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आदिपाद
आदिब्रह्मचरियक आदिपाद पु., श्रीलङ्का के प्राचीन शासकों के एक आदिब्रह्मचरिय नपुं., ब्रह्मचर्य अथवा आर्यमार्ग के प्रारम्भ में उच्च पदाधिकारी की शासकीय उपाधि - दो प्र. वि., ए. ही पालनीय शील, ब्रह्मचर्य-जीवन की पूर्णता हेतु प्रारम्भ व. - आदिपादो व सो तस्मा हुत्वा रज्ज विचारयि, चू, वं. में ही पालनीय प्राणातिपात से विरति आदि पांच, आठ या 48.31.
दश शील - आदिब्रह्मचरियं तु तदनं सीलमीरितं, अभि. आदिपादकजम्बु स्त्री., श्रीलङ्का के एक प्राचीन स्थान का प. 431; ब्रह्मचरियस्स अरियरस मग्गस्स आदिम्हि तदत्थाय नाम - आदिपादकजम्बू ति विस्सुतम्हि पदेसके, चू. वं. च चरितब्बता आदिब्रह्मचरिय, अभि. प. सूची. 37; - यं 61.15.
प्र. वि., ए. व. - आदि ब्रह्मचरियस्साति आदिब्रह्मचरिय, आदिपादकपुन्नागखण्ड पु., श्रीलङ्का के रोहण-क्षेत्र के एक विसुद्धि. महाटी. 1.30; - यं द्वि. वि., ए. व. - स्थान का नाम - नाम त्रि., आदिपादपुन्नागखण्ड नाम तिण्णविचिकिच्छो खो पन सो भगवा विगतकथंकथो वाला - म म्हि नपु., सप्त. वि., ए. व. - परियोसितसङ्कप्पो अज्झासयं आदिब्रह्मचरियं दी. नि.
आदिपादकपुन्नागखण्डनामम्हि ठानके, चू. वं. 75.14. 2.165; आदिब्रह्मचरियं पटिजानन्ति, तेसाहमस्मि, म. नि. आदिपाराजिकुट्ठान त्रि., ब. स., प्रथम पाराजिक से उत्पन्न 2434; आदिब्रह्मचरियन्ति ब्रह्मचरियस्स आदिभूता उप्पादका होने वाला-ना स्त्री., प्र. वि., ए. व. - आदिपाराजिकुठाना, जनकाति एवं पटिजानन्तीति वुत्तं होति, म. नि. अट्ठ. अयन्ति परिदीपिता, उत्त. वि. 340.
(म.प.) 2.318 - येन तृ. वि., ए. व. - करणत्थे आदिपुब्बङ्गम त्रि., पूर्ववर्तियों में प्रथम, प्रारम्भ में ही पूर्ववर्ती पच्चत्तवचन, अधिकासयेन उत्तमनिस्सयभूतेन - मं नपुं., प्र. वि., ए. व. - मूलनिदानं पठमं आदिपुब्बङ्गम आदिब्रह्मचरियेन पेराणब्रह्मचरियभूतेन च अरियमग्गेन, दी. धुरं दी. वं. 4.32; - मो पु., प्र. वि., ए. व. - आदिपुब्बङ्गमोनि . अट्ठ. 2.225. असि, तस्स दानस्सिदं फलं, अप. 1.338.
आदिब्रह्मचरियक त्रि., [बौ. सं. आदिब्रह्मचर्यक], भिक्षुजीवन आदिपुरिस पु., तत्पु. स. [आदिपुरुष], प्रथम व्यक्ति, पहला के आधारभूत शीलों से सम्बद्ध, ब्रह्मचर्य के मार्ग के आदि पुरुष, प्रथम पुरुष (व्या. के सन्दर्भ में)- सो प्र. वि., ए. में अथवा पूर्वभाग में आया हुआ, बुद्ध की त्रिविध शिक्षाओं व. - यहि लोके अच्छरियट्ठानं बोधिसत्तोव तत्थ में आदिभूत शील की शिक्षा के साथ सम्बद्ध - को पु., प्र. आदिपुरिसोति, पटि. म. अट्ठ 1.299; - वाचक त्रि. वि., ए. व. - आदिब्रह्मचरियकोति मग्गब्रह्मचरियस्स प्रथम पुरुष का अर्थ कहने वाला - को पु., प्र. वि., ए. आदि पुब्बभागप्पटिपत्तिभूतो, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.180; व. -वधा वा वत्तमानायं, आदिपुरिसवाचको अत्थो भवे ति आदिब्रह्मचरियकोति
सिक्खत्तयसङ्गहस्स एतस्स भवती ति पि युज्जति, सद्द. 1.33.
सकलसासनब्रह्मचरियस्स आदिभूतो, अ. नि. अट्ठ. 3.197; आदिपोत्थकी पु.. राजा के भण्डारगृह का अधिकारी- - यिका स्त्री, प्र. वि., ए. व. - आदिब्रह्मचरियिकाति
की प्र. वि., ए. व. - अस्समण्डलतित्थट्ठो मग्गब्रह्मचरियस्स आदिभूतानं चतुन्नं महासीलानमेतं कित्तिनामादिपोत्थकी, चू. वं. 72.27; - किं द्वि. वि., ए. अधिवचनं, अ. नि. अट्ठ. 2.392; - य च/ष. वि., ए. व. व. - ततो रक्खाधिकारिं च सामन्तं चादिपोत्थकि, चू. वं. - आदिब्रह्मचरियकायाति सेक्खपण्णत्तियं विनेतुं न 72.160; क्यानगामे नियोजेत्वा कित्तिनामादिपोत्थकि चू. पटिबलोति अत्थो, महाव. अट्ठ. 259; - कं नपुं., प्र. वि., वं. 72.207.
ए. व. - नादिब्रह्मचरियकन्ति सिक्खत्तयसवातस्स आदिप्पति आ +दिप का वर्त, प्र. पु., ए. व. [आदीप्यते]. सासनब्रह्मचरियकस्स न आदिमत्तं, अधिसीलसिक्खामत्तम्पि प्रकाशित होता है, चमकता है, जलता है - न्ति ब. व. न होति, दी. नि. अट्ठ 1.280; न आदिब्रह्मचरियकन्ति - अयञ्च महापथवी सिनेरु च पब्बतराजा आदिप्पन्ति ब्रह्मचरियस्स आदिमत्तम्पि पुब्बभागसीलमत्तम्पि न होति, पज्जलन्ति एकजाला भवन्ति, अ. नि. 2(2).239.
म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.103; - का पु., प्र. वि., ब. व. - आदिप्पन नपुं., आ + दिप से व्यु., क्रि. ना., प्रकाशित नेते, भिक्खवे, वितक्का अत्थसंहिता नादिब्रह्मचरियका ..., होना, प्रभास्वर होना, जाज्वल्यमान होना, तेज प्रभा वाला स. नि. 3(2).481; - कानि नपुं., प्र. वि., ब. व. - होना - तो प. वि., ए. व. - आदिप्पनतो पन आदिच्चो, अस्थसंहितानि, भिक्खवे, धम्मचेतियानि लीन. (दी.नि.टी.) 3.137.
आदिब्रह्मचरियकानी ति, म. नि. 2.333.
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