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मुहूर्तराज ]
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स्पष्टार्थ के लिये नीचे चार पूर्वादिमुख भवना के मानचित्र एवं चार प्रवेश लग्नकुण्डलियाँ प्रस्तुत की जा रही हैं जिनसे गृहप्रवेश में वामार्क रवि का बोध हो सकेगा।
पूर्वमुखगृह
3.
५५
प्रवेश कुण्डली
५०
2
प.
इसी विषय में
गुरुमत
स.
गृह
3.
१.४.
म
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दक्षिणमुखगृह
पू.
ܘ
प्रवेश कुण्डली
?
प.
स.
द. 3.
3
पूर्वमुखगृह
पश्चिममुखगृह
पू.
प्रवेशतिथि पूर्णी ५. ४० पूर्णिमा
प्रवेश कुण्डली
८
सू.
२
इस श्लोक का अर्थ निम्नलिखित सारणी में स्पष्टतया अंकित है।
-
- पूर्वादिमुख भवनप्रवेश विहित तिथि ज्ञान सारणी -
द.
וי.
नन्दायां दक्षिणद्वारम् भद्रायां पश्चिमामुखम् । जयायामुत्तरद्वारम्, पूर्णायां पूर्वतो मुखम् ॥
दक्षिणमुखगृह
नन्दा- १. ६. ११
?
(२) स.
तथा च पूर्णातिथौ (५, १०, १५) प्राग्वदने पूर्वमुखे, नन्दादिके (नन्दा भद्राजयातिथिषु) क्रमेण दक्षिणमुखे, पश्चिममुखे, उत्तरमुखे च गृहे प्रवेश: शुभावहः ।
3.
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स.
अर्थात - ५.१० और १५ पूर्णिमा को पूर्वमुखगृह में १, ६ और ११ को दक्षिणमुख घर में २.७ और १२ को पश्चिममुखगृह में तथा ३८ और त्रयोदशी को उत्तरमुखगृह में प्रवेश करना शुभ है।
पश्चिममुखगृह
भदा २. ७.१२
स
उत्तरमुखगृह
पू.
こ
प.
प्रवेश कुण्डली
३
द.
"
स.
उत्तरमुखगृह
जया ३.८.१३
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