम्पन्न आयस्मा च आनन्दो... जातिस्सरा जातिं सरन्ति एवं अभिजानतो सति उप्पज्जति मि. प. 86: छ. शारिपुत्र के साथ प्रगाढ़ स्नेह सारिपुत्तत्थेरो व आनन्दत्थेरो च अज्ञमज्ञ ममायिंसु दी. नि. अड. 3.82 तुम्हम्प नो आनन्द, सारिपुत्तो रुच्चतीति स. नि. 1 (1) 78 ज. आनापानसति इद्धि कल्याणमित्र, निरोध, बोज्झङ्ग, लोक, वेदना, चार सतिपद्वानों, सुज्ञ तथा बुद्ध के मौन के विषय में बुद्ध के साथ संलाप एवं प्रश्न एकमन्तं निसिन्नो खो आयस्मा आनन्दो भगवन्तं एतदवोच- 'अत्थि नु खो, भन्ते,
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