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मुहूर्तराज ]
[२२७ प्रवेश में शुभाशुभ लग्न एवं नवांश
प्रवेश में मेष मकर तुला एवं कर्क लग्न एवं अन्य स्थिर एवं द्विस्वभाव में भी चर (मेष, कर्क, तुला और मकर) के नवांश भी त्याज्य हैं। इस विषय में पुनः वसिष्ठ
"पञ्चांगसंशुद्धदिने निशेशताराबले चाष्टकवर्गयुक्ते ।
सौम्ये स्थिरेभे शुभदृष्टियुक्ते लग्नेऽथवा द्वयङ्गगृहे विलग्ने ॥" अर्थात्- पञ्चांङ्गशुद्धि, दिन, चन्द्र या ताराबल रहते, अष्टक वर्ग की बलवत्ता में, सौम्यग्रहीय शुभग्रहदृष्टियुक्त स्थिर लग्न में, अथवा द्विस्वभावराशि के लग्न में गृहप्रवेश शुभद है। राजमार्तण्डकार के मत से कुछ विशेष
"निन्दिता अपि शुभांशसमेताः तौलिमेषमकराः सकुलीराः ।
कर्तृभोपचयगाश्च विलग्ने, राशयः शुभफलाय भवन्ति ॥" यह कहकर राजमार्तण्ड में यह निर्देश दिया गया है कि यदि शुभग्रहदृष्टियुक्त, शुभग्रहीय, स्थिर लग्नों अथवा द्विस्वभावराशि लग्नों में से कुछ न कुछ दोष हों तो मेष, कर्क, तुला और वृश्चिक राशि लग्नों में भी उनके शुभग्रहीय स्थिर एवं द्विस्वभाव व राशि नवांशों को ग्रहण करके गृहप्रवेश करना भी शुभ ही है।
कर्क लग्न में तुला नवांश तो सर्वथा त्याज्य ही माना गया है।
क्षीणचन्द्र की स्थिति भी यदि षष्ठ अष्टम या द्वादश स्थान में हो और उस पर पापग्रहों की दृष्टि हो अथवा पापग्रह से युत हो तो ऐसी अवस्था में किया गया गृहप्रवेश गृहपति की पत्नी का विनाश १ वर्ष के अन्दर-अन्दर करता है और यदि वह क्षीणचन्द्र ६, ८ या १२ वें स्थित होकर सौम्यग्रहों से दृष्ट हो तीन वर्षों की अवधि में गृहपति की पत्नी के लिए घातक ही है। अतः क्षीणचन्द्र की इस प्रकार की स्थिति में कदापि प्रवेश नहीं करना चाहिए।
यात्रानिवृत्ति पर जो गृहप्रवेश किया जाता है जिसे की सुपूर्वप्रवेश कहते हैं उसमें विशेष ध्यातव्य है
जिस मास में अथवा जिस दिन को यात्रा की गई है उस मास से नवममास में अथवा उस दिन से नवम दिन में गृहप्रवेश करना निषिद्ध है। जैसा कि गुरुमत
निर्गमान्नवमे मासि प्रवेशो नैव शोभनः ।
नवमे दिवसे चैव प्रवेशं नैव कारयेत् ॥ प्रवेश के समय सूर्य की वामस्थिति भी होनी चाहिए। इसी को वामार्क कहते है देखिए वामार्क का
स्वरूप
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