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[ मुहूर्तराज "भाग्य करे सो होय" यह लोकोक्ति सोलह आना सत्य है। मनुष्य अपने भाग्य बल से असंभव को संभव, कठिन को सहज दुर्लभ को सलभ और अनल्लंघनीय को लंघनीय बना लेता है। यह सब तब ही हो सकता है जब भाग्य प्रबल होता है। भाग्य के प्रतिकूल हो जाने पर मनुष्य में कुछ भी करने का सामर्थ्य नहीं रहता। भाग्य को बलवान बनाये रखने का दुनिया में धर्म के सिवाय और कोई उपाय नहीं है। धर्म एक ऐसी वस्तु है जिस से चिंतामणिरत्न के समान सभी आशाएँ क्षणभर में सफल होती है। प्रभु-प्रतिमा के दर्शन करना, उसकी सविधि पूजा करना, तप, जप, प्रभावना, सद्भावना, परोपकार और दयालुता आदि सकृत कर्म धर्म के अङ्ग है। इनका आत्म विश्वास पूर्वक समाचरण करते रहने से भाग्य की प्रबलता होती है। अतः मानव को अपनी प्रगति के लिये धर्माङ्गों को सदा अपनाते रहना चाहिये।
-श्री राजेन्द्रसूरि
मनुष्य मानवता रखकर ही मनुष्य है। मानवता में सभी धर्म, सिद्धान्त, सुविचार, कर्तव्य, सुक्रिया आ जाते हैं। मानवता, सत्संग, शास्त्राभ्यास एवं सुसंयोगों से ही आती और बढ़ती है। मनुष्य हो तो
मानव बनो। बस धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष सब प्राप्त हो
सकेंगे।
- श्री राजेन्द्रसुरि
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