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मुहूर्तराज ]
[३९१ गौरव, हिम्बर, टेलक तथा घबाड योग के प्रयोजन
प्रवेशे गौरवं दद्यानिर्गमे हिम्बरं तथा ।
तस्करे टेलकं दद्याद् घबाड सर्वकर्मसु ॥ गेह प्रवेश समय में गौरव योग का, यात्रा में हिम्बर का, चौरी में टेलक का तथा अन्य समस्त कार्यों में घबाड का प्रयोग करें। (ङ) शत्रुञ्जय योग- प्रयाणे प्रशस्त (बृहज्यौतिषसार)
सिते लग्नगते सूर्ये लाभगे हिबुके विधौ ।
ततो राजा रिपुन्हन्ति केशरीवेभ संहतिम् ॥ अर्थ :- प्रयाणकालिक लग्न कुण्डली में यदि लग्न में शुक्र, एकादश में सूर्य चतुर्थभाव में चन्द्रमा, ऐसा योग हो तो उसमें यात्रा करने वाला राजा इस प्रकार शत्रु विनाश करता है जैसे अनेकों हाथियों को एकाकी सिंह। (च) कामदा योग- प्रयाणे प्रशस्त (बृहज्यौतिषसार)
वृषराशिगते चन्द्रे लाभस्थे केन्द्रगे गुरौ ।
कामधेनुरयं योगः कामदो यायिनो रणे ॥ __ अर्थ - वृष राशीय चन्द्र ११ वें भाव में तथा केन्द्र में गुरु हो तो यह कामदा नामक योग कहा जाता है इसमें यात्रा करने वाले की रण में कामनासिद्धि होती है। (छ) पुण्डरीक योग-प्रयाणे प्रशस्त (बृहज्यौतिषसार)
गुरौ कर्कटगे लग्न भानावेकादशस्थिते ।
पुण्डरीको महायोगः, शत्रुपक्षविनाशकृत् ॥ अर्थ - कर्क का गुरु लग्न में, तथा एकादशभाव में सूर्य तो पुण्डरीक नामक महायोग बनता है जो कि यात्रा में शत्रुविनाशकारी होता है। (ज) पूर्ण चन्द्र योग-प्रयाणे प्रशस्त (बृहज्यौतिषसार)
त्रिषष्ठलाभगेष्वेषु रविमन्दकुजेषु च ।
पूर्ण चन्द्रो महायोगः पूर्णराज्यप्रदः सदा ॥ ___ अर्थ - तृतीय भाव में सूर्य, षष्ठ भाव में शनि और ग्यारहवें भाव में मंगल हो तो पूर्णचन्द्रयोग होता है, यह योग यात्रा में राज्यदायक है।
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