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आगन्तुक
अड. 65 - वत्त नपुं. कर्म. स. [ आगन्तुकव्रत], बाहर से आने वाले भिक्षुओं के आचरण के लिए निर्धारित विनयनियम तं प्र. वि. ए. व. - वस्सावासे पन अतिथ आगन्तुकवत्तं, अतिथ आवासिकवतं चूळव, अट्ठ 67; इदं आगन्तुकवत्तं नाम जानितब्ब, जा. अट्ठ. 3.426 – विसय पु.. कर्म. स. [ आगन्तुकविषय] आनुषङ्गिक या गौण रूप से उपस्थित विषय आचरण में अव्यवहृत विषय येन - .... एवमेव आचिण्णविसये तस्स रागं आगन्तुकविसयेन नीहारित्वा... उदा. अह. 139 साला स्त्री, तत्पु, स. [ आगन्तुकशाला], बाहर से आने वालों या राहगीरों के विश्राम के लिए निर्मित आवास, पान्ध-निवास, धर्मशाला, मुसाफिर खाना यो हि. वि. ब. व. - आगन्तुकानमत्थाय आरामे द्वादसापि च तिसागन्तुकसालायो द्वे सतं चैव कारयि, चू. वं. 79.20; तथागन्तुकसालायो एकपञ्ञासमेव च चू. वं. 79.22; तथागन्तुकसालायो सत्तासीति अकारयि, चू. वं. 79.63 ला. अ. 3. त्रि.. बाह्य, अतिरिक्त, आकस्मिक, प्रासङ्गिक या गौणरूप से प्राप्त केहि पु. तृ. वि. ब. व. पभस्सरमिद, भिक्खवे, चितं तञ्च खो आगन्तुकेहि उपक्किलेसेहि उपक्किलिङ्क अ. नि. 1 ( 1 ) 13 कथा स्त्री. कर्म. स. [आगन्तुककथा]. प्रसङ्ग-प्राप्त विषय या मुख्य विषय से हटकर कही जा रही कोई दूसरी बात, अप्रासङ्गिक बात थं द्वि. वि., ए. व. बहिद्धा कथं अपनामेस्सतीति बहिद्धा अञ्ञ आगन्तुककथं आहरन्तो पुरिमकथं अपनामेस्सति अ. नि. अड. 2.174 एवं आगन्तुककथावसेन बहिद्धा कथं अपनामेतीति वेदितब्ब अ. नि. अ. 2.181 पट्ट पु. कर्म स. चीवर को सुसज्जित करने हेतु ऊपर से लगाई गई पट्टी द्वि. हं वि. ए. क. चीवरमण्डनत्थाय नानासुत्तकेहि सतपदीसदिसं सिब्बन्ता आगन्तुकपट्टे उपेन्ति पारा, अट्ठ 1.232 - भवङ्ग नपुं, कर्म. स. [आगन्तुकभवाङ्ग ], भवङ्गचित्त का एक प्रभेद, कामावचरभूमि के तृतीय कुशलचित्त के जवन-क्षण का असदृश विपाकचित्त - ङ्गं प्र. वि., ए. व. पटिसन्धिचित्तेन असदिसत्ता आगन्तुकभवङ्गन्ति च पुरिमनयेनेव तदारम्मणन्ति व. ध. स. अड. 308; इदम्पि वुत्तनयेनेव, 'आगन्तुकभवङ्गं' 'तदारम्मण'न्ति च द्वे नामानि लभति, तदे०; सन्धिया असमानत्ता, द्वे नामानिस्स लब्भरे, "आगन्तुकभवङ्ग"न्ति, "तदारम्मणक"न्ति च अभि. अव. 394; विशेष अर्थ द्रष्ट भवन के अन्त मल पु. कर्म. स. [आगन्तुकमल], बाहर से आ जाने वाला मैल, ऊपरी मैल
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आगम
व.
लेहि तु. कि . . वत्थस्स आगन्तुकमलेहि किलिट्टभावो विय चित्तस्स रागादिमलेहि संकिलिट्टभावो, उदा. अट्ठ. 231; रज पु. / नपुं. कर्म. स. [आगन्तुकरजस्], बाहर से आई हुई धूल या गन्दगी बाहर से आई हुई मलिनता जं नपुं. प्र. वि. ए. व. रजन्ति आगन्तुकरजं, म. नि. अट्ठ (मू०प.) 1(1).379; रजोति आगन्तुकरज, बु. वं. अट्ट० 127. आगन्तुकता स्त्री. भाव आगन्तुक होने की अवस्था य तृ. वि., ए. व. पच्चयवेकल्लताय आगन्तुकताय च रूपं न समुद्वापेति विभ, अह 22: ... आगन्तुकन्ति अत्तनो आगन्तुकतायपि रूपं न समुद्रापेति विभ. अ. 22 सुत्त नपुं. स. नि. 3(1) के बलकरणीयवग्गों के 11वें सुत्त का शीर्षक, स.नि. 3. (1), 62-63. आगन्त्वा द्रष्ट, आगच्छति के अन्त..
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आगम पु.. [आगम]. शा. अ. आगमन, आ पहुंचना प्राप्ति, उपलब्धि, पहुंच मो प्र. वि. ए. व. दहरस्स युविनो चापि, आगमो च न विज्जति, जा. अट्ठ. 4.95; चरेय्य खीरमत्तोव नत्थि मच्चुस्स आगमोति स. नि. 1 (1).128; नत्थि ततोनिदानं पापं, नत्थि पापस्स आगमो दी. नि. 1.46 म. नि. 2.194; ताहि सद्धिं रमन्तानं कथं दुक्खागमो सिया, सद्धम्मो . 249; माय च.वि., ए. व. तस्मा न सहे मरणागमायाति जा. अड्ड. 7.20; तत्थ मरणागमायाति मरणस्स आगमाय तदे: सधे च जत्रा अविसहमत्तनो न ते हि महं सुखागमाय जा. अड. 4.202: विशेष अर्थ क. वापस लौटाना, प्रत्यावर्तन, ऋण की वापसी कर्ज का भुगतान मो प्र. वि. ए. व. न पण्डिता तस्मिं इणं - ददन्ति न हि आगमो होति तथाविधम्हा जा. अनु. 7.135; - मं द्वि. वि., ए. व. अक्कोसति यथाकामं, आगमञ्चस्स इच्छति, जा. अड. 6.206 मे सप्त, वि. ए. व. - यदि पनाय्या आगमे जुण्हे वस्सं उपगच्छेय्यन्ति महाव. 182; विशेष अर्थ ख. जन्म, उत्पत्ति, मूल, किसी विशिष्ट धार्मिक परम्परा से सम्बद्ध शास्त्र या शाखा, परम्परागत धर्म-ग्रन्थ या सिद्धान्त, परम्परा, धार्मिक विषयों का ज्ञान, शास्त्र कुशलता... न आगमो पुच्छितब्बो परि. 311; न आगमोति "दीघभाणकोसि त्वं मज्झिमभाणको ति एवं आगमो न पुच्छितब्बो परि, अड. 208, अनुरसवा वुढतो आगमा वा जा. अट्ठ. 4.399; को दीघरतं सिप्पाचरियकुलं पयिरुपासित्वा आगमतो पयोगतो च हत्थिसिप्पादीसु किं सिप्पं सिक्खि, आगमो नाम अन्तमसो
उदा. अट्ठ
165;
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