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[ मुहूर्तराज इस 'ग्रह लाघव' पर राजसोम मुनि ने टिप्पण लिखा है।
मुनि यशस्वतसागर ने जैनसप्तपदार्थ (सं. १७५७) प्रमाणवादार्थ (सं. १७५९) भावसप्ततिका (सं. १७४०) यशोराजपद्धति (सं. १७६२) वादार्थनिरूपण, स्याद्वाद मुक्तावली, स्तवनवरत्न आदि ग्रन्थ रचे हैं। चन्द्रार्की टीका :
मोढ दिनकर ने 'चन्द्रार्की' नामक ग्रन्थ की रचना की है। इस ग्रन्थ में ३३ श्लोक है। सूर्य और चन्द्रमा का स्पष्टीकरण है। ग्रन्थ में आरम्भ वर्ष शक संवत् १५०० है।
इस 'चन्द्रार्की' ग्रन्थ पर तपागच्छीय मुनि कृपाविजयजी ने टीका रची है। षट्पंचाशिका टीका :
प्रसिद्ध ज्योतिर्विद् वाराहमिहिर के पुत्र पृथुयश ने 'षट्पंचाशिका' की रचना की है। यह जातक का प्रामाणिक ग्रन्थ गिना जाता है। इसमें ५६ श्लोक हैं। इसे 'षट्पंचाशिका' पर भट्ट उत्पल की टीका है।
इस ग्रन्थ पर खरतरगच्छीय लब्धिविजय के शिष्य महिमोदय मुनि ने एक टीका लिखी है। इन्होने वि. सं. १७२२ में ज्योतिरत्नाकार, पंचांगानयन विधि गणित साठसौ आदि ग्रन्थ भी रचे हैं। भुवन दीपक टीका :
पंडित हरीभट्ट ने लगभग वि. सं. १५७० में 'भुवन दीपक' ग्रन्थ की रचना की है।
इस 'भुवन दीपक' पर खरतरगच्छीय मुनि लक्ष्मीविजय ने वि. सं. १७६७ में टीका रची है। चमत्कारचिन्तामणि टीका :
राजर्षि भट्ट ने 'चमत्कारचिन्तामणि' ग्रन्थ की रचना की है। इसमें मुहूर्त और जातक दोनों अंगों के विषय में उपयोगी बातों का वर्णन किया गया है।
इस 'चमत्कारचिन्तामणि' ग्रन्थ पर खरतरगच्छीय मुनि पुण्यहर्ष के शिष्य अभयकुशल ने लगभग वि. सं. १७३७ में बालावबोधिनि वृत्ति की रचना की है।
मुनि मतिसागर ने वि. सं. १८२७ में इस ग्रन्थ पर 'टबा' की रचना की है। होरा मकरन्द टीका:
__ अज्ञातकर्तृक 'होरा मकरन्द' नामक ग्रन्थ पर मुनि सुमतिहर्ष ने करीब वि. सं. १६७८ में टीका रची है। बसन्तराज शकुन टीका :
बसन्तराज नामक विद्वान ने शकुन विषयक एक ग्रन्थ की रचना की है। इसे 'शकुन निर्णय' अथवा 'शकुनार्णव' कहते हैं। ___ इस ग्रन्थ पर उपाध्याय भानुचन्द्र गणि ने १७ वीं सदी में टीका लिखा है।'
समाप्त।
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यह बैंकटेश्वर प्रेस, बम्बई से प्रकाशित है।
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