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प्रवेश में निष्कृष्टार्थ विशेष -
कलश चक्र में शुभफलद नक्षत्र होने पर ही उस नक्षत्र में गृहप्रवेश करना चाहिए और वह प्रवेश नक्षत्र भी गृहप्रवेष्टव्य हो । और जिस दिग्द्वारमुख गृह में प्रवेश करना है उस दिग्द्वार का ही चन्द्रनक्षत्र हो । यथा यदि पूर्वमुखगृह में प्रवेश करना हो तो रोहिणी और मृगशिरा नक्षत्र ही ग्रहण करने चाहिए। दक्षिणाभिमुख गृहप्रवेश में उत्तराफाल्गुनी एवं चित्रा, पश्चिममुख गृहप्रवेशार्थ अनुराधा एवं उत्तराषाढा एवं उत्तराभिमुख भवन में प्रवेश करते समय उत्तराभाद्रपद और रेवती ही ग्राह्य हैं। इसी बात को इस ग्रन्थ में सारणी क्रमांक में स्पष्टतया दर्शा दिया गया है।
वास्तुपूजा
गृहप्रवेश दिन के पूर्व वास्तुपुरुष पूजन (वास्तुपूजा) भी अवश्य ही करना चाहिए इस विषय में मुहूर्त चिन्तामणिकार - (गृ.प्र.प्र. श्लोकांश ३ का )
" मृदुधुवक्षिप्रचरेषु मूलभे वास्त्वर्चनं भूतबलिं च कारयेत्"
अन्वय
मृदुषु (मृगरेवतीचित्रानुराधासु ) ध्रुवेषु (उ. फा., उषा. उ.भा. रोहिणीषु) क्षिप्रेषु (हस्ताश्विनीपुष्याभिजित्सु) चरेषु (स्वातीपुनर्वसुश्रवणधनिष्ठा शतभिषक् नक्षत्रेषु) मूलभे (मूले च नक्षत्रे) एषु नक्षत्रेषु वास्त्वर्चनम् (वास्तुपुरुषपूजनम्० भूतबलिम् (काक कीटपतंगादि जीवेभ्यः बलिम् भोज्यद्रव्यम्दानम् ) कारयेत्।
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अर्थ मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, उ. फा., उषा, उ, भा., रोहिणी, हस्त, अश्विनी, पुष्य अभिजित्, स्वाती, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, शततारा और मूल इन नक्षत्रों में से किसी भी नक्षत्र में वास्तुपुरुष पूजन तथा भूतबलि का विधिवत् विधान करके ततः भवन में पूर्वोक्त प्रकार से गीत वादित्र साज-सज्जा समेत गृहपति को प्रवेश करना चाहिए ।
[ मुहूर्तराज
भिन्न-भिन्न पद्धतियों में भिन्न-भिन्न प्रकार से वास्तुपूजा दर्शाती गई है अतः जिज्ञासु जनों को एवं वास्तुपूजा चिकीर्षुजनों को तत्तद् ग्रन्थों से एतदर्थ अवलोकन कर लेना चाहिए ।
कुछ एक आचार्य प्रवेश के पहले दिन ही वास्तुपूजा का निर्देश करते हैं इसकी पुष्टि में नारद मत" विधाय पूर्वदिवसे वास्तुपूजा बलिक्रियाम्”
एवं श्रीपति ने भी -
अथ प्रवेशो नवमन्दिरस्य यात्रानिवृत्तौ अथ भूपतीनाम् । सौम्यायने पूर्वदिने विधाय वास्त्वर्चनं भूतबलिं च सम्यक् ॥ निर्माणे मन्दिराणां च प्रवेश त्रिविधेऽपि वा ।
वसिष्ठ भी
“वास्तुपूजा प्रकर्तव्या” कहकर वास्तुपूजा पर बल देते हैं ।
इस गृहप्रवेश प्रकरण में त्रिविध गृहप्रवेश के सम्बन्ध में जो अयनादि सम्बन्ध विविध विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है उन्हीं बिन्दुओं को संक्षेप में एवं एकनिष्ठ समझने के लिए नीचे दो सारणियाँ दी जा रही हैं, जिनके द्वारा सम्यक्तया प्रवेश के ग्राह्य अयनमासनक्षत्रादि
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