________________
२५४ ]
इन सकल कुण्डलियों में राहु का विचार शनि की भाँति करना चाहिए ।
श्रीपूर्णभद्र के इस प्रकार की ग्रहसंस्था जो फल सहित दर्शायी गई है उसे समझने के लिए नीचे एक सारणी दी जा रही है।
क्र.
सं.
१
२
३
४
५
६
9
८
९
१०
११
१२
ग्रह →
स्थान ↓
लग्न
धनभाव
बन्धुभाव
मातृभाव
पुत्रभाव
शत्रुभाव
स्त्रीभाव
आयुष्य
भाव
धर्म
भाव
कर्म
भाव
लाभ
भाव
व्यय
भाव
Jain Education International
प्रतिष्ठा कुण्डली में भावस्थित्यनुसार ग्रहों की शुभाशुभता बोध सारणी सूर्य
फल J
प्रासाद
भंग
धननाश
धनप्राप्ति
स्वजनों
में पीड़ा
पुत्रपीडा
शत्रुनाश
स्त्रीमरण
प्रतिष्ठा
कर्तृमरण
धर्मनाश
सौख्य
चन्द्र
फल J
प्रासाद
कनाश
धनप्राप्ति
सौभाग्य
कलह
मनो
मालिन्त
दैन्यभाव
शत्रुओं की विजय
सुख का
अभाव
मरण
मंगल
फल ↓
राज्य सम्मान
प्रासाद
दाह
प्रासाद
भंग
भूमि से
लाभ
स्त्रीनाश
स्वजनों
पर संकट
विघ्नपीड़ा सामाजिक
उपेक्षा
रोग
पुत्र की शस्त्र से
मृत्यु
रिपुनाश
रोग
ऋद्धिवृद्धि मन का
स्वास्थ्य
शोक
धनहानि हानि
धनप्राप्ति
बुध
फल ↓
प्रासाद की चिर
महा
धनलाभ
शत्रुनाश
सौख्य
पुत्रलाभ
शत्रुनाश
श्रेष्ठ- स्त्री
प्राप्ति
आचार्य
मरण
धनलाभ
कार्यों में सिद्धि
आभूषण का लाभ
धनलाभ
गुरु
फल ↓
कीर्तिवृद्धि
जनधन
वृद्धि
सौख्य
शत्रुनाश
पुत्रसौख्य
स्वजनों
से शोक
प्रतिष्ठाकारक गुरु
का मरण
धनप्राप्ति
जन धन
लाभ
ऋद्धिलाभ
भयंकर
कष्ट
शुक्र
फल J
For Private & Personal Use Only
पुत्र-प्राप्ति
स्त्री-सौख्य पर चैत्य
का नाश
प्रतिमा
कार्यसिद्धि पूजा में
अवरोध
धन
लाभ
सम्मान
प्राप्ति
स्त्री का
सुख
अपशय
प्रासाद
तेजोवृद्धि एवं बन्धु विनाश
विविध कष्ट
शनि
फल ↓
समाज में
सम्मान
पूजा
प्रतिष्ठा
कर्तनाश
समाज में
सम्मान
पूजा
अधिक धन
वैभव
पुत्र पर
संकट
रोग निवारण
सम्बन्धी
जन एवं स्त्रीमरण
किसी गोत्रीय बन्धु
[ मुहूर्तराज
पाप में
प्रवृत्ति
समाज में कार्य हानि
सम्मान
पूजा
समाज में स्त्री, सुवर्ण
सम्मान
पूजा
सतत रुग्णता
राह+केतु
फल↓
शनिवत्
शनिवत्
शनिवत्
शनिवत्
शनिवत्
शनिवत्
शनिवत्
शनिवत्
शनिवत्
शनिवत्
एव रत्नादि शनिवत्
का लाभ
शनिवत्
www.jainelibrary.org