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मुहूर्तराज ]
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अन्वय - स्वोच्चे (मीनस्थे) शुक्रे लग्नगे (लग्नस्थिते ) गृहं चिरं लक्ष्म्या युक्तं भवति । अथवा गुरौ स्वोच्चे (कर्कराशिस्थे) वेश्मगथेऽपि गृहं चिरं लक्ष्मीयुक्तं स्यात् तथैव स्वोच्चे ( तुलास्थिते ) शनौ लाभगे ( एकादशस्थान) गतेऽपि प्रारब्धं गृहं लक्ष्म्या युक्तम् भवेत् ।
अर्थ- मीन राशि का शुक्र यदि लग्न में हो, अथवा कर्क का गुरु यदि चतुर्थ भाव में हो अथवा तुला का शनि यदि एकादश स्थान में हो तो ऐसे ३ योगों में प्रारम्भ किया गया घर बहुत समय तक हर प्रकार से लक्ष्मी युक्त होता है ।
नक्षत्र एवं वारयोग से प्रारब्ध शुभगृह के दो योग - (मु.चि.वा.प्र. श्लो २६ )
सजीवै:
अन्वय
पुष्यध्रुवेन्दुहरिसर्पजलैः (पुष्योत्तरात्रयरोहिणीमृगशिरः श्रवणाश्लेषा पूर्वाषाढानक्षत्रैः) सजीवैः (गुरुयुक्तैः ) तद्वासरेण च कृतं गृहं सुतराज्यदंस्यात् (सुतान् ददाति राज्यं च ददाति ) तथा च द्वीशाश्वितक्षिवसु पाशिशिवैः (विशाखाश्विनीचित्राधनिष्ठाशतताराद्रनिक्षत्रैः ) सशुक्रः शुक्रयुक्तैः सितस्य च वारे (शुक्रवारे) कृतं गृहं धनधान्यदं स्यात्।
पुष्यध्रुवेन्दुहरिसर्पजलैः
"
तद्वासरेण च कृतं सुतराज्यदं स्यात् । द्वीशाश्वितक्षिवसुपाशिशिवैः सशुक्रैः
वारे सितस्य च गृहं धनधान्यदं स्यात् ॥
अर्थ - पुष्य, उत्तरात्रय, मृगशिर, श्रवण, आश्लेषा और पूर्वाषाढा इन नक्षत्रों में किसी पर गुरु हो, उस नक्षत्र के दिन और साथ में गुरुवार भी हो ऐसे योग में प्रारब्ध गृह पुत्र एवं राज्यप्रद होता है।
तथा च विशाखा, अश्विनी, चित्रा, धनिष्ठा शततारा और आर्द्रा इन नक्षत्रों में किसी पर भी शुक्र हो, इनमें किसी भी नक्षत्र के दिन और उस दिन शुक्रवार भी हो, ऐसे योग में प्रारम्भ किया गया घर धन और धान्य से परिपूर्ण रहता है।
इसी विषय में वसिष्ठ
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अर्थ
नारद मत में कुछ विशेष
इज्योत्तरात्रयाहीन्दुविष्णुधातृजलोडुषु
1
गुरुणा सहितेष्वेषु कृतं गेहम् श्रिया युतम् ॥
व्याख्या त ही है।
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श्रवणाषाढयोश्चैव रोहिण्यां चोत्तरात्रये । गुरुवारे कृतं वेश्म राजयोग्यमिहोच्यते ॥
अर्थात् - श्रवण पूर्वाषाढ़ा रोहिणी और तीनों उत्तरा जबकि उस दिन गुरुवार हो ऐसे योग में प्रारब्ध गृह राजा के निवास योग्य होता है और उस घर में उत्पन्न पुत्र को राज्य प्राप्ति होती है । यथा “ तद्गृहे जातपुत्रस्य राज्यं भवति निश्चयात् " (नारद)
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