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आचारविपन्न
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आचारसीलगुणवत्तपटिपत्ति अपराधों के विषय में अपराधी भिक्षु को प्रेरक वचन कहना, आणबलञ्च सुचिभावञ्च जानाति, जा. अट्ठ. 7.186; - या डांटना फटकारना अथवा पापकर्म की निन्दा करना - तृ. वि., ए. व. - एवं वुत्तभिक्खुसारुप्पआचारसम्पत्तिया, अवसेसानं वसेन आचारविपत्तिचोदना .... पारा, अट्ठ. उदा. अट्ठ. 182. 2.157; - पच्चय पु., कारण के रूप में पाराजिक एवं आचारसम्पन्न त्रि., तत्पु. स. [आचारसम्पन्न], सदाचारी, पाचित्तिय के अतिरिक्त शेष अपराध - या प. वि., उत्तम आचरण एवं व्यवहार का अनुसरण करने वाला, ए. व. - आचारविपत्तिपच्चया एक आपत्तिं आपज्जति, सभी के प्रति उचित सम्मानभाव आदि रखने वाला - न्नो परि. 201; - पुच्छा स्त्री., [आचारविपत्तिपृच्छा], पु., प्र. वि., ए. व. - अपिच यो भिक्खु सत्थरि सगारवो आचारविपत्ति अर्थात् थुल्लपच्चय आदि अपराधों के विषय सप्पतिस्सो सब्रह्मचारीसु ... अयं वुच्चति आचारसम्पन्नो, में प्रश्न - विपत्तिपुच्छाति - सीलविपत्तिपुच्छा, उदा. अट्ट. 182; यो भिक्खु... भोजने मत्तञ्जागरियानुयुत्तो आचारविपत्तिपुच्छा, दिढिविपत्तिपुच्छा, आजीवविपत्तिपुच्छा, सतिसम्पजओन समन्नागतो अप्पिच्छो ... गरुचित्तीकारबहुलो परि. 324.
विहरति, अयं वुच्चति आचारसम्पन्नो, इतिवु. अट्ट, 269; आचारविपन्न त्रि., तत्पु. स. [आचारविपन्न], उत्तम आचरण ... एवं सीलसम्पन्नो, एवं आचारसम्पन्नोति आदिगुणकथनं से रहित, अच्छे आचरण से विहीन, पाराजिक एवं पाचित्तिय परम्मुखा मेत्तं वचीकम्म नाम होति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) को छोड़ शेष पांच प्रकार की आपत्तियों में फंसा हुआ -- 1(2).139; 'अयं सीलवा गुणवा लज्जिपेसलो न्नो पु., प्र. वि., ए. व. - अधिसीले सीलविपन्नो होति, आचारसम्पन्नोति वा नत्थि, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.2023; अज्झाचारे आचारविपन्नो होति. महाव. 82; परि. 2443; - न्नेन पु., तृ. वि., ए. व. - 'अहं के निस्साय एवं इतरे पञ्चापत्तिक्खन्धे आपन्नो अज्झाचारे आचारविपन्नो आचारसम्पन्नेन पुत्तेन वियोग पत्तो ति? ध. प. अट्ठ. नाम, महाव. अट्ठ. 258; आचारविपन्नो नाम पञ्च 2.104; - स्स पु.. प. वि., ए. व. - एतं आपत्तिक्खन्धे आपन्नो, परि. अट्ठ. 166.
आचारसम्पन्नस्स अरियरस कल्याणं उत्तमवचनं, जा. अट्ठ. आचारविहार पु., तत्पु. स. [आचारविहार]. उचित व्यवहार, 4.383. सदाचारमयी जीवनवृत्ति - रे सप्त. वि., ए. व. - राजा आचारसिक्खापन न., तत्पु. स., उत्तम आचरण की तस्साचारविहारे पसीदित्वा तं निमन्तापेत्वा पासादतले पल्लङ्के शिक्षा, सदाचार का सिखलाना - नेन त. वि., ए. व. - निसीदापेत्वा, ... जा. अट्ठ. 3.310.
तस्मा इदानिपि नो आचारसिक्खापनेन आचरियो भवाति आचारसंयम पु., स. प. के अन्त. प्राप्त [आचारसंयम], आह, जा. अट्ठ. 5.378.
आचरण के विषय में संयम, सदाचार- परायण होने के आचारसील नपुं, कर्म. स. [आचारशील], 'चतुक्क' लिए प्रयास स. प. के. रूप में - यावता लोके शीर्शक में शील के विभाजनों में से एक, सामाजिक सुगतागमपरियत्तिआचारसंयमसीलसंवरगणा, सब्बे ते रीति रिवाज, परम्परा से चली आ रही सामाजिक भिक्खुसमुपगता भवन्ति, मि. प. 185.
प्रथा, सामाजिक व्यवहार से सम्बद्ध नियम - लं प्र. आचारसमाचारसिक्खापक/सिक्खापनक त्रि.. ('आचरिय' वि., ए. व. - कुलदेसपासण्डानं अत्तनो अत्तनो शब्द के सर्वाधिक मान्य निर्वचन के सन्दर्भ में प्रयुक्त), मरियादाचारित आचारसील, विसुद्धि. 1.16; उत्तम आचरण एवं व्यवहार की शिक्षा देने वाला (आचार्य) कुलदेसपासण्डधम्मो हि आचारसीलन्ति अधिप्पेतं, विसुद्धि. - को पु.. प्र. वि., ए. व. - नत्थि आचरियो नामाति महाटी. 1.35. आचारसमाचारसिक्खापको आचरियो नाम कोचि नत्थि, पे. आचारसीलगुणवत्तपटिपत्ति स्त्री.. तत्पु. स. व. अट्ट. 219; - कं द्वि. वि., ए. व. - अनुजानामि [आचारशीलगुणव्रतप्रतिपत्ति], आचारशीलों, गुणों एवं व्रतों भिक्खवे आचरियन्ति आचारसमाचारसिक्खापनकं आचरियं । आदि का व्यवहार में पालन - यदि तत्थ बुद्धपुत्ता अनुजानामि, महाव. अट्ठ. 254.
आचारसीलगुणवत्तपटिपत्तिमेघवस्सं अपरापरं अनुप्पबन्धापेव्यु आचारसम्पत्ति स्त्री., तत्पु. स. [आचारसम्पत्ति], उत्तम अभिवस्सापेय्यु, मि. प. 135; - या तृ. वि., ए. व. - आचरण रूपी सम्पदा, अत्यन्त उत्तम आचरण, आचरण में योगिना योगावचरेन आचारसीलगुणवत्तप्पटिपत्तिया उच्चता - तिं द्वि. वि., ए. व. - आचारसम्पत्तिञ्च आगमाधिगमे पटिसल्लाने, मि. प. 357..
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