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[ मुहूर्तराज गृहसंस्थापनं सूर्ये मेषस्थे शुभदं भवेत् । वृषस्थे धनवृद्धिः स्यान्मिथुने मरणं धुवम् । कर्कटे शुभदं प्रोक्तं सिंहे भृत्यविवर्धनम् । कन्या रोगं तुले सौख्यम् वृश्चिके धनवर्धनम् । कार्मुके तु महाहानिः मकरेस्याद्धनागमः ।
कुम्भे तु रत्नलाभः स्यान्मीने सद्य भयावहम् ॥ अर्थ - नारद का मत है कि मेष से मीन पर्यन्त संक्रान्तियों में भवन निर्माण के क्रमश: शुभावहता, धनवृद्धि, मरण, शुभावहता, सेवकवृद्धि, रोग, सौख्य, धनवृद्धि महाहानि, धनप्राप्ति, रत्नलाभ एवं भय ये फल होते हैं। गृहारम्भ में चान्द्रमास एवं फल - (श्रीपति)
शोको धान्यं मृतिपशुतिः द्रव्यवृद्धिर्विनाशो , युद्धं भृत्यक्षतिरथ धनं श्रीश्च वह्नेर्भयं च । लक्ष्मीप्राप्तिर्भवति भवनारम्भकर्तुः क्रमेण ,
चैत्रादूचे मुनिरिति फलं वास्तुशास्त्रप्रदिष्टम् ॥ अन्वय - मुनिः चैत्रात् (चैत्रमासादारभ्य फाल्गुनं यावत्) क्रमेण शोकः धान्यं मृतिः, पशुहतिः, द्रव्यवृद्धि, विनाशः, युद्धं भृत्यक्षति, धनम्, श्रीः, वह्नर्भयम्, लक्ष्मीप्राप्तिः भवति इति वास्तुशास्त्रप्रदिष्टं फलम् ऊचे (उक्तवान्)। ____ अर्थ - मुनियों ने चैत्रमास से फाल्गुनमास पर्यन्त चान्द्रमासों में गेहारम्भ के क्रम से शोक, धान्यलाभ, मरण, पशुहरण, द्रव्यवृद्धि, द्रव्यनाश युद्ध, सेवकनाश, धन, श्री, अग्निभय और लक्ष्मीलाभ ये फलाफल बतलाये हैं। द्वारनियम श्रीपति मत से
कर्कि नक्र हरिकुम्भगतेऽकें, पूर्वपश्चिममुखानि गृहाणि ।
तौलिमेषवृषवृश्चिक याते, दक्षिणोत्तरमुखानि च कुर्यात् ॥ अर्थ - कर्क, मकर, सिंह और कुम्भ के सूर्य में पूर्व पश्चिममुख के गृह एवं तुला, मेष, वृष और वृश्चिक के सूर्य में दक्षिणोत्तरमुख के गृह निर्मित करने चाहिए। इसके विपरीत मुख द्वार नहीं। तथा च मीन, धनु, मिथुन और कन्या संक्रान्तियों में भवनारम्भ नहीं करना चाहिए।
यहाँ यह शंका उत्थित होना स्वाभाविक है कि “मीनचाप” इत्यादि से द्विस्वभाव राशियों को गेहारम्भ में निषिद्ध किया है, तथा “शोको धान्यं' इत्यादि से कतिपय चान्द्रमासों को गेहारम्भ में निषिद्ध करके अन्य सौरमासों और चान्द्रमासों का विधान किया है तो इनका समन्वय कैसे हो? इसका समाधान यह है कि मेष राशि का सूर्य हो तो चैत्रमास में भी वृष का रवि हो तो ज्येष्ठमास में भी कर्क का सूर्य हो तो आषाढ़
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