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[ मुहूर्तराज शुभाशुभलग्नशुदध्यावश्यकमुहूर्तवास्तुप्रवेशप्रकीर्णैः ।
पंचभिरेतै रम्यो मौहूर्तराजो 5 यमुच्यते ॥ अन्वय - शुभाशुभ, लग्नशुद्धयावश्यकमुहूर्तवास्तुप्रवेशाख्यैः एतैः पंचमिः प्रकरणैः अयं मोहूर्तराजः (मुहूर्तराजः) उच्यते। ___ अर्थ - शुभाशुभ, लग्नशुद्धि, आवश्यक मुहूर्त, वास्तु निर्माण एवं गृह देवालय प्रवेश (प्रतिष्ठा) नामक इन पांच प्रकरणों से युक्त इस मौहूर्तराज (मुहूर्तराज) ग्रन्थ को प्रस्तुत कर रहा हूँ।
शुभाशुभ प्रकरणम् ( ? ) शकात् संवत्सर ज्ञानम् (श्री शालिवाहन शक से वि. संवत्सर ज्ञानोपाय)
श्रीशालिवाहने शाके भूतविश्वस्य मेलने ।
विक्रमादित्यवर्षः स्यात् चैत्रशुक्लादितः क्रमात् ॥१॥ अन्वय - श्री शालिवाहिने शाके भूतविश्वस्य (१३५) भेलने (कृते) चैत्र शुक्लादितः (चैत्र शुक्लादिमदिवसात्) क्रमाद् विक्रमादित्यवर्षः (विक्रम संवत्सरः) स्यात्।। ___अर्थ - श्री शालिवाहन शक वर्षों की संख्या में १३५ युक्त करने पर श्री विक्रम संवत् की संख्या आती है, यह संवत् चैत्र शुक्ला प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है। अयनज्ञानम् (उत्तरायण दक्षिणायन का ज्ञान) “मुहूर्त प्रकाशे"
मकरादिराशिषट्के, प्रोक्तं चैवोत्तरायणम् ।
कर्कादिस्विति ज्ञेयं दक्षिणं ह्ययनं रवेः ॥२॥ अन्वय - अझै मकरादिराशिषट्के सति रवे: उत्तरायणम् कर्कादिराशिषट्सु च रवे: दक्षिणायनं ज्ञेयम्।
अर्थ - जब मकर राशि से मिथुन राशि तक सूर्य (भानु) हो तब तक (छ: महीनों तक) रवि का उत्तरायण एवं सूर्य (भानु) के कर्क से धनु राशि तक रवि का दक्षिणायन जानना चाहिये। रवे: उत्तरायणं समस्तशुभकृत्येषु सत्फलदम्
माघादिपंचमासेषु कृष्णेऽप्यापंचमीदिनम् ।
दक्षिणे त्वयने कुर्वन् न तत्फलमवाप्नुयात् ॥३॥ अन्वय - माघादिपंचमासेषु कृष्णे (पक्षे) अपि आपंचमीदिनम्, दक्षिणे त्वयने कुर्वन् (शुभकृत्यं किमपि) तत्फलम् न अवाप्नुयात् ।
माघ, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख और ज्येष्ठ इन पांच मासों में पूर्ण शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की पंचमी तक समस्त शुभ कार्य कर्तव्य हैं। दक्षिणायन में कार्य करने से कर्ता को उसका शुभ फल नहीं मिलता।
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