Book Title: Muhurtraj
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay Khudala

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Page 520
________________ मुहूर्तराज ] Speaking as the chief guest at a special conference of the Kashi Pandi Sabha at sharada Bhawan here, Pandit Jaiprabha Vijai said that the contribution of the contribution of the Pandits of Kashi in enriching the Dev Bhasha Sanskrit and also in keeping the ancient traditions alive, could never be forgotten. The programme began with Mangalacharan while Prof. Batuk Nath Shastri Khiste welcomed the guests and Dr. Vinod Rao Pathk presented a brief introduction of the Sabha. Munishri Jaiprabha Vijai was also presented a letter of felicitation by Dr. Shri Ram Pandey. Prominent among those who attended the conference were Pt. Brahma Nand Chaturvei, Narendra Srivastava, Dr. kailas Pati Tripathi, Dr. Reva Prasad Dwivedi. Dev Swaroop Mishra, Dr. Ram Prasad Tripathi, Pt. Challa Laxman Shastri. Jain Education International [ ४४३ सन्मार्ग नमोऽस्तु समाय सलक्ष्मणाय देव्यै च तस्यै जनकात्मज्ञयै नमोऽस्तु रुद्रेयमानिततेभ्यौ नामोऽस्तु चन्द्रकनकरु प्रधान सम्पादक - नन्दनन्दनानन्द सरस्वती वाराणसी, मंगलवार ७ नवम्बर, १९८९ हिन्दू संस्कृति की रक्षा के लिए काशी के विद्वानों का आह्वान वाराणसी, नव. । अगस्त्य कुण्ड स्थित शारदा भवन में रविवार को सम्पन्न हुए काशी पण्डित सभा के विशेष अधिवेशन में धार मध्य प्रदेश से पधारे मुनिश्री जयप्रभ विजय ने कहा कि हिन्दू संस्कृति एवं शास्त्रों की रक्षा पर बल देते हुए कहा कि इसके लिए काशी के विद्वानों को आगे आना चाहिए | आपने कहा कि जब-जब हिन्दू धर्म और संस्कृति पर आघात हुआ है, तब-तब काशी के विद्वानों ने भारतीयता और संस्कृति की रक्षा हेतु बलिदान किया है। गोष्ठी में भाग लेते हुए अन्य विद्वानों ने कहा कि शास्त्रों की रक्षा तथा संस्कृत भाषा को और समुन्नत बनाने के लिए विद्वानों के अतिरिक्त हिन्दू धर्मावलम्बी सभी सन्त एवं मुनियों को भी आगे आना चाहिए। भारतीय संस्कृति एवं शास्त्रों की चर्चा करते हुए विद्वानों ने कहा कि आज जहां अनेक धर्म एवं संस्कृतियां आपसी द्वन्द में समाप्त होती जा रही है, वही हमारी सभ्यता एवं संस्कृति का स्वरूप अक्षुण्ण बना है इसका श्रेय हमारे मुनियों, संत महात्माओं को ही है । विद्वानों ने संस्कृत के बहुमुखी विकास के लिए अनेक उपाय बतलाये। यह हर्ष का विषय है कि शास्त्र रक्षा के कार्य में मुनिश्री जय प्रभ विजयजी जैसे विद्वानों का अमूल्य योगदान हो रहा है। कार्यक्रमों का प्रारम्भ पं. मंगलेश्वर पाठक के वैदिक मंगलाचरण से हुआ अनन्तर पौराणिक एवं सांगीतिक मंगलाचरण हुआ । स्वागत भाषण काशी पंण्डित सभा के For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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