________________
(
घ
)
KK Ccc
५०२
. . १६ कामयोगों के त्याग संबंधी |१६ शाश्वत धर्म का स्वरूप ५२५ । भ्रम का निवारण
४६० २० मनुष्य भव की दुर्लभता ५२७ १७ नास्तिक की विचार धाराएँ २१ तिर्यंचगति के कष्ट
• ५२८ और उनका निराकरण . ४६२/ २२ मनुष्यों और देवों के दुःख ५२८ १८ ग्रहस्थ और अहिंसा . ४६५ | २३ पापों का समाहरण १६ पर लोक न मानने का फल । ४६६ / २४ ज्ञान का फल अहिंसा ५३१ २० नास्तिक का पश्चाताप ४६८/२५ ज्ञानी पुरुष
५३३ २१ आसुरी प्रकृति ५००/ २६ शुद्ध धर्मोपदेष्टा
५३४ २२ नास्तिक की दुर्दशा ५०१ | २७ सावध क्रिया और कर्म ५३५ २३ पाप का फल कता को ही
२६ सव जीव समान हैं ___ भोगना पड़ता है
२६ ज्ञानी का समभाव २४ मृत्यु का अर्थ
५०३ | ३० पर पदार्थों की भिन्नता - ५३८ २५ मृत्यु के सत्तरह भेद ५०३
पन्द्रहवां अध्याय-मनोनिग्रह। २६ श्रात्मा का पृथक्त्व
५०५ २७ संकल्पों की अनंतता
१ मनोविजय की प्रधानता ५०६
५४० २ इन्द्रिय निग्रह
५४१ चोदहवां अध्याय-वैराग्य संबोधन
३ मुनि की विचारधारा ५५२ १ ऋषभदेव का उपदेश ५०७ ४ मन के दो भेद
५४४ २ मनुष्यभव के दस दृष्टान्त ५०८ ५ , चार भेद
५४४ ३ श्रायु की अनित्यता
६ मनोनिग्रह की कठिनाई ४ विवेकी का कर्तव्य
७ सनोनिग्रह का फल ५४७ ५ माता-पिता की लेवा पाप नहीं है ५१३ ८ चार ध्यान, उनके भेद-प्रभेद- ५४८ ६ हिंसा न त्यागने का फल
लक्षण ७ हिंला त्यागी महा पुरुप ५१६ है धर्म ध्यान का निरूपण ५५० ८ञाभिमान का फल ५१७ | १० श्राज्ञाविचय
५५० किया और कीर्ति ५१८११ अपायविचय
५५१ १० भोगी और समाधि . ५१८ | १२ विपाकविचय
५५२ ११ अनुमान-आगम प्रमाण
१३ संस्थानयिचय ___ का समर्थन
५१६ | १४ स्वाध्याय का स्वरूप १२ तर्क की अस्थिरता ५२१ | १५ पिण्डस्थ, पदस्थ आदि १३ श्रागम की यथार्थता की परीक्षा ५२१ । ध्यानों का स्वरूप
५५४ . १४ गृहस्थ की सद्गति ५२२१६ पांच धारणाएँ
५५५ १५ सुव्रती का अर्थ
५२३ / १७ योग संबंधी मंत्र १६ सुध्रत-आध्यात्मिक औषध ५२४/१८ शुक्लध्यान के चार भेद
५६० १७ मोक्षमार्ग अनादि है। ५२५/१६ ध्यान के योग्य क्षेत्र-काल १८ धर्मतत्त्व की एक रूपता ५२४ / २० ध्यान और आसन
५१२
५१२
५५४
५दर