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आगमनक
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आगमि
-दिवस पु., तत्पु. स. [आगमनदिवस], आने का दिन - सं द्वि. वि., ए. व. - महाजनो तुम्हाकं दस्सनकामो, आगमनदिवसं वो जानितं इच्छतीति, अ. नि. अट्ठ. 1.1023; - नन्दन त्रि., [आगतनन्दन]. वह, जिसका आगमन मन में आनन्द उत्पन्न कर दे - नो पु., प्र. वि., ए. व. - एकस्मि आगते नन्दन्ति, गते सोचन्ति तादिसो त्वं आगमननन्दनो गमनसोचनो, दी. नि. अट्ठ. 2.191; - पटिपदा स्त्री., तत्पु. स. [आगमनप्रतिपत्], फल की प्राप्ति का मार्ग, उपाय या तरीका - दा प्र. वि., ए. व. - आगमनपटिपदा नाम खन्धादिवसेन बहूहि मुखेहि सक्का कथेतु जा. अट्ठ. 4.238; - पथ पु., तत्पु. स. [आगमनपथ]. (राग आदि मलों के आने का मार्ग - थो प्र. वि., ए. व. - रजोपथोति रागरजादीनं उडानहानन्ति महाअट्ठकथायं वुत्तं, आगमनपथोतिपि वदन्ति, दी. नि. अट्ट, 1.148; - मग्ग पु., तत्पु. स. [आगमनमार्ग], आने का मार्ग - ग्गे सप्त. वि., ए. व, - तस्स किर गामस्स बहि भगवतो आगमनमग्गे ब्राह्मणानं परिभोगभूतो एको उदपानो अहोसि, उदा. अट्ठ. 307; - वस पु., तत्पु. स., आ जाने के कारण - सेन तृ. वि., ए. व. - तस्मा अन्तोअप्पनायमेव आगमनवसेन पटिपदाविसुद्धि, विसुद्धि 1.143; - विपत्ति स्त्री. प्र. वि., ए. व. - चण्डालकले वा ति आदीहि आगमनविपत्ति चेव पुब्बुप्पन्नपच्चयविपत्ति च दस्सिता, स. नि. अट्ठ. 1.143; - सद्धा स्त्री., तत्पु. स., अभिनीहार (बुद्धत्व-प्राप्ति हेतु लिए गए दृढ़ संकल्प) के समय से ही चली आ रही बोधिसत्त्वों की श्रद्धा - तत्थ सब्ब बोधिसत्तानं सद्धा अभिनीहारतो पट्ठाय आगतत्ता आगमसद्धा नाम, अ. नि. अट्ठ. 3.27; - सील त्रि., ब. स. [आगमनशील], आने वाला - लो पु., प्र. वि., ए. व. - सकदागामीति सकिदेव इमं लोकं पटिसन्धिग्गहणवसेन आगमनसीलो दुतियफलट्ठो, उदा. अट्ठ. 249; .... ठितोपि पटिसन्धिग्गहणवसेन इमं मनुस्सलोकं आगमनसीलो, इतिवु. अट्ठ. 264; - नाकार पु., तत्पु. स. [आगमनाकार], वापस लौटने का स्वरूप या तौर-तरीका -रं द्वि. वि., ए. व. - राजा अत्तनो आगमनाकारं सब्बं वित्थारतो कथेसि,
जा. अट्ठ. 1.257. आगमनक त्रि., आगे आने वाला, भविष्य - ... तस्स तस्स
पहिस्स उपरि आगमनवादपथं, म. नि. अठ्ठ, (म.प.) । 2.171.
आगमनीय/आगमनिय त्रि., आ + गम का सं. कृ. [आगमनीय], वह स्थान जहां आ पहुंचना चाहिए, प्राप्त किए जाने योग्य, सम्बद्ध, प्रापक - येन तृ. वि., ए. व. - आगमनियेन कथिते पन सुञतो वा फस्सो.... म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).261; स. नि. अट्ठ. 3.135; स. उ. प. के रूप में अना., ओरगा., तीणिसरणा., सरणा. आदि के अन्त. द्रष्ट; - कथा स्त्री., तत्पु. स. [आगमनिककथा]. आगमन फल-प्राप्ति की ओर ले जाने वाला कथन - अपरा आगमनियकथा नाम होति, स. नि. अट्ठ. 3.135; - गुण पु., तत्पु. स. [आगमनिकगुण], श्रमण-जीवन के फल की प्राप्ति का गुण - णं द्वि. वि., ए. व. - कतकिच्चभावं पारं पत्तो परिजानामीति महाबोधिपल्लङ्के अत्तनो आगमनीयगुणं दस्सेति, अ. नि. अट्ठ. 3.4: - ठान नपुं, कर्म. स. [आगमनिकस्थान], मार्ग की उत्पत्ति का स्थान, वह स्थान, जहां मार्ग की उत्पत्ति होती है - ने सप्त. वि., ए. व. -- इति अयं सङ्घारुपेक्खा आगमनीयद्वाने ठत्वा अत्तनो अत्तनो मग्गस्स नाम देति, विसुद्धि. 2.304; यतो मग्गो आगच्छति, तं आगमनीयद्वान, तस्मि आगमनीयट्ठाने, विसुद्धि. महाटी. 2.447; - पटिपदा स्त्री., कर्म स. [आगमनिकप्रतिपत्], फल की प्राप्ति की ओर ले जाने वाला मार्ग - दा प्र. वि., ए. व. - आगमनीयपटिपदा पन न कथिता, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.9; - दं द्वि. वि., ए. व. - पापुणन्तस्स आगमनियपटिपदं सन्धायेतं वृत्तं, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).79; -- पुब्बभागपटिपदा स्त्री., तत्पु. स. [आगमनिकपूर्वभागप्रतिपत], (अर्हत्) फलप्राप्ति के पूर्वभाग में अनुसरणीय मार्ग - दा प्र. वि., ए. व. - कित्तकेन नु खो तण्हासङ्घयविमुत्तस्स खीणासवरस सोपतो आगमनियपुब्बभागपटिपदा होती ति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).193; - दं वि. वि., ए. व. - सखित्तेन खीणासवस्स पुब्बभागप्पटिपदं पुच्छितो सल्लहुकं कत्वा ..., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).195; – सद्धा स्त्री., कर्म. स. [आगमनिकश्रद्धा]. अभिनीहार के समय से ही चली आ रही बोधिसत्त्वों की श्रद्धा - ... तत्थ आगमनीयसद्धा सब्ब बोधिसत्तानं होति, दी. नि. अट्ठ. 2.107. आगमयति/आगमयमान द्रष्ट. आगमति के अन्त.. आगमा द्रष्ट. आगच्छति के अन्त.. आगमि द्रष्ट. आगच्छति के अन्त..
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