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मुहूर्तराज ]
[२२३ नारद भी
वस्विज्यान्त्येषु वरुणत्वाष्ट्रमित्रास्थिरोडुषु ।
शुभः प्रवेशो देवेज्यशुक्रयोदृश्यमानयोः ॥ अर्थात् - धनिष्ठा, पुष्य, रेवती, शतभिषक, चित्रा, अनुराधा, तीनों उत्तरा इन नक्षत्रों में तथा गुरु एवं शुक्र की उदयावस्था में त्रिविध प्रवेश शुभद है। __ वसिष्ठ और नारद के उपर्युक्त कथनों में पुष्य धनिष्ठा एवं शतभिषा नक्षत्रों का ग्रहण किया गया है किन्तु इन नक्षत्रों को जीर्णगृहप्रवेश में ही ग्रहण करना चाहिए न कि नूतनगृह में प्रवेश के लिए। जीर्णगृहप्रवेश-(मु.चि.गृ.प्र. श्लो. २)
जीर्णेगृहेऽग्न्यादिभयान्नवेऽपि मार्गोर्जयोः श्रावणिकेऽपि सत्स्यात् ।
वेशोऽम्बुपेज्यानिलवासवेषु नावश्यमस्तादिविचारणाऽत्र ॥ अन्वय :- जीर्णे (पुरातने) अन्यकृते निर्मिते इत्याशयः अथवा अग्न्यादिभयात् अग्निनादग्धे जलौधेन प्लावितेऽतः भग्ने पुनस्तत्रैव भूभ्यां उत्थापिते गृहे प्राक्पद्योक्तमासातिरिक्तम् मार्गोर्जयोः (मार्गशीर्षकार्तिकयो:) श्रावणिकेऽपि श्रावणमासेऽपि अम्बुपेज्यानिलवासवेषु (शततारापुष्यस्वातीधनिष्ठासु नक्षत्रेषु) वेश: (प्रवेश:) सत् स्यात् (शुभदो भवेत्) अत्र (एवं प्रकारे जीणे अथवाऽग्निजलादिभयेन नष्टे पुनरुत्थापिते गृह प्रवेशसमये) अस्तादि विचारणा (शुक्रगुर्वस्तबाल्यवृद्धत्वसिंहस्थगुरुमकरस्थगुरुलुप्तसंवत्सरादिदोषाणाम् विचारणा न कर्तका। एते दोषाः सन्तु न वा तथापि उक्तप्रकारयो गृहयोः प्रवेश: कार्यः। परन्तु तत्रापि पञ्चाशुद्धिस्तु विचार्या तथा च विहित जीर्णादिगृहप्रवेश नक्षत्रैः सद्भिखे प्रवेश: करणीयः।
अर्थ :- किसी अन्य निमित्त निर्मित गृह, अग्निदाह व जलप्रवाहादि से भग्न या राजकोप से पातित और पुन: उसी भूमि पर उत्थापित घरों में प्रवेशार्थ नूतनगृह प्रवेश में कथित मासों के अतिरिक्त मार्गशीर्ष कार्तिक एवं श्रावण मास भी शुभ हैं।
शतभिषक्, पुष्य, स्वाती एवं धनिष्ठा नक्षत्रों में भी उक्त गृहों में प्रवेश शुभ है। अर्थात् नूतनगृहप्रवेशार्थ विहित नक्षत्र तो शुभ है ही।
इस प्रकार के प्रवेश में शुक्रास्त, गुर्वस्त, बालत्व, वृद्धत्व, सिंहमकरस्थगुरुलुप्तसंवत्सरादि दोषों का विचार आवश्यक नहीं, अर्थात् ये कालदोष हों या न हों तो भी प्रवेश किया जा सकता है। परन्तु पञ्चाङ्गशुद्धि अवश्यमेव देखनी चाहिए और उसे ध्यान में रखकर उक्त विहित नक्षत्रों में ही प्रवेश करना चाहिए। प्रवेश में तिथि एवं वार निर्णय-(श्रीपति)
रिक्तातिथि सुतभानुवारौ, निन्द्याश्च योगाः परिवर्जनीयाः । मेषः कुलीरो मकरस्तुला च त्याज्याः प्रवेशे हि तथा तंदशाः ॥
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