________________
मुहूर्तराज ]
[२८५
परिशिष्ट (ख)
- इस परिशिष्ट (ख) में प्रतिष्ठाकारक के ग्राम एवं नगर के जहाँ जिन बिम्ब प्रतिष्ठा करनी है नाम, राशि, गण, योनि आदि एवं साध्य जिनेश्वरों के नाम, राशि, गण, योनि आदि के परस्पर मेलापक के विषय में अतीवोपयोगी सारणियाँ दी जा रही हैं जिनके आधार पर साध्य साधक परस्पर मेलापक का बोध भली प्रकार सर्वसामान्य को भी हो सकेगा। ये सारिणियाँ बृहद्धारणा यन्त्र नामक ग्रन्थ से साभार समुद्धृत की गई है
॥ अथ द्वादशारपादवेधयन्त्रम् ॥
नक्षत्र→
अश्वि .
आर्द्रा
|
पुन.
| उ.फा.
हस्त ।
ज्येष्ठा | मूल
शत.
पू.फा.
+
आद्यनाड्यक्षर
Aalheal
F+
|
नक्षत्र→
पू.फा. | चित्रा | अनु.
पू.षा.
धनि.
उ.भा.
मध्यनाड्यक्षर
, Sakash
461
614
नक्षत्र
| कृत्ति.
आश्ले. मघा
स्वाती | विशा.
| उ.षा.
श्रवण रेवती
अन्त्यनाड्यक्षर
Aalok
IP
म
॥ अथ गणभेलक यन्त्रम् ॥
साधक
साध्य देव
साध्य मनु.
साध्य राक्ष.
वैर
अतिप्रीति मध्यमप्रीति
मध्यमप्रीति अतिप्रीति
देव-अ,मृ,पु,पु,ह,स्वा. अनु,श्र,रे. मनुष्य-भ,रो,आर्द्रा,पूर्वा ३ उत्तरा ३ राक्षस-कृत्ति. आश्ले,म,चि,वि. ज्ये.
मू.घ,शत.
वर
मृत्यु अतिप्रीति
मृत्यु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org