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[ मुहूर्तराज (५) द्वादशांश :
इसमें राशि को १२ भागों में विभक्त करने पर प्रत्येक खण्ड २ अं. एवं ३० कलात्मक आता है इसमें इस प्रकार खण्डानुसार अंशादि जानने चाहिए।
॥ द्वादशांश लग्न सारणी ॥
खण्ड
१०
११
| २५
| ३०
०
त्रिंशांश :
इसको ज्ञात करने की विधि कुछ विचित्र है। इसमें सूर्य चन्द्र को छोड़कर शेष ग्रहों की राशि ही ग्राह्य है। इसमें राशि को ५ भागों में ५/५/८/७/५ इस प्रकार विभक्त करके प्रत्येक भाग में मंगल, शनि, गुरु, बुध एवं शुक्र राशियों को स्थापित किया जाता है जो कि विषम एवं सम होती हैं। गणना क्रम में यह विशेषता है कि यदि लग्नादि विषम राशिगत हों तो क्रमगणना एवं समराशीय हों तो उत्क्रम गणना करके क्रमश तद्गत ग्रहों की विषम एवं समराशि का त्रिंशांश ज्ञात किया जाता है। यथा
॥ त्रिंशांश खण्ड सारणी ॥
खण्ड
२श.
३ गु.
अंश
५ तक
६-१० तक
११-१८
१९–२५
२६-३० तक
विषम राशि
मिथुन
तुला
सम राशि
वृषभ
कन्या
मीन
मकर
वृश्चिक
उपर्युक्त षड्वर्गीय विवेचन से षड्वर्गग्रहस्थिति ज्ञात हो जाती है। तदनुसार होरादिकों की कुण्डलियाँ बन जाती हैं और उनमें गणितागत ग्रहस्थिति भी
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