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[ मुहूर्तराज अन्वय :- रिक्तातिथि: (चतुर्थी नवमी चतुर्दशी च) भूसुतभानवारौ (मंगलरविवारी) तथा निन्द्याः योगाः, मेषः, कुलीर: (कर्कः) मकर: तुला च एतानि लग्नादि तदंशा अन्यराशि लग्नेष्वपि मेषादीनाम् नवांशा: हि (निश्चयपूर्वकम्) त्याज्या: न ग्राह्या इत्थर्थ।
___ अर्थ :- गृहप्रवेश में ४, ९ और १४ ये तिथियाँ मंगल एवं रविवार, निन्दनीय योग तथा मेष, कर्क, तुला एवं मकर ये चर राशि लग्न तथा अन्य राशि लग्नों में भी मेष, कर्क, तुला एवं मकर के नवमांश त्यागने योग्य हैं।
मुहूर्तचिन्तामणिकार ने भी “व्यर्काररिक्ताचरदर्श" यह वचन कहकर उक्त श्रीपति को पुष्ट किया हैत्रिविध गृहप्रवेश में लग्नबल-(वसिष्ठ)
कर्तुर्विलग्नादश जन्मराशे र्लग्नस्थितो राशिरिति प्रदिष्ट । निर्व्याधिदारिद्रययशस्करश्च सुह्सुतघ्नो रिपुनाशनश्च ॥
कलत्रहन्ता निधनप्रदश्च रोगप्रदः सिद्धिकरोऽर्थदश्च ।।
क्रमाच्च वैराभयदः क्रमेण सदैव नूनं त्रिविधप्रवेशे ॥ अर्थ :- गृहस्वामी के जन्मलग्न वा जन्मराशि से यदि प्रवेशकाल का लग्न प्रथम हो, अर्थात् जन्मलग्न अथवा जन्मराशि ही प्रवेशलग्न हो तो रोगहानि होती है, द्वितीय हो तो दरिद्रता, तृतीया हो तो यशोलाभ, चतुर्थ हो तो मित्रनाश पञ्चम हो तो पुत्रनाश, षष्ठ हो तो शत्रुनाश, सप्तम हो तो पत्नीविनाश अष्टम हो तो मृत्यु, नवम हो तो रोग, दशम हो तो सिद्धि, एकादश हो तो अर्थलाभ और द्वादश हो तो वैर एवं रोग होता है। उपर्युक्त का निचोड राजमार्तण्ड में - “कर्तृभोपचयगाश्च विलग्ने राशय: शुभफलाय भवन्ति" अथवा गृहपति के जन्मलग्न अथवा जन्मराशि से प्रथम एवं उपचयस्थानगत ३, ६, १० एवं ११ वीं राशियाँ प्रवेशलग्न में हो तो शुभफलद होती हैं। नारद भी
कर्तुर्जन्मभलग्ने वा ताम्यामुपचयेऽपि वा ।
प्रवेशलग्ने स्यावृद्धिः अन्यभे शोकनिःस्वनः ॥ अर्थ :- गृहस्वामी के जन्म की राशि अथवा जन्मलग्न राशि अथवा इन दोनों राशियों से तीसरी, छठी, दसवीं और ग्यारहवीं यदि राशि प्रवेशलग्न हो तो गृहपति की वृद्धि होती है और अन्य राशि (२, ४, ५, ७, ८, ९ और १२ वीं) हो तो शोक एवं दारिद्रय होता है।
इसके अतिरिक्त सौम्यग्रहीय स्थिरराशियों में अथवा द्विस्वभावी राशियों में प्रवेश करना शुभफलद है। इसके साथ-साथ विवाह प्रकरणोक्त २१ महादोषों को भी प्रवेश में त्यागना चाहिए।
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