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मुहूर्तराज ]
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- अष्टमाङ्गलिक नाम तालिका
दर्पण
- अथ ग्रन्थप्रशस्तिः
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श्रीमद् राजेन्द्र सुरेनिखिलगुरुगुणख्यातमूर्तेः कृपाभिः , __ ज्योतिर्ग्रन्थाब्धिमध्यान्मणिरिव विहितश्चैष मौहूर्तराजः । षट् सप्तांकेन्दु वर्षे जगति गुणवरे वागराख्ये पुरे श्री___ पंचम्यां ज्ञानदात्र्यां मुनिविजययुतैः श्री गुलाबैः प्रमोदैः ॥ शश्वच्छास्त्रविचारमग्नसुधियस्तुल्यस्य वाचस्पतेः , __तत्पद्दे धन चन्द्रसूरि सुगुरोः राज्येऽकरोत् संग्रहम् ॥ दैवज्ञोऽध्ययनेन चास्य सुकृती स्याद् विश्वसत्कीर्तिभाक् ,
काप्यास्मिन् यदशुद्धिज किल भवेत्तच्छोधनीयं बुधैः ॥
अर्थ - समस्त गुरुयोग्य गुणों से प्रख्यातमूर्ति श्रीमद् राजेन्द्र सूरीश्वरजी की असीम कृपा से ज्योतिग्रन्थरूपी महासागर के मध्य से मणि की भांति इस “मौहूर्तराज” ग्रन्थ को (उद्धृत किया है।) अति प्रमोद पूर्वक मुनि विजयों से युक्त श्री गुलाब विजय जी ने वि.सं. १९७६ कार्तिक शुक्ला पञ्चमी (ज्ञानदात्री तिथि को) के दिन वागरानगर में संकलित किया।
निरन्तरशास्त्र विचारणा में मग्न बुद्धिशाली बृहस्पति के तुल्य श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी के पट्ट पर विराजित श्रीमद् विजय धनचन्द्र सूरीश्वरजी श्रेष्ठ गुरुवर के शासनकाल में यह संग्रह किया गया है। दैवज्ञ इसके अध्ययन से कृतार्थ एवं विश्व में सत्कीर्तिशाली होंगे। यह इस ग्रन्थ में कोई त्रुटि (अशुद्धत्यादि) रह गई हो तो विद्वानों को उसमें सुधार कर लेना चाहिए।
इतिश्री सौधर्मबृहत्तपागच्छीय श्री विजयराजेन्द्रसूरीश्वरान्तेवासि मुनि श्री गुलाबविजयसंगृहीते ‘मुहूर्तराजे' पञ्चमं गृहप्रवेश
प्रकरणम् समाप्तिमगमत्
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