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आपुत्तपुत्तेहि
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आपोधातु
आपुत्तपुत्तेहि अ, पुत्रों के भी पुत्रों तक - आपुत्तपुत्तेहि आलम्बनभूत आप-धातु - णं' प्र. वि., ए. व. - तत्थ यञ्च पमोदथव्होति, जा. अट्ठ. 4.146; आपुत्तपुत्तेहीति याव पुत्तानम्पि पथवीकसिणं यञ्च आपोकसिणं एवं सब्ब, नेत्ति. 74; पुत्तेहि पमोदथ, नत्थि वो इमस्मि ठाने भयन्ति, जा. अट्ठ. आपोकसिणन्ति आपोकसिणज्झानं आपोकसिनकम्मट्ठानं वा, 4.146.
विसुद्धि. महाटी. 1.183; आपोकसिणं अभिज्ञेय्यं पटि. म. आपुस्सदत्त नपुं., आप + उस्सद का भाव., जलमयता, 7; - णं द्वि. वि., ए. व. - आपोकसिणमेको सञ्जानाति तरलता से भरपूर रहने की दशा - त्ता प. वि., ए. व. -- ..... दी. नि. 3.214; - णे सप्त. वि., ए. व. - इदानि चक्टुं ... आपुस्सदत्ता पग्घरति, ध. स. अट्ठ. 342. पथवीकसिनणानन्तरे आपोकसिणे वित्थारकथा होति, विसुद्धि. आपूपिक त्रि०, अपूप से व्यु. [आपूपिक], पुओं को खाने 1.163; - समापत्ति स्त्री., तत्पु. स. [बौ. सं. आपकृ वाला - कं नपुं., प्र. वि., ए. व. - णिक - अचित्ता, स्नसमापत्ति], आप-धातु के कर्मस्थान पर चित्त की एकाग्रता आपूपिकं, संकुलिक मो. व्या. 4.68; - को पु.. प्र. वि., वाले ध्यान की प्राप्ति - या ष. वि., ए. व. - पकतिया ए. व. - आपूपिको ति एत्थ अपूपसद्देन अपूपखादनं विय आपोकसिणसमापत्तिया लाभी होती, ति, पटि. म. 378; - ...., सारत्थ. टी. 1.71; ... अपूपभक्खनसीलो आपूपिको ति, णारम्मण नपुं., तत्पु. स. [बौ. सं. आपकृत्स्नालम्बन]. विभ, मू. टी. 68.
ध्यान-प्रक्रिया के क्रम में आप-धातु का आलम्बन - णं द्वि. आपूरति आ + पुर/पूर का वर्त, प्र. पु., ए. व. [आपूर्यते], वि., ए. व. - महानदि ओलोकेत्वा आपोकसिणारम्मणभरपूर हो जाता है, पूर्ण हो जाता है, ऊपर तक भर जाता झानं निब्बत्तेत्वा, जा. अट्ट, 1.300. है, बढ़ जाता है, वृद्धि को प्राप्त करता है - आपूरति यसो आपोकाय पु., तत्पु. स. [बौ. सं. आपकाय], आप-धातु, तरस, सुक्कपक्खेव चन्दिमाति, दी. नि. 3.138; जा. अट्ठ.. आपस्कन्ध के समुच्चय रूप में आप-महाभूत-यो प्र. वि., 4.25; उदेति आपूरति वेति चन्दो, जा. अट्ठ. 3.133; - ए. व. - कतमे सत्त?, पथवीकायो, आपोकायो, तेजोकायो, रामि उ. पु., ए. व. - तथा अहम्पि अज्ज तया दिन्नेहि वायोकायो, सुखे, दुक्खे, जीवे सत्तमे, दी. नि. 1.50; - यं गामवरादीहि आपूरामी ति, जा. अट्ठ. 4.90; - थ अद्य, प्र. द्वि. वि., ए. व. - आपो आपोकायं अनुपेति अनुपगच्छति, पु., ए. व. - आपूरथ तेन मुहत्तकेन, जा. अट्ठ. 4.399. दी. नि. 1.49. आपूरेति आ +vपूर का प्रेर., वर्त., प्र. पु., ए. व. [आपूरयति], आपोगत त्रि., जल की अवस्था में विद्यमान, आप के स्वभाव भर देता है, परिपूर्ण कर देता है - न्तो पु., वर्त. कृ., प्र. को प्राप्त, जलमय, पानीदार, पनीला, पनसर – तं नपुं., वि., ए. व. - महता जयघोसेन आपूरेन्तो दिसादिसं, चू. प्र. वि., ए. व. - यं अज्झतं पच्चत्तं आपो आपोगतं वं. 72.300; भेरिकाहलनादेन आपरेन्तं दिसादिसं. च. वं. उपादिन्नं, म. नि. 1.247; आपोधातनिहेसे आपोगतन्ति 75.104.
सब्बआपेसु गतं अल्लयूसभावलक्खणं, म. नि. अट्ठ. आपेति ।आप का प्रेर., वर्त., प्र. पु., ए. व. [आपयति], (मू.प.)1(2).126; आपो आपोगतन्ति आदीसु आबन्धनवसेन प्राप्त कराता है, पहंचा देता है, बढ़ा देता है - आपेति . आपो तदेव आपोसभावंगतत्ता आपोगतं नाम, विभ. अट्ट. सहजातरूपानि पत्थरति, आपायति वा ब्रूहेति वड्डेतीति । आपो, अभि. ध. वि. टी. 174; तेजो तेजेति रूपानि, आपो आपोधातु स्त्री., तत्पु. स. [बौ. सं. आपोधातु], तरलता, आपेति पालना, अभि. अव. 81.
प्रघ्ररण (पिघल कर बहना) अथवा संसंजन का मूलभूत आपेसि/आपेसी/अपेसि स्त्री., कांटेदार झाडी से बनाया भौतिक धर्म, रूपधर्मों को आपस में बांध कर रखने वाला हुआ लकड़ी का फाटक - सिं द्वि. वि., ए. व. - कोट्टकं तथा स्निग्घ्ता के स्वभाव वाला एक महाभूत, क. छ प्रकार अपेसिं यमककवाट तोरणं पलिघन्ति, चूळव. 281; अपेसीति की धातुओं में से एक - छ: धातुयो पथवीधातु, आपोधातु, दीघदारुम्हि खाणुके पवेसेत्वा कण्टकसाखाहि विनन्धित्वा तेजोधातु वायोधातु, आकासधातु, विआणधातु, दी. नि. कतं द्वारथकनक, चूळव. अट्ठ. 62.
3.196; ख. चार महाभूतों की सूची में भी एक महाभूत के आपोकसिण नपुं., तत्पु. स. [बौ. सं. आपकृत्स्न], ध्यान- रूप में निर्दिष्ट - चत्तारो महाभूता अपरिसेसा निरुज्झन्ति, प्रक्रिया में चित्त को एकाग्र करने हेतु निर्दिष्ट दस प्रकार सेय्यथिदं पथवीधातु आपोधातु तेजोधातु वायोधातूति, दी. के कर्मस्थानों में से एक, चित्त की एकाग्रता के लिए नि. 1.199; ग. तरलता, द्रवनशीलता एवं रूपधर्मों को
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