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हृतवस्तु प्राप्ति एवं दिशाज्ञान
शुभग्रहो वा स्यात् ।
पूर्ण शरीरश्चन्द्रो लग्नोपगतः सौम्यावलोकितं वा भवनं शीर्षोदयं लग्ने ॥ लाभगतैर्वा सौम्यैराश्वेव धनस्य विनिर्दिशेल्लब्धिम् ।
लग्नाद्वितीयभवने तृतीयके वा शुभग्रहैर्युक्ते ॥ प्रष्टा भ वित्तं सौम्यै र्बन्ध्वस्तषष्ठदशमगतैः ।
केन्द्रस्थैदिग्वाच्याः ग्रहैः विलग्नादसंभवे वाऽत्र ॥
अर्थ - प्रश्नकालिक लग्न में यदि पूर्ण चन्द्रमा या शुभग्रह हों या लग्न पर शुभग्रहों की दृष्टि हो या लग्न में शीर्षोदय राशि (मिथुन, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, कुंभ) हो अथवा ११ वें भाव में शुभग्रह हों, या २, ३, ४, ७, ६, १० इन भावों में शुभग्रह हों तो चोरी हुई वस्तु प्राप्त होगी, ऐसा कहे । केन्द्र स्थित ग्रहों से उन २ ग्रहों की दिशा में, अनेक ग्रह केन्द्र में हों तो बलीग्रह की दिशा में, यदि केन्द्र में ग्रह न हो तो लग्नराशि की दिशा में, चोरी हुई वस्तु गई है, ऐसा कहें।
कूर्मचक्र की फल सहित विधि
किसी भी भवन अथवा देवभवनार्थ शिलान्यास के समय कूर्मचक्र उपयोगी ही नहीं, अपितु अनिवार्य होता है । कूर्म निवास जल में, स्थल में एवं आकाश में तिथि तथा नक्षत्रों से अनुसार जाना जाता है। इसे जानने की विधि यह है :
तिथि के अंक को ५ से गुणित कर उसमें कृत्तिका से उस दिन के नक्षत्र ( चन्द्रनक्षत्र) तक के गणनांक को जोड़ दें तथा उसमें १२ और मिलाएँ । आगत योग में ९ का भाग दें। इस प्रकार भाग देने पर शेषांक, ४, ७ अथवा १ रहें तो कूर्म का निवास जल में, ५, २, अथवा ८ रहें तो कूर्म निवास स्थल में और यदि ३, ६ अथवा ९ अर्थात् शेष रहे तो कूर्म निवास आकाश में समझें । जल में कूर्म निवास शुभ फलदायी होता है। स्थल में हानिकारक और आकाश मरण प्रद है ।
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[ मुहूर्तराज
उदाहरण प्रतिपदा को रोहिणी नक्षत्र है, तो उक्त विधि के अनुसार १५, रोहिणी नक्षत्र कृत्तिका
से गिनने पर दूसरा है, अत: १४५ + २ तथा इसमें १२ और जोड़े कुल योग ५ + २ + १२ =
१ रहा, तो कूर्म का निवास जल से हुआ जिसका कि फल शुभ है।
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यहाँ नीचे तिथि नक्षत्रों के योग से जल में कूर्म निवास सम्बन्धी ज्ञानार्थ एक सारणी दी जा रही है, जिसके सहयोग से शीघ्रतया कूर्म का जल में निवास ज्ञात हो सकेगा।
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१९ भाग ९ शेष
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