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मुहूर्तराज ]
[ ४३५ गुरुनानक इंग्लिश स्कूल कु. सुमति - जिज्ञासु पाणिनी |
८-११-८९ कन्या महाविद्यालय श्री सब्यसांची गांगुली-बी.टी.एस. प्राइमरी स्कूल क्रमश- प्रथम द्वितीय तथा तृतीय स्थान पर रहे। __'राष्ट्रोनत्यै नारी शिक्षा आवश्यकी न वा?' विषयक वाद-विवाद प्रतियोगिता में कु. धारणा-जिज्ञासु पाणिनी
सर्वाधिक प्रसारित कन्या महाविद्यालय, वाचस्पति पाठक एवं हरीशंकर
वाराणसी, गोरखपुर, इलाहाबाद, कानपुर,लखनऊ, त्रिपाठी क्रमश:प्रथम द्वितीय एव तृतीय पुरस्कार प्राप्त किए।
आगरा,पटना,रांची, जमशेदपुर तथा धनबाद से प्रकाशित
सन्माग
हिन्दू संस्कृति की रक्षा के लिए काशी के विद्वानों का आह्वान जब-जब हिन्दू धर्म एवं संस्कृति पर आघात हुआ है
तब काशी के विद्वानों ने धर्म संस्कृति की रक्षा हेतु बलिदान भारतीय संस्कृति की रक्षा
दिया है। संस्कृत के बिना सम्भव नहीं
___ अगस्तकुण्ड स्थित शारदा भवन में रविवार को काशी
पण्डित सभा की ओर से आयोजित अधिवेशन में उक्त वाराणसी १४ सित. । अगस्त्य कुण्ड स्थित शारदा भवन में ६१ वें श्री गणेशोत्सव के अवसर पर आयोजित
विचार व्यक्त करते हुये मध्य प्रदेश के मुनिश्री जयप्रभ विद्वान गोष्ठी में विद्वानों ने कहा कि संस्कृत ही भारतीय
विजय ने कहा कि शास्त्रों की रक्षा तथा संस्कृत भाषा संस्कृति के मूल में है और इसके बिना भारतीय संस्कृति
समुन्नत करने के लिए विद्वानों के अतिरिक्त हिन्दू एवं शास्त्रों की रक्षा संभव नही है।
धर्मावलम्बी सभी संतों मुनियों को भी आगे आना चाहिए। __गोष्ठी में विशिष्ट वक्ता भारतीय संस्कृति एवं | उन्होंने कहा कि आज यहां अनेक धर्म एवं संस्कृतियां ज्योतिषशास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान मुनिश्री जयप्रभविजयजी | आपसी द्वंद्व के कारण समाप्त होती जा रही है, वही हमारी ने कहा कि भारतीय संस्कृति की जड़ इतनी मजबूत है। | सभ्यता एवं संस्कृति का स्वरूप अक्षुण्ण बना है। इसका उसका कारण संस्कृत भाषा ही है। काशी में चातुर्मास्य | श्रेय हमारे मुनियों, संत महात्माओं को ही जाता है। व्रत कर रहे मुनिश्री ने कहा कि यहां के मुर्धन्य विद्वानों ने | गोष्ठी में सर्वश्री मेज़र नरेन्द्र श्रीवास्तव, डाक्टर संस्कृति एवं शास्त्रों की परम्परा को आज भी जीवंत |
कैलाशपति त्रिपाठी, डाक्टर रेवाप्रसाद द्विवेदी, डाक्टर बनाकर रखा है। यहां के एक-एक विद्वान साक्षात् भारतीय
देवस्वरूप मिश्र, डाक्टर रामप्रसाद त्रिपाठी, पण्डित चेल्ला संस्कृति के प्रतीत है।
लक्ष्मण शास्त्री आदि ने विचार व्यक्त किये । स्वागत ___ गोष्ठी में भाग लेने वालों में पंडित रामप्रसाद त्रिपाठी, पं. करुणापति त्रिपाठी, पं. बटुकनाथ शास्त्री खिस्ते,
भाषण प्रोफेसर बटुकनाथ शास्त्री खिस्तेने किया। कार्यक्रम पं. देवरूप मिश्र, पं. श्रीराम पाण्डेय, पं. रामयत्न शुक्ल,
का संचालन डाक्टर विनोदराव पाठक ने किया। पं. वासुदेव द्विवेदी, पं. बन्दिकृष्ण त्रिपाठी आदि प्रमुख थे।
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