Book Title: Muhurtraj
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay Khudala

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Page 478
________________ मुहूर्तराज ] [ ४०९ इस ग्रन्थ में कर्त्ता में निम्नोक्त ४८ विषयों पर प्रकाश डाला है । १. तिथि, २. वार, ३. नक्षत्र, ४. योग, ५. राशि, ६. चन्द्र ७. तारकाबल, ८. भद्रा, ९. कुलिक, १०. उपकुलिक, ११. कण्टक, १२. अर्द्धप्रहर, १३. कालवेला, १४. स्थविर, १५ - १६. शुभ अशुभ, १७ से १९. रव्युकुमार, २०. राजादियोग, २१. गण्डान्त, २२. पंचक, २३. चन्द्रावस्था, २४. त्रिपुष्कर, २५. यमल, २६. करण, २७. प्रस्थानक्रम, २८. दिशा, २९. नक्षत्र शुल, ३०. कील, ३१. योगिनी, ३२. राहु, ३३. हंस, ३४. रवि, ३५. पाश, ३६. काल, ३७. वत्स, ३८. शुक्रगति, ३९. गमन, ४० स्थान, नाम, ४१. विद्या, ४२. क्षोर, ४३. अम्बर, ४४. पात्र, ४५. नष्ट, ४६. रोगविगम, ४७. पैत्रिक, ४८. गेहारम्भ । १ नरचन्द्रसूरि ने चतुर्विंशतिजिन स्त्रोत, प्राकृत दीपिका अनर्घराघव टिप्पण न्यायकन्दली टिप्पण और वस्तुपाल प्रशस्ति रूप (वि.सं. १२८८) का गिरनार के जिनालय का शिलालेख आदि रचे हैं। इन्होने अपने गुरु आचार्य देवप्रभसूरि रचित पांडव चरित्र और आचार्य उदयप्रभसूरि रचित " धर्माभ्युदयकार्य का संशोधन किया है। आचार्य नरचन्द्रसूरि के आदेश से मुनि गुणवल्लभ ने वि. सं. १२७१ में 'व्याकरणचतुष्कारवचूरि' की रचना की। ज्योतिषसार टिप्पण : आचार्य नरचन्द्रसूरि रचित ज्योतिषसार ग्रन्थ पर सागरचन्द्र मुनि ने १३३५ श्लोक प्रमाण टिप्पण की रचना की है। खासकर ज्योतिषसार में दिये हुए यंत्रों का उद्धार और उस पर विवेचन किया है। मंगलाचरण में कहा गया है। : सरस्वती नमस्कृतय, यन्त्रकोद्धार टिप्पणं । करिष्ये नारचन्द्रस्य, मुग्धानां बोधहेतेव ॥ यह टिप्पणी अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है। जन्म समुद्र : 'जन्मसमुद्र' ग्रन्थ के कर्त्ता नरचन्द्र उपाध्याय है जो कासहाद्गच्छ के उद्योतनसूरि के शिष्य सिंहसूरि के शिष्य थे। उन्होंने वि.सं. १३२३ में इस ग्रन्थ की रचना की । आचार्य देवानन्दसूरि को अपने विद्यागुरु के रूप में स्वीकार करते हुए निम्न शब्दों में कृतज्ञताभाव प्रदर्शित किया है : देवानन्दमुनिश्वरपदपंकजसेवकषट्चरणः 1 ज्योतिः शास्त्रमकार्षीद् नरचन्द्राख्यो मुनिप्रवरः ॥ यह ज्योतिष विषयक उपयोगी लाक्षणिक ग्रन्थ है। जो निम्नोक्त ८ कल्लोलो में विभक्त है। Jain Education International १. गर्भ संभावदिलक्षण (पद्य ३१), २. जन्म प्रत्यय लक्षण (पद्य २९), ३. रिष्ठयोगतद् मंगलक्षण (पद्य १० ), ४. निर्वाणलक्षण (पद्य २०), ५. द्रव्योंपार्जन राजयोगलक्षण (पद्य २६ ), ६. बालस्वरूप लक्षण (पद्य २०), ७. स्त्रीजातक स्वरूपलक्षण (पद्य १८), ८. नाभसादिर्योगदीक्षा वस्थायुयोग लक्षण (पद्य २३) । १. यह कृति पं क्षमाविजयजी द्वारा सम्पादित होकर सन् १९३८ में प्रकाशित हुई है। -: For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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