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आम
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आमक
का अभाव - तो प. वि., ए. व. - सत्ता सुखिता वा होन्तु .... ति आभोगाभावतो, विसुद्धि. 1.315.. आम' अ., अनुमोदनार्थक, सहमतिसूचक अथवा स्वीकृत्यर्थक निपा. [आम्, बौ. सं. आम/आमं], ओह, हां, जी हां, हां ऐसा ही है, वास्तव में यही बात ठीक है, एकदम ऐसा ही है, वाक्यों में दो प्रकार से प्रयुक्त; क. इसके उपरान्त संबो. में आवुसो, भन्ते, अय्य, अय्ये, उपासक, दारक, देव, भगवा एवं महाराज आदि शब्द अवश्य रहते हैं - "आम, आवुसो ति, ध. प. अट्ठ. 1.34; "आम, भन्ते ति, ध. प. अट्ठ. 1.23; "अम्म, सेट्टिनो धीतासी ति? "आम, ताताति, ध. प. अट्ठ. 1.111; "आमाय्य नवरत्तो कम्बलो ति, पारा. 193; "आमाय्ये सिबिस्सामी ति, पाचि. 383; "आम, उपासका ति, ध. प. अट्ठ. 1.6; "आम, देवा ति, ध. प. अट्ठ. 1.275; "आम, दारक, जानामहं सिप्पानि, मि. प. 10; ख. संबो. में अन्त होने वाले नाम के प्रयोग के बिना कभी-कभी "आम" के तुरन्त उपरान्त स्वीकृति अथवा पूर्वकथन के अनुमोदन को सूचित करने वाला वाक्य अथवा वाक्यांश का प्रयोग मिलता है -- आम, पब्बजितोम्ही ति, महाव. 122; आम, मया गहिताति, ध. प. अट्ठ. 2.42; "कि पनेत्थ आपत्तिभावं न जानासीति? आम, न जानामी ति, ध. प. अट्ठ. 1.34. आम अ./त्रि०, केवल स. पू. प. में ही प्राप्त अमा से व्यु. अथवा उस का अप., अपना, निजी, अपने ही घर का -- जन पु., कर्म, स., एक ही घर में रहने वाला, घरेलू। आदमी, पारिवारिक जन, सम्बन्धी जन - नो प्र. वि., ए. व. - न नो समसब्रह्मचारीसूति एत्थ समजनो नाम सकजनो वुच्चति, अ. नि. अट्ठ. 3.124; पाठा. समजनो; - जात त्रि., "हां मैं आपकी दासी हूं इस प्रकार से 'हां' कहने वाली या स्वीकारने वाली दासी से उत्पन्न दासी-पुत्र - तो पु., प्र. वि., ए. व. - यत्थ दासो आमजातो, ठितो। थुल्लानि गज्जतीति, जा. अट्ठ. 1.221; आमजातोति "आम, अहं वो दासी ति एवं दासब्यं उपगताय आमदासिसङ्घाताय दासिया पुत्तो, जा. अट्ट, 1.222; - दासीसङ्खाता स्त्री., "हां मैं आपकी दासी हूं" ऐसा कहने या स्वीकारने के कारण "आमदासी” नाम से विख्यात या प्रसिद्ध दासी - य ष. वि., ए. व. - अहं वो दासी ति एवं दासब्यं उपगताय
आमदासिसजाताय दासिया प्रत्तो, जा. अठ्ठ. 1.222. आम त्रि., आ + अम से व्यु. [आम], 1. कच्चा, अनपका, अपक्व (भोजन या फल)- मं' नपुं., द्वि. वि., ए. व. -
आमं पक्कञ्च जानन्ति, अथो लोणं अलोणक जा. अट्ठ. 3.338; - मं? प्र. वि., ए. व. - आमं पक्कवण्णि ..., आम आमवण्णि ... चत्तारि अम्बानि, अ. नि. 1(2).122; पञ्चमे आमं पक्कवण्णीति आमकं हुत्वा ओलोकेन्तानं पक्कसदिसं खायति, अ. नि. अट्ठ. 2.322; 2. आवे में न पकाया हुआ (बर्तन आदि) - मं प्र. वि., ए. व. - तं ते पाय भेच्छामि, आम पत्तंव अस्मना, सु. नि. 445; 3क. अनपचा, अधपचा (भोजन आदि), अपवित्र, उख. पु./नपुं., अजीर्णता अथवा अनपच का रोग - दुट्ट आमासयगतं रसं आमं बुधा विदु, भेषज्ज. 1.113 (रो.). आमक त्रि., [आमक], उपरिवत्, क. कच्चा, नहीं पकाया हुआ - कं नपुं., द्वि. वि., ए. व. - अय्य, आमकं किर न गण्हन्तीति, जा. अट्ठ. 4.61; जात वेदस्स डरहमाने आमकसङ्कटे आमकवण्णविनासे रसादीनं विनासो भवति, अभि. अव. 108; ख. नहीं पका हुआ- बालो आमकपक्कंव, ... आमिसं, जा. अट्ठ. 5.361; आमकपक्कति आमकञ्च पक्कञ्च, जा. अट्ट, 5.362; आमकं हुत्वा ओलोकेन्तानं पक्कसदिसं खायति, अ. नि. अट्ठ. 2.322; ग. आवे में नहीं पकाया हुआ (मिट्टी का बर्तन आदि) कच्चा - कानि नपुं.. प्र. वि., ब. व. - यानि कानिचि कुम्भकारभाजनानि आमकानि चेव पक्कानि च सब्बानि तानि भेदनधम्मानि ..., स. नि. 1(1).116; - के सप्त. वि., ए. व. - कुम्भकारो आमके आमकमत्ते, म. नि. 3.160; -च्छिन्न त्रि., कर्म. स., कच्ची अवस्था में ही काट लिया गया, हरी भरी हालत में ही काट दिया गया - न्नो पु., प्र. वि., ए. व. - तित्तकालाबु आमकच्छिन्नो ... होति सम्मिलातो, म. नि. 1.1143; आमकच्छिन्नोति अतितरुणकाले छिन्नो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).362; - तक्क नपुं.. कर्म. स. [आमकतक्र], ताजा मट्ठा - क्के सप्त. वि., ए. व. - सचे आमकतक्के वा, खीरे वा पक्खिपन्ति तं, सामपाकनिमित्तम्हा, न तु मुच्चति दुक्कटा, विन. वि. 1457; आमकतक्कादीसु पन सयं न पक्खिपितब्बा, पाचि. अट्ठ. 102; - धन नपुं., कर्म. स. [आमकधान्य], नहीं पकाया हुआ अनाज, कच्चा अनाजजं द्वि. वि., ए. व. - ... रस्सकाले आमकधज विआपेत्वा नगरं अतिहरन्ति द्वारट्टाने, पाचि. 360; इदं आमकधज नाम मातरम्प विज्ञापेत्वा भुञ्जन्तिया पाचित्तियमेव, पाचि० अट्ठ. 188; - पक्कमिक्खाचरिया स्त्री., तत्पु. स., कच्चे तथा पके हुए भोजन को प्राप्त करने हेतु किया जा रहा भिक्षाटन - यं द्वि. वि., ए. व. - समुच्छकन्ति गामे
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