________________
मुहूर्तराज ]
हारम्भ में लग्नबल - ( श्रीपति)
कर्मस्थितैर्वीर्ययुतैश्य पापैस्त्रिषष्ठायगतैः वदन्ति निर्माणमिहाष्टमस्थः
द्वय स्थिरे वा भवने विलग्ने, सौभ्यग्रहैर्युक्त निरीक्षिते वा । सौम्यैर्निमाणमाहुर्भवनस्य सन्तः ॥ त्रिकोणकेन्द्राश्रितैः साधुभिरालयस्य । क्रूरस्तु कतुर्मरणं करोति ॥
अन्यय
द्वयङ्गे (द्विस्वभावराशिषु) मिथुन कन्या धनु मीनेषु अथवा स्थिरे (सिंह वृष वृश्चिक कुंभेषु) भवने राशौ विलग्ने (लग्नगते ) सौम्यग्रहैः युक्तनिरीक्षिते वा (सौम्यग्रहाः लग्नेऽथवा तेषां दृष्टि लग्ने) वीर्ययुतैः बलयुक्तैः सौम्येः (शुभैग्रहैः) कर्मस्थिते (दशमभावगते ) सन्तः ( दैवज्ञाः) भवनस्य निर्माणमाहुः ।
-
पापैः (पापग्रहैः) त्रिषष्ठायगतैः (तृतीयषष्ठैकादशस्थानस्थितैः) साधुभिः (शुभग्रहैः) केन्द्र त्रिकोणाश्रितैः (१, ४, ७, १०, ९, ५ स्थानस्थितैः ) आलयस्य निर्माणं सन्तः वदन्ति । गृहारम्भकाल - कुण्डल्याम् अष्टमस्थः क्रूरः ( कश्चिदपि पापग्रहः ) कर्तुः (गृहस्वामिनः) मरणं करोति ।
अर्थ - द्विस्वभाव ( ३, ६, ९, १२ राशियाँ) अथवा स्थिरसंज्ञक (२, ५, ८, ११) राशियाँ लग्न में हों इन्हें शुभग्रह देखते हों या इनके साथ शुभग्रह भी लग्न हों और बलवान् शुभग्रह दशमस्थान में हों ऐसे समय में भवननिर्माण करना चाहिए ऐसा ज्योतिर्विदों का मत है ।
तथा च
तथा च पापग्रह ३, ६ एवं ११ वें स्थान में हों सौम्यग्रह १, ४, ७, १०, ९ और ५ वें स्थान में हों उस समय भवन निर्माण करना शुभ है ऐसा आचार्यों का मत है। गेहारम्भ लग्नकुण्डली में अष्टमस्थान में स्थित क्रूर ग्रह गृहपति का मरणकारी है ।
गेहारम्भ लग्न के विषय में- ( आ.सि.)
-
अर्थ चर राशि से अन्यत्र राशि अर्थात् स्थिर या द्विस्वभाव राशि का लग्न हो तथा चन्द्र भी चर से अन्यत्र (स्थिर या द्विस्वभाव में) स्थित हो, तथा ये दोनों लग्न और चन्द्र शुभग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट हों, तथा सौम्यग्रह दशम स्थान में हो, उस समय गेहारम्भ शुभकारक होता है ।
[ २०५
चरादन्यत्र लग्नेन्द्वोः शुभैः संयुक्तदृष्टयों । कर्मस्थितेषु सौम्येषु गेहारंभः प्रशस्यते ॥
Jain Education International
केन्द्रत्रिकोणगैः सौम्येः क्रूरैः शत्रुत्रिलाभगैः । शुभाय भवनारम्भोऽष्टमः क्रूरस्तु मृत्यवे ॥
अर्थ - व्याख्यान है।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org