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मुहूर्तराज ]
[२७९ ___ यहाँ हम षड् वर्ग साधनार्थ सारणियाँ दे रहे हैं। प्रथम दो सारणियों में होरा, द्रेष्काण, सप्तमांश और त्रिंशांश साधन दर्शाया गया है और अन्तिम सारणी में नवमांश तथा द्वादशांश की साधनविधि। इनके आधार पर लग्नादिकों की षड्वर्गीया स्थिति सुगमतया ज्ञात की जा सकती है।
सं. २०३९ शके १९०४ रवौ दक्षिणायने श्रावणे शुक्ले पक्षे तिथौ १२ द्वादश्याम् रविवासरे दि ३३/१० शुभकार्यारम्भस्य इष्टकालः १०/४५ (प्रातः) इष्टघट्यः ११ पलानि ४० एतत्समयमनुसृत्य स्पष्टाः सूर्यादिग्रहाः लग्नञ्च
॥ अथ इष्टकालिका सूर्यादयः स्पष्टाः ग्रहाः सलग्नाः ॥
एक ही जलाशय का जल गौ और सर्प दोनों पीते हैं, परन्तु गौ में वह जल दूध में और सर्प में जहररूप में परिणत हो जाता है इसी प्रकार शास्त्रों का उपदेश भी सुपात्र में जाकर अमृत
और कुपात्र में जाकर जहररूप में परिणमन करता है। विनय, नम्रता, आदर और सभ्यता से ग्रहण किया हुआ शास्त्रोपदेश आत्मकल्याणकारी ही होता है और अविनय, आशातना, कठोरता और असभ्यता से ग्रहण किया हुआ शास्त्रोंपदेश उल्टा आत्मगुणों का घातक हो भवप्रमण कराता है; इसलिये अविनयादि दोषों को छोड़कर ही शास्त्रोपदेश ग्रहण करना चाहिये- तभी आत्मा का वास्तविक उत्थान हो सकेगा।
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-श्री राजेन्द्रसूरि
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