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[ मुहूर्तराज __सारावली, श्रीपतिपद्धति आदि विख्यात ग्रन्थों के आधार पर इस ग्रन्थ की संकलना की गई है। इसमें जन्मपत्री बनाने की रीति, ग्रह, नक्षत्र, वार, दशा आदि के फल बताये गये हैं।' २. जन्मपत्री पद्धति :
खरतर गच्छीय मुनि कल्याण निधान के शिष्य लब्धीचन्द्र गणि ने वि. सं. १७५१ में 'जन्मपत्री पद्धति' नामक एक व्यवहारोपयोगी ज्योतिष ग्रन्थ की रचना की है। इस ग्रन्थ में इष्टकाल, भयात, भभोग, लग्न
और नवग्रहों का स्पष्टीकरण आदि गणित विषयक चर्चा के साथ जन्मपत्री के सामान्य फलों का वर्णन किया गया है। यह ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हुआ है। ३. जन्मपत्री पद्धति :
मुनि महिमोदय ने 'जन्मपत्री पद्धति' नामक ग्रन्थों की रचना वि. सं. १७२१ में की है। ग्रन्थ पद्य में है। इसमें सारणी, ग्रह, नक्षत्र, वार आदि के फल बताये गये हैं। ___ महिमोदय मुनि ने 'ज्योतिष रत्नाकार' आदि ग्रन्थों की रचना भी की है। जिनका परिचय आगे दिया गया है। मानसागरी पद्धति : ___'मानसागरी पद्धति' नाम से अनुमान होता है कि इसके कर्ता मानसागर मुनि होंगे। इस नाम के अनेक मुनि हो चुके हैं। इसलिये कौन से मानसागर ने यह कृति बनाई इसका निर्णय नहीं किया जा सकता है।
यह ग्रन्थ पद्यात्मक है। इसमें फलादेश विषयक वर्णन है। प्रारम्भ में आदिनाथ, आदि तीर्थंकरों और नवग्रहों की स्तुति करके जन्मपत्री बनाने की विधि बताई है। आगे संवत्सर के ६० नाम संवत्सर युग, ऋतु, मास, पक्ष, तिथि, वार और जन्म लग्न, राशि आदि के फल, करण, दया, अन्तदशा तथा उपदशा के वर्षमान ग्रन्थों के भाव, योग अपयोग आदि विषयों की चर्चा है। प्रसंगवश गणनाओं की भिन्न-भिन्न रीतियां बताई है। नवग्रह गजचक्र, यमदृष्टाचक्र आदि दशाओं के कोष्ठक दिये हुए हैं। फलाफल विषयक प्रश्नपत्र :
'फलाफल विषयक प्रश्नपत्र' नामक छोटी सी कृति उपाध्याय यशोविजय गणि की रचना हो ऐसा प्रतीत होता है। वि.सं. १७३० में इसकी रचना हुई है। इसमें चार चक्र हैं और प्रत्येक चक्र में सात कोष्ठक हैं। बीच में चारों कोष्ठकों में ॐ ह्रीं श्रीं अहम् नमः लिखा हुआ है। आसपास के ६-६ कोष्टकों को गिनने से कुल २४ कोष्टक होते हैं। इसमें ऋषभदेव से लेकर महावीर स्वामी तक के २४ तीर्थंकरों के नाम अंकित है। आसपास के २४ कोष्टकों में २४ बातों को लेकर प्रश्न किये गये हैं।
इस ग्रन्थ की ५३ पत्रों की प्रति अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई भा. सं. विद्या मन्दिर में है। इस ग्रन्थ की १० पत्रों की प्रति अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई भा. सं. विद्या मन्दिर में है। यह ग्रन्थ वैकटेश्वर प्रेस बम्बई से वि. सं. १९६१ में प्रकाशित हुआ है।
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