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[ मुहूर्तराज
निन्दा को ही अपना कर्त्तव्य मानने वाले अज्ञानियों और मिथ्या दृष्टि लोगों की ओर से शिर काटने जैसे भी अपराधों में जो समभाव से उनके वचन-कंटकों को सह लेता है, परन्तु बदला लेने की तनिक भी कामना नहीं रखता। जो न लोलुप है और न इन्द्रजाली, न मायाचारी है और न चुगलखोर। जो अपनी किसी तरह की प्रशंसा की कामना नहीं रखता और न गृहस्थ सम्बन्धी कार्यों की सराहना करता है। तरुण, बालक, वृद्ध आदि गृहस्थों का कभी तिरस्कार नहीं करता और स्वयं तिरस्कृत होने पर तिरस्कार को बड़ी शान्ति से सह लेता है, उसका प्रतिकार नहीं करता। जो अपने कुल, वंश, जाति, ऐश्वर्य का अभिमान नहीं रखता और जो सदा स्वाध्याय-ध्यान में लीन रहता है। जो 'मा हणो मा हणो' सूत्र को जीवन में उतार कर कार्यरूप में परिणत करता है। जो स्वपर का कल्याण करने और ज्ञान, दर्शन, चरित्र के आध्यात्मिक मार्ग का परिपालन में सदा उद्यत रहता है-संसार में ऐसा पुरुष ही पूज्य और समादरणीय माना जाता है।
-श्री राजेन्द्रसूरि
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