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आचारदिद्रि
ब. व.
दी. नि. अ. 1.149; महानि, अट्ठ. 96; आचारगोचरसम्पन्नोति इदमस्स पातिमोक्खसंवरस्स उपकारकधम्मपरिदीपनं, महानि. अड्ड. 94 आचारगोचरसम्पन्नोति मिच्छाजीवपटिसेधकेन न वेळुदानादिना आचारेन... पाचि, अट्ठ 47 इति इमिना थ आचारेन इमिना च गोचरेन उपेतो... तेन युच्चति आचारगोबरसम्पन्नोति, विसुद्धि. 1.18 न्ना पु. प्र. कि. पातिमोक्खसंवरसंयुता विहस्थ आचारगोचरसम्पन्ना अणुमत्तेसु वज्जेसु भयदस्साविनो, म. नि. 1.41; आचारगोचरसम्पन्नाति आचारेन च गोचरेन च सम्पन्ना, म. नि. अट्ठ. ( मू०प.) 1 ( 1 ) . 164-165. आचारदिट्टि स्त्री०, द्व० स० [आचारदृष्टि ] उत्तम आचरण एवं सम्यक् दृष्टिविषयक अतिक्रमण या अपराध - या तृ.वि., ए. व. सीलविपत्तिया चोदेति, अथो आचारदिद्विया, परि० 304; आचारदिट्टियाति आचारविपत्तिया चेव दिद्विविपत्तिया च परि० अट्ट० 204 ; तुल. आचारविपत्ति. आचारपञ्ञति / आचारपण्णत्ति स्त्री, तत्पु. स. [आचारप्रज्ञप्ति ], उत्तम आचरण के विषय में विनय की शिक्षा, सदाचार विषयक आज्ञा या निर्देश- त्ति प्र. वि. ए. व. ओवाददायके निस्साय आचारपण्णत्तिविनयो वा सुसिक्खितो न भवेय्य जा. अड. 3.326 केवलं तत्थ सिक्खा संयमो नियमो सीलगुणआचारपण्णत्ति अत्थरसो धम्मरसो विमुत्तिरसो, मि. प. 183: पुब्बभागपटिपदाति च सीलं आचारपञ्ञत्ति धुतङ्गसमादानं याव गोत्रभुतो सम्मापटिपदा वेदितना दी. नि. अड. 2.152 - सिक्खापद नपुं., तत्पु० स० [आचारप्रज्ञप्तिशिक्षापद], विनय के वे शिक्षापद, जिनमें उत्तम आचरण से सम्बन्धित आज्ञा या निर्देश दिए गए हैं दं प्र. वि. ए. व. भिक्खून मेत्तचित्तेन आचारपञ्ञत्तिसिक्खापदं, कम्मट्ठानकथनं धम्मदेसना तेपिटकम्पि बुद्धवचनं मेत्तं वचीकम्मं नाम, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 1 (2). 289. आचारपटिपत्ति स्त्री० तत्पु० स० [आचारप्रतिपत्ति], उत्तम आचरण को व्यवहार में उतारना, व्यवहार में सदाचार का अनुसरण, सदाचार की वास्तविक पूर्णता त्ति प्र. वि. ए. व. आचारपटिपत्ति ते बाळ्हं खो मम रुच्चति, अप० 1.373; स. प. के अन्त, यदि तत्थ बुद्धपुत्ता आचारसीलगुणवत्तपटिपत्तिमेघवस्सं अपरापरं अनुष्पबन्धापेच्युं अभिवस्सापेच्युं... मि. फ.
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आचारविपत्ति
आचारवत्त नपुं [आचारवृत्त]. सदाचार, उत्तम आचरण का व्रत या पवित्र कृत्य, उत्तम जीवनवृत्ति तेन तृ. वि., ए. व. विनीतवन्तन्ति विनीतेन आचारवत्तेन समन्नागतं. जा. अड. 5.405.
आचारवन्तु त्रि.. आचार वन्तु से व्यु [आचारवत् ], + सदाचारी, उत्तम आचरण का पालन करने वाला वा पु., प्र. वि., ए. व. सचे पन जातिकुलपुत्तो आचारवा होति., स. नि. अड्ड 2.44.
आचारविकार पु. तत्पु. स. [आचारविकार], सदाचार का ह्रास, उत्तम आचरण में गड़बड़ी का आ जाना रं द्वि० वि. ए. व. नानावण्णपटिमण्डितञ्च तालवण्टं गहेत्वा आचारविकारं आपज्जिसु सा. वं. 96. आचारविद्विगाम पु०, श्रीलङ्का में अनुराधपुर से तीन योजन दूर पूर्वोत्तर दिशा में स्थित एक प्राचीन गांव का नाम - म्हि सप्त॰ वि॰, ए॰ व॰ - आचारविद्विगामम्हि सोळसकरिसे तले, म. वं. 28.13: नगरतो तियोजनमत्थके हाने पुबउत्तरकण्णे आचारविद्विगामे तियामरतिं थू, वं. 219220 (रो.). आचारविनय पु.. तत्पु स [आचारविनय] उत्तम - आचरण सम्बन्धी नियम यं द्वि. वि. ए. व. - विनयन्ति 'एवं अभिक्कमितब्बन्तिआदिकं आचारविनयं न जानाति, ओवादञ्च न सम्पटिच्छति जा. अट्ट. 4.217. आचारविपत्ति स्त्री, तत्पु. स. [आचारविपत्ति], चार प्रकार की विपत्तियों में दूसरी पातिमोक्खसुत में निर्दिष्ट थुल्लच्चय, पाचित्तिय, पाटिदेसनीय दुक्कट एवं दुब्बासित नामक अपराध, उत्तम आचरण का ह्रास या हानि, सदाचार के पालन में असफलता या विमुखता ति प्र. वि. ए. व. थुल्लच्चयं पाचित्तियं पाटिदेसनीयं दुक्कटं दुब्भासितं अयं आचारविपत्ति, महाव. 242 वृत्ताचारविपत्ती ति आचारकुसलेन सा विन. वि. 3105 त्तिं द्वि. वि. ए. अथाचारविपत्ति थे, पटिच्छादेति दुक्कटं उत्त, वि. 175; या तृ.वि., ए. व. सीलविपत्तिया वा उपेसि आचारविपत्तिया वा ठपेसि, महाव. 242; अमूलिकाय सीलविपत्तिया अमूलिकाय आचारविपत्तिया पातिमोक्ख उपेति इमानि द्वे अधम्मिकानि पातिमोक्खद्वपनानि चूळव 399; सीलविपत्तिया वा आचारविपत्तिया वा अत्तानं उक्करोतुकामताय वा परं वम्भेतुकामताय वा न उपवदेय्य स. नि. अड. 3.73; - चोदना स्त्री०, पातिमोक्ख में प्रज्ञप्त ( पाराजिक एवं पाचित्तिय) गम्भीर अपराधों को छोड़ शेष
व.
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