Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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श्री हस्तीमल जी महाराज : जीवन रेखा असीम आत्म-शक्ति के धारी। जागरण से शयन पर्यन्त अप्रमत्त साधक। निष्ठावान जिनशासन सेवी। ध्यान-मौन जप के विशिष्ट साधक। आगम-मर्मज्ञ एवं व्याख्याकार। जैन इतिहास के अन्वेषक एवं प्रस्तोता। कुशल पारखी। वचन के धनी। काव्यकार। तेजस्वी मुखमुद्रा। दूरदर्शी। गंभीर चिन्तक एवं संस्कृति-रक्षक। प्राणिमात्र के प्रति करुणाशील। विनयवान। 'सत्त्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोदं' की भावना से संपूरित। ज्ञान- क्रिया के अद्भुत संगम। नयनाभिराम
व्यक्तित्व के धनी। प्राचीन भाषा एवं लिपि के विशेषज्ञ। प्रमुख प्रेरणाएँ
सामायिक एवं स्वाध्याय के प्रमुख प्रेरक। व्यसन-मुक्त एवं ||
प्रामाणिक समाज रचना के सम्प्रेरक कृतित्व
आगम साहित्य- दशवैकालिक सूत्र, नन्दीसूत्र, प्रश्नव्याकरण सूत्र, बृहत्कल्प सूत्र, अन्तगडदसासूत्र आदि आगमों एवं इनकी वृत्तियों का सम्पादन, अनुवाद आदि। उत्तराध्ययन सूत्र, दशवैकालिक सूत्र का विवेचन एवं हिन्दी पद्यानुवाद।। इतिहास- जैन धर्म का मौलिक इतिहास के चार भाग, जैनाचार्य चरितावली, पट्टावली प्रबन्ध संग्रह, ऐतिहासिक काल के तीन तीर्थकर। प्रवचन- गजेन्द्र मुक्तावली के 2 भाग, गजेन्द्र व्याख्यानमाला के 7 भाग, आध्यात्मिक आलोक, आध्यात्मिक साधना, प्रार्थना-प्रवचन आदि ग्रन्थ। काव्य-कथा आदि- गजेन्द्र-पद-मुक्तावली, पर्युषण पर्व पदावली, स्वाध्याय माला(प्रथम भाग), अमरता का पुजारी, सैद्धान्तिक प्रश्नोत्तरी, जैन स्वाध्याय सुभाषित माला, श्रीनवपद
आराधना, कुलक संग्रह आदि। कुल चातुर्मास
- 70 कुलदीक्षाएँ
- 85 (31 संत एवं 54 महासती) संलेखना-संथारा एवं स्वर्गवास - प्रथम वैशाख कृष्णा दशमी 9.4.1991 से प्रथम वैशाख कृष्णा
द्वादशी 11.4.1991 तक तेले की तपस्या। 12.4.91 को संथारा स्वीकार। प्रथम वैशाख शुक्ला अष्टमी संवत् 2048 दिनांक 21 अप्रेल 1991 को रात्रि 8 बजकर 21 मिनट पर चौविहार त्याग एवं 13 दिवसीय तप संथारे के साथ महाप्रयाण।