Book Title: Muhurtraj
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay Khudala

View full book text
Previous | Next

Page 516
________________ मुहूर्तराज ] [४३९ संत महात्माओं को ही है। विद्वानों ने संस्कृति के बहुमुखी दैनिक जागरण विकास के लिए अनेक उपाय बतलाये । यह हर्ष का वाराणसी, बुधवार ८ नवम्बर १९८९ विषय है कि शास्त्र रक्षा के कार्य में मुनिश्री जय प्रभ हिन्दू संस्कृति की रक्षा के लिए हिन्दू काशी के विजयजी जैसे विद्वानों का अमूल्य योगदान हो रहा है। विद्वानों का आह्वान-मुनिश्री जयप्रभ विजय ___ कार्यक्रमों का प्रारम्भ पं. मंगलेश्वर पाठक के वैदिक वाराणसी । अगस्त्य कुण्ड स्थित शारदा भवन में मंगलाचरण से हुआ अनन्तर पौराणिक एवं सांगीतक रविवार सम्पन्न हुए काशी पण्डित सभा के विशेष मंगलाचरण हुआ। स्वागत भाषण काशी पंण्डित सभा के अधिवेशन में धार (मध्य प्रदेश) से पधारे मुनिश्री जयप्रभ अध्यक्ष प्रो. बटुक नाथ शास्त्री खिस्ते ने किया । अनन्तर विजय ने कहा कि हिन्दू संस्कृति एवं शास्त्रों कि रक्षा काशी पंण्डित सभा के मंत्री डॉ. विनोद राव पाठक ने पर बल देते हेतु कहा कि इसके लिए काशी के विद्वानों सभा का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया । प्रचार मंत्री पं. को आगे आना चाहिए। आपने कहा कि जब-जब हिन्दू ब्रह्मानंद चतुर्वेदी ने अभिनन्दनीय मुनीश्री का परिचय धर्म और संस्कति पर आघात हआ है. तब-तब काशी | दिया। डॉ. श्रीराम पाण्डेय भूतपूर्व न्याय विभागाध्यक्ष के विद्वानों ने भारतीयता और संस्कृति की रक्षा हेतु बलिदान किया है। | संस्कृत विश्वविद्यालय ने मुनिश्री को अभिनन्दन पत्र गोष्ठी में भाग लेते हुए अन्य विद्वानों ने कहा कि प्रदान किया। शास्त्रों की रक्षा तथा संस्कृत भाषा को और समुन्नत विद्वद्गोष्ठी में भाग लेने वालों में प्रमुख थे- सर्वश्री बनाने के लिए विद्वानों के अतिरिक्त हिन्दू धर्मावलम्बी | मेजर नरेन्द्र श्रीवास्तव, प्राचार्य, दयानन्द महाविद्यालय, डॉ. कैलाशपति त्रिपाठी -साहित्य संस्कृति संकायाध्यक्ष, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, डॉ. रेवा प्रसाद द्विवेदी- साहित्य विभागाध्यक्ष, काशी हिन्दू पाण्डतामा विश्वविद्यालय, डॉ. देवस्वरूप मिश्र-दर्शन संकायाध्यक्ष, विशषा ितम् सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, डॉ. रामप्रसाद त्रिपाठी- भूतपूर्व व्याकरण विभागाध्यक्ष, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, पं. चल्लालक्ष्मण शास्त्री आदि प्रमुख थे । धन्यवाद पं. बंदिकृष्ण त्रिपाठी ने दिया । मानव उपाधि ग्रहण करते हुए मुनिश्री जयप्रभ विजयजी। छाया: जागरण अधिवेषन में उपस्थित विद्वनों का काशी पण्डित सभा सभी सन्त एवं मुनियों को भी आगे आना चाहिए। भारतीय | की ओर से सत्कार किया गया। सभा का संचालन डॉ. संस्कृति एवं शास्त्रों कि चर्चा करते हुए विद्वानों ने कहा विनोद राव पाठक ने किया। कि आज जहां अनेक धर्म एवं संस्कृतियां आपसी द्वन्द में समाप्त होती जा रही है, वही हमारी सभ्यता एवं संस्कृति का स्वरूप अक्षुण्ण बना है। इसका श्रेय हमारे मुनियों, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 514 515 516 517 518 519 520 521 522