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यन्त्रराज :
आचार्य मदनसूरि के शिष्य महेन्द्रसूरि ने ग्रह्यपिता के लिये उपयोगी 'यन्त्रराज' नामक ग्रन्थ की रचना शक सं. १२९२ वि. सं. १४२७ में की है। ये बादशाह फिरोजशाह तुगलक के प्रधान सभा पंडित थे।
इस ग्रन्थ की उपयोगिता बताये हुए स्वयं ग्रन्थकार ने कहा है।
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यथा भटः प्रोढरणोत्कटोपि, शास्त्रेर्विमुक्तः परिभूतिमेति । तद्वन्महाज्योतिष्निस्तुषोऽपि यन्त्रेण होनो गणकस्तथैव ॥
यह ग्रन्थ पांच अध्यायों में विभक्त है :- १. गणिताध्याय, २. यन्त्र घटनाध्याय, ३. यन्त्र रचनाध्याय, ४. यन्त्रशोधनाध्याय ५. यन्त्र विचारणाध्याय । इसमें कुल मिलाकर १८२ पद्य हैं।
[ मुहूर्तराज
इस ग्रन्थ की अनेक विशेषताएं हैं। इसमें नाड़ीवृत के धरातल में गोल पृष्ठस्थ सभी वृतों का परिणाम बताया गया है। क्रमोत्क्रमज्या नयन, भुजकोटिज्या का चाप साधन, क्रान्ति साधन, द्युज्याखण्ड साधन, ज्याफला नयन, सौम्ययन्त्र के विभिन्न गणित के साधन, अक्षांश से उन्नतांश साधन, ग्रन्थ के नक्षत्र, ध्रुव आदि से अभिष्ट वर्षों के ध्रुवादि साधन, नक्षत्रों का छक्कर्म साधन, द्वादश राशियों के विभिन्न वृत सम्बन्धी गणित के साधन, इष्ट शंकु से छायाकरण साधन, यन्त्र तन्त्र शोधन प्रकार और तदनुसार विभिन्न राशियों और नक्षत्रों के गणित के साधन, द्वादश भावों और नवग्रहों के गणित के स्पष्टीकरण का गणित और विभिन्न यन्त्रों द्वारा सभी ग्रहों के साधन का गणित अति सुन्दर रीति से प्रतिपादित किया गया है। इस ग्रन्थ के ज्ञान से बहुत सरलता से पंचाग बनाया जा सकता है।
यन्त्रराज टीका :
१.
‘यन्त्रराज’” पर आचार्य महेन्द्रसूरि के शिष्य आचार्य मलयेन्द्रसूरि ने टीका लिखी है। इन्होने मूल ग्रन्थ में निर्दिष्ट यन्त्रों को उदाहरण पूर्वक समझाया है। इसमें ७५ नगरों के अक्षांश दिये गये हैं। वेधोपयोगी ३२ तारों के सायन भोगसर भी दिये गये हैं । अयनवर्ष गति ५४ विकला मानी गई है।
ज्योतिष रत्नाकार :
मुनि लब्धिविजय के शिष्य महिमोदय मुनि ने 'ज्योतिष रत्नाकार' नामक कृति की रचना की है। मुनि महिमोदय वि. सं. १७२२ में विद्यमान थे । वे गणित और फलित दोनों प्रकार की ज्योतिषविद्या के मर्मज्ञ विद्वान थे।
यह ग्रन्थ फलित ज्योतिष का है। इसमें संहिता, मुहूर्त और जातक - इन तीन विषयों पर प्रकाश डाला गया है। यह ग्रन्थ छोटा होते हुए भी अत्यन्त उपयोगी है। यह प्रकाशित नहीं हुआ है।
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यह ग्रन्थ राजस्थान प्राच्य विद्या शोध संस्थान, जोधपुर से टीका के साथ प्रकाशित हुआ है। सुधाकर द्विवेदी ने यह ग्रन्थ काशी से छपवाया है। यह बम्बई से भी छपा है ।
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