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आजीवति
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आजीवविपत्ति
आजीवति आ +vजीव का वर्तः, प्र. पु., ए. व. [आजीवति]. जीता है, जीवन चलाता है, जीवनयापन करता है, के सहारे जीता है - न पापकं आजीवं आजीवति, म. नि. 2.225; - मानो वर्त. कृ., पु., प्र. वि., ए. व. - याय चेतनाय मिच्छाजीवं आजीवमानो किरियं करोति नाम, ध... स. अट्ठ. 263. आजीवन नपुं.. [आजीवन], पूरे जीवन भर - पिण्डो आजीवने देहे पिण्डने गोळके मतो, अभि. प.
1017. आजीवपच्चयापत्ति स्त्री., तत्पु. स., जीविका कमाने या
जीवन को चलाने के कारण होने वाला अपराध - त्ति प्र. वि., ए. व. - आजीवपच्चयापत्ति छब्बेधाति पकासिता, विन. वि. 3106; द्रष्ट. आजीवविपत्ति. आजीवपारिसुद्धि स्त्री., तत्पु. स. [आजीवपरिशुद्धि]. कुशल काय-कर्म एवं कुशल वाक्-कर्म करते हुए
पाल वाक-कर्म करते हए जीवनयापन, दोषरहित अथवा विशुद्ध साधनों के सहारे जीविका कमाना - द्धि प्र. वि., ए. व. - आजीवपरिसुद्धि धम्मेनेव समेन पच्चयुप्पत्तिमत्तक, स. नि. अट्ठ. 3.258; - द्धि द्वि. वि., ए. व. - कुसलं कायकम्म, कुसलं वचीकम्म, आजीवपरिसुद्धम्पि खो अहं, थपति, सीलस्मिं वदामि, म. नि. 2.228; - सील नपुं., शीलों के अनेक प्रभेदों में एक - परियेटिसुद्धि नाम आजीवपारिसुद्धिसील. पारा. अट्ठ. 2.247; - धम्म पु., तत्पु. स. [आजीवपरिशुद्धिधर्म], जीविका की विशुद्धि से सम्बन्धित धर्म - म्मे सप्त. वि., ए. व. - आजीवपारिसुद्धिधम्मे वा दसविधसुचरितधम्मे वा बुद्धानं चारित्तधम्मे वा. सु. नि. अट्ठ. 1.120. आजीवपारिसुद्धिसील नपुं. तत्पु. स. [आजीवपरिशुद्धिशील].
शील के चतुर्विध प्रभेदों में एक प्रभेद, जीविका कमाने के लिए बुद्ध द्वारा कहे गए छ शिक्षा-पदों का उल्लंघन किए बिना जीविका कमाना, जीविका कमाने के बुरे या अनुचित साधनों से मन को विलग रखना लं, नपं., प्र. वि., ए. व. - या पन आजीवहेतुपञत्तानं छन्नं सिक्खापदानं वीतिक्कमस्स, ... पापधम्मानं वसेन पवत्ता मिच्छाजीवा विरति, इदं आजीव पारिसुद्धिसील, विसुद्धि. 1.16; परियेद्विसुद्धि नाम आजीवपारिसुद्धिसील, पारा. अट्ठ. 2.247; इदं आजीवपारिसुद्धिसीलं नाम, जा. अट्ठ. 1.266... आजीवपारिसुद्धी स्त्री., तत्पु. स. [आजीवपरिशुद्धि], जीविका कमाने के साधनों की पवित्रता, पवित्र जीवनवृत्ति - द्धी
प्र. वि., ए. व. - आजीवपारिसुद्धी च सीलं पच्चयनिस्सितं. सद्धम्मो. 342. आजीवपूरण नपुं., जीविकोपार्जन के पवित्र नियमों या साधनों की पूर्णता - णं प्र. वि., ए. व. - मनोद्वारे
आजीवपूरणं नाम नत्थिध. स. अट्ठ. 263. आजीवभण्डक नपुं, तत्पु. स., जीवनयापन के लिए आवश्यक वस्तुएं या सामग्री - कं द्वि. वि., ए. व. - अत्तनो आजीवभण्डकं गवेसमानो दिसा ववत्थापेतुं. ... जा. अट्ठ. 1.306. आजीवभेद पु., तत्पु. स., जीविकोपार्जन-सम्बन्धी साधनों
का नष्ट हो जाना या छिन्न भिन्न हो जाना - दो प्र. वि., ए. व. - मनोद्वारे आजीवभेदो नाम नत्थि, ध. स. अट्ठ. 263; स. पू. प. के रूप में - मा मे आजीवो भिज्जी ति आजीवभेदभया तं भेसज्ज पजहि न उपजीवि, मि. प. 217. आजीवमुख नपुं., तत्पु. स. [आजीवमुख]. जीवनयापन के साधन, व्यवसाय, कृषि आदि जीविकासाधन-खानि द्वि. वि., ब. व. -- यानि तानि कसिवाणिज्जानि इणदानं
उञ्छाचरियाति आजीवमुखानि, जा. अट्ठ. 4.381. आजीववार पु., तत्पु. स., जीविकोपार्जन से सम्बन्धित
खण्ड, जीविका के उपार्जन का अवसर - रे सप्त. वि., ए. व. - आजीववारे अपरिसुद्धाजीवाति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).122. आजीवविपत्ति स्त्री., तत्पु. स. [आजीवविपत्ति]. चार प्रकार
की विपत्तियों में एक, 1. जीविका कमाने के अनुचित साधनों को अपनाना, 2. आजीविका के लिए भिक्षु या भिक्षुणी द्वारा किए गए छ प्रकार के अनुचित व्यवहार या अननुमोदित आचरण - अयं सा आजीवविपत्ति सम्मता, परि. 280; ... अयं छहि सिक्खापदेहि सङ्गहिता आजीवविपत्ति नाम चतुत्था विपत्ति सम्मताति.... परि. अट्ट, 188; चतस्सो विपत्तियो - सीलविपत्ति, आचारविपत्ति, दिद्विविपत्ति, आजीवविपत्ति, परि. 249; इध भिक्खवे. एकच्चो मिच्छाआजीवो होति, मिच्छाआजीवेन जीविक कप्पेति, अयं वच्चति, भिक्खवे. आजीवविपत्ति, अ. नि. 1(1).305; - चोदना स्त्री., जीविका कमाने के लिए गृहीत अनुचित साधनों के विषय में आज्ञा या निर्देश - आजीवहेतु पञत्तानं छन्नं सिक्खापदानं वसेन आजीवविपत्तिचोदना वेदितब्बा, पारा. अट्ट. 2.157; - पच्चय पु., तत्पु. स., जीविका-उपार्जन के अनुचित साधनों के ग्रहण करने के कारण - या प. वि., ए. व. -
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