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मुहूर्तराज ] इस समस्त विधि को अब प्रक्रिया रूप में देखेंलग्नसाधन प्रक्रिया
इष्ट स्थान के उदयमान अय. सायना भोग्यांश
मे. २०८ ४ १५ २४ ९
३०३ १९ २१
क.
३४३ ध. ५० १० उदित सिं.→ ३४७ वृ.
क. ३३८ तु. अब
२५१
FREE
३०) ३४७ (११
x
३४
११
x २०
x २०
३४४ १० = ३४० ६० = ५/४० के ४० को रहने २२०
६८०
दिया और ५ को १२९२ में जोड़ा फिर १२९२ + ५ = १२९७ X ३८
X ३८ ४१८
१२७२
को ११० में ६८० को ४१८ में जोड़ने पर और ६० का भाग ०२४ लगाते हुए ऊपर की संख्या में सम्मेलन करने पर रविभोग्य काल १२९२
२३८/४१/२७/४० हुआ। X १० ११०
३४० ___ अब इष्ट घटी ११ प. ४० की पलें बनाने पर ११ x ६० = ६६० + ४० = ७०० प. हुईं इनमें से रविभोग्य काल घटाने पर (७००-10-/0-10)- (२३८/४१/२७/४०) = ४६१/१८/३२/२० शेष रहे १८/३२/२० का अर्धभाग ९/१६/१० अब शेष ४६१ में से उदित लग्नराशि का आगे का उदयमान ३३८ घटाने पर = ४६१-३३८ = १२३ शेष इष्ट पलें रहीं। इसमें से अग्रिम उदयमान संख्या ३३८ नहीं घटती अतः यह भाजक रूप में मानी गई।
ततः १२३ x ३० = ३६९० + ९ = ३६९९ : ३३८ ३३८) ३६९९ (१०
ततः प्रथम उदयमान से इष्टपलों में से न घटने योग्य उदयमान तक गिनने पर तुला लग्न आया इसे १०/५६/४० लग्नफल के ऊपर लिखकर
इसमें से अयनांशों को घटाने पर ३३८) १९१५६(५६
१६९० २२५६ २०२८ १० | २४ | १६
यह लग्नस्पष्ट हुआ २२८
५६ । १९ । ४७ । X ६०
४० | ३७ । ३ । १३६८०
+ १० ३३८) १३६९० (४० १३५२
लग्नस्पष्ट ५ रा. १६ अं. ४७ क.३ वि. १७० ००० १७० शेष
३३८
X६० १९१४०
+१६
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