Book Title: Muhurtraj
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay Khudala

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Page 476
________________ मुहूर्तराज ] [४०७ ऋषिपुत्र की कृत्ति : ___ गर्गाचार्य के पुत्र और शिष्य ने निमित्तशास्त्र सम्बन्धी किसी ग्रन्थ का निर्माण किया है। ग्रन्थ प्राप्य नहीं है। कई विद्वानों के मत से उनका समय देवल के बाद और वहाहमिहिर के पहले कहीं है। भट्टोत्पली टीका में ऋषिपुत्र के सम्बन्ध में उल्लेख है। इससे वे शक सं. ८८८ (वि.सं. १०२३) के पूर्व हुए। यह निर्विवाद आरम्भ सिद्धि : ____नागेन्द्र गच्छिय आचार्य विजयसेन सूरि के शिष्य उदयप्रभसूरि ने 'आरम्भ सिद्धि'' (पंचविमर्श) ग्रन्थ की रचना (वि.सं. १२८०) संस्कृत में ४१३ पद्यों में की है। इस ग्रन्थ में पांच विमर्श है और ११ द्वारों में इस प्रकार विषय है। १. तिथि, २. वार, ३. नक्षत्र, ४. सिद्धि आदि योग, ५. राशि, ६. गोचर, ७. विद्यारम्भ आदि कार्य, ८. गमन, यात्रा, ९. ग्रह आदि का, वास्तु, १०. विलग्न, ११. मिश्र। इसमें प्रत्येक कार्य के शुभ अशुभ मुहूर्तों का वर्णन है। मुहूर्त के लिये 'मुहूर्त चिंतामणी' ग्रन्थ के समान ही यह ग्रन्थ उपयोगी और महत्वपूर्ण है। ग्रन्थ का अध्ययन करने पर कर्ता की गणित विषयक योग्यता का भी पता लगता है। इस ग्रन्थ के कर्ता आचार्य उदयप्रभसूरि मल्लिषेणसूरि और जिनभद्रसूरि के गुरु थे। उदयप्रभसूरि ने धर्माभ्युदय महाकाव्य, नेमिनाथ चरित, सुकृत कीर्तिकल्लोनी काव्य एवं वि.सं. १२९९ में 'उवएसमाला' पर 'कर्णिका' नाम से टीका ग्रन्थ की रचना की है। 'छासीई' और 'कम्मत्थय' पर टिप्पण आदि ग्रन्थ रचे हैं। गिरनार के वि.सं. १२८८ के शिलालेखों में से एक शिलालेख की रचना इन्होने की है। आरम्भ सिद्धि वृत्ति : __ आचार्य रत्नशेखर सूरि के शिष्य हेमहंसगणि ने वि.सं. १५१४ में 'आरम्भ सिद्धि' पर 'सुधीशृंगार' नाम से वार्तिका रचा है। टीकाकार ने मुहूर्त सम्बन्धी साहित्य का सुन्दर संकलन किया है। टीका में बीच-बीच में ग्रह गणित विषयक प्राकृत गाथाएं उद्धृत की है जिससे मालुम पड़ता है कि प्राकृत में ग्रह गणित का कोई ग्रन्थ था। उसके नाम का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। मण्डल प्रकरण : आचार्य विजयसेन सूरि के शिष्य मुनि विनयकुशल ने प्राकृत भाषा में ९९ गाथाओं में 'मण्डल प्रकरण' नामक ग्रन्थ की रचना वि.सं. १६५२ में की है। ग्रन्थकार ने स्वयं निर्देश किया है कि आचार्य मुनि चन्द्रसूरि ने 'मण्डल कुलक' रचा है, उसको आधारभूत मानकर ‘जीवाजीवाभिगम' की कई गाथाएँ लेकर इस प्रकरण की रचना की गई है। यह कोई नवीन रचना नहीं है। १. यह हेमहंसकृत वृति सहित जैन शासन प्रेस, भावनगर से प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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