Book Title: Muhurtraj
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay Khudala

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Page 464
________________ मुहूर्तराज ] [३९५ किसी भी स्थान के दिनमान एवं सूर्योदयास्तसमय का ज्ञानोपाय- (बृ.ज्यौ.सा.) किसी भी स्थान के दिनमान को जानने के लिए सर्वप्रथम उस स्थान के चरखण्ड ज्ञात करने पड़ते हैं। उनको जानने की विधि यह है देशान्तर सारणी में लिखी हुई इष्ट स्थान की पलभा को १०, ८ और १० से गुणित करने पर क्रमशः प्रथम, द्वितीय और तृतीय चरखण्ड में ३ का भाग देकर आगत लब्धि ही तृतीय चरखण्ड होता है। अब जिस दिन का मान जानना हो तो उस दिन के स्पष्ट सूर्य की (प्रातःकालिक सूर्य) राशि अंश कला एवं विकला में अयनांश, कला और विकला का योग करें इस योग को सायनसूर्य अथवा सायनार्क कहा गया है। ___ ततः सायनसूर्य की भुज बनावें भुज बनाने की विधि यह है- यदि सायनसूर्य ३ राशि से अल्प हो तो वही भुज है, ३ राशि से ६ राशि तक हो तो उसे ६ राशि में से घटाएं, और ६ से अधिक ९ तक हो तो उसमें से ६ राशि घटाएं तथा इससे अधिक हो तो उसे १२ में से घटाएं, तो भुज बन जाता हैयथा "दोस्त्रिभोनं त्रिभोवं विशेष्यं रसैश्चक्रतोंऽकाधिक स्याद्भुजोनं त्रिभय्" अब भुज की राशि के अंकानुसार चरखण्ड या दो चरखण्डों का योग कर एक ओर रखें ततः भुज के अंशादिकों को अग्रिम चरखण्ड से गुणाकर ३० का भाग देने पर लब्धि को उक्त चरखण्ड के योग में जोड़ दें, इसे चरपल कहते हैं। यदि चरपल ६० से अधिक हो तो घटीपल बना लें। उन घटी पलों को यदि सायनसूर्य ६ राशि से अल्प हो तो १५ घटी में जोड़ने से तथा यदि सायनसूर्य ६ राशि से अधिक हो तो १५ घटी में से घटाने पर इष्ट स्थान का दिनार्ध; दिनार्ध को दूना करने पर दिनमान तथा दिनमान को ६० घटिकाओं में से घटाने पर शेष रात्रिमान आ जाता है। तथा दिनमान में ५ का भाग लगाने पर उस दिन का सूर्यास्त काल और रात्रिमान में ५ का भाग लगाने पर सूर्योदयकाल होता है यह सूयास्त एवं सूर्योदय काल घंटामिन्टालक होता है। उदाहरण- शाके १९०४ आषाढ शुक्ला १५ तदनुसार दि. ६-७-८२ को जोधपुरीय दिनमान एवं सूर्योदय ज्ञात करना है, तो जोधपुर की पलभा ५।५६ स्वल्पान्तर से ६ मानकर १०८।१० से गुणा करने पर क्रमशः तीन चरखण्ड ६०।४८ = २० (६०।४८।२०) हुए। अब उस दिन के प्रातःकालिक स्पष्ट सूर्य राश्यादिक २।२०।२।१ हैं, इसमें अयन अंशादिकों = २०।१४।५४ का योग करने पर = २।२०।२।१ + ०।२२।१४।५४ = ३।१२।१६।५५ सायनसूर्य हुआ, यह चूंकि तीन से अधिक और ६ से अल्प हैं, अतः इसे ६ में से घटाने पर = ६।०।०।०-३।१२।१६।५५ = २।१७।४३५ यह भुज हुआ। इसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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