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[ मुहूर्तराज
भौमस्पष्टीकरण पूर्व में किया जा चुका है तद्वत् बुधादिग्रहों की गति एवं चालक का गुणन करने पर बुधादि के निम्नफल प्राप्त करके उन्हें पूर्णिमा की अवधि में लिखित 010 इष्ट से साधित ग्रहों की राश्यादि में चालक की ऋणता होने के कारण घटाने पर एवं राहु केतु की वक्रता के कारण योग करने निम्नांकित ग्रहों का स्पष्टीकरण हो गया।
चालक
ग्रहगति
फल स्पष्टग्रहराश्यादि अवधिगत ०/५/२३/४८ (३/२८/०/३४)
(२/४८/२०)
(११५/२५) बु. =
(२/४८/२०)
(६/३७)
गु.
०/०/१७/३८
(६/८/४८/३७)
(२/४८/२०)
(७३ /४४)
०/३/२६/५१
(२/२३/४३/१८)
(२/४८/२०)
(४/२९)
०/०/१२/३४
(५/२३/४४/५१)
(२/४८/२० )
(३/११) रा.
०/०/८/५५
(२/१८/१०/४१)
(२/४८/२०)
(३/११) के.
०/०/८/५५
(८/१८/१०/४१)
अवधिगत ग्रहों में से फलों को ऋण एवं धन करने पर स्पष्ट बुधादि केतु पर्यन्त ग्रह स्पष्टीकरण
हुआ
अवधिगत ग्रहराश्यादि
(३/२८/०/३४)
(६/८/४८/३७)
(२/२३/४३/१८)
(५/२३/४४/५१)
(२/१८/१०/४१)
(८/१८/१०/४१)
X
X
X
X
शु.
श.
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फल
(०/५/२३/४८)
(०/०/१७/३७)
(०/३/२६/५१)
(०/०/१२/३४)
(०/०/८/५५)
(0/0/2/44)
=
=
=
=
=
=
+
+
इस प्रकार ग्रहों एवं लग्न के स्पष्टीकरण के उपरान्त ग्रहों की षड्वर्गस्थिति ज्ञात करेंगे ।
षड्वर्गपदार्थ -
=
=
इष्टकालिक स्पष्ट बुधादिग्रह
३/२२/३६/४६
६/८/३१/०
२/२०/१६/२७
५/२३/३२/१७
_२/१८/१९/३६
८/१८/१९/३६
होरा, द्रेष्काण, सत्तमांश, नवमांश, द्वादशांश एवं त्रिशांश ये मुख्यतः ग्रहों के षड्वर्ग हैं। (१) होरा :
इसमें लग्न तथा सूर्यादिग्रहों में यदि वे समराशीय हों तो १५ अंशपर्यन्त चन्द्र की एवं १५ से ३० अंशों तक सूर्य की होरा रहती है एवं यदि वे विषम राशीय हों तो उपर्युक्तांशक्रम से सूर्य एवं चन्द्र की होरा रहती है।
(२) द्रेष्काण :
इसमें लग्न तथा सूर्यादिग्रह किसी भी राशि में हों १० अंशों तक उसी राशि का द्रेष्काण ११-२० अंशपर्यन्त लग्नादिकों की राशि से ५ वीं राशि का द्रेष्काण एवं २१-३० अंशों तक लग्नादिक की राशि से ९ वीं राशि का द्रेष्काण होता है।
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