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मुहूर्तराज ]
[२५७ अर्थ - और यदि प्रथम, चतुर्थ, पञ्चम, सप्तम और नवम स्थान में सूर्य हो और इन स्थानों में (१,४,५,७,९) एवं दशम स्थान में मंगल और शनि हो तो ऐसी वेला में प्रतिष्ठा करने पर देवालय का नाश हो जाता है, वह देवसदन भग्न हो जाता है। __अब समस्त शुभ कृत्यों में शुभग्रहों की स्थिति को फल सहित बतलाते हैं देखिए आरं.सि. कार के शब्दों में ही
सौम्यवाक्पति शुक्राणां यः एकोऽपि बलोत्कटः ।
क्रूरैरयुक्तः केन्द्रस्थः सद्योऽरिष्टं पिनिष्टि सः ॥ अन्वय - सौम्यवाक्यपतिशुक्राणां यः एकोऽपि बलोत्कटः क्रूरैः (क्रूरग्रहैः) अयुक्तः (विहीनः) न सहस्थितः क्रूरेणेत्यर्थ। तथैव केन्द्रस्थः (१,४,७,१०) एषु स्थानेषु स्थितः सः इत्थम्भूतेः बलोत्कटः (बलेन उत्कृष्टः) सद्य त्वरितं (शीघ्रम्) अरिष्टम् (आधिव्याध्यादि) पिनष्टि (चूरयति, चूर्णीकरोति)
अर्थ - बुध, गुरु एवं शुक्र इन तीनों में यदि एक भी स्वमित्रोच्चराशिस्थितिजन्य बल से उत्कृष्ट हो, क्रूर ग्रहों से युक्त न हो और केन्द्रस्थान में हो वह तत्काल अरिष्ट का नाश करता है और मंगलकारी बनता है। ___ यहाँ ग्रहों की बलवत्ता एवं बलहीनता की जो चर्चा की गई है उससे यह तात्पर्य है कि ग्रहों का विंशधा (बीस प्रकार का) बल होता है यथा (आ.सि.) ग्रह बलवत्ता
स्व१ मित्र झ३ च्च४ मार्गस्थ५ स्व६ मित्रवर्गगो७ दितः८ ॥ जयी९ चोत्तरचारी१० सुहृत्११ सौम्यावलोकितः१२ ॥ त्रिकोणायगतो१३ लग्नात्१४ हर्षी१५-१७ वर्गोत्तमांशगः१८ । मुथुशिलं१९ मूशरिफं२० यदि सौम्यै ग्रहैः सह ॥ सर्वयोगे भवेदेवं बलानां विंशतिम्रो ।
यावबलयुताः खेटास्तावद् विंशोपका फलम् ॥ अर्थ - यदि ग्रहस्वराशिगत हो, मित्रराशिगत हो स्वनक्षत्रस्थ हो, उच्चराशिगत हो, मार्गी हो, अपने वर्ग में स्थित हो, मित्र के वर्ग में स्थित हो, उदय पाया हुआ हो, जयी हो, उत्तरचारी हो, मित्रग्रह से दृष्ट हो, सौम्यग्रह से दृष्ट हो, त्रिकोण स्थानों में स्थित हो, लग्न से ग्यारहवें स्थान में हो, त्रिधा हर्षी हो, वर्गोत्तम के नवांशक में स्थित हो, सौम्य ग्रहों के साथ मुथुशिल और मूशरिफ योग कारक हो तो वह ग्रह बलोत्कृष्ट कहलाता है। उपर्युक्त स्थिति से विपरीत स्थित ग्रह बलहीन कहा जाता है। इस प्रकार की (ऊपर लिखे २० प्रकार की) यदि ग्रहस्थिति हो तो उस ग्रह का बीस विंशोपक फल होता है जितने ग्रह बलवान् हो उतने विंशोपका (विश्वा) फल जानना चाहिए। ___ यहाँ जो सौम्यग्रहों के साथ मुथुशिल आदि योगों की बात जो कही गई है उससे यह शंका होती है कि “मुथुशिल” और “मूशरिफ" योग क्या वस्तु है अर्थात् कैसे है। तो इसका समाधान करने के लिए यहाँ इन दोनों योगों को समझाया जाता है।
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