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[ मुहूर्तराज द्वारशाखावरोपण में शुभाशुभ तिथियाँ-(ज्यो. निब.)
पंचमी धनदा चैव, मुनिनन्दवसौ शुभम् । प्रतिपत्सु न कर्तव्यम्, कृते दुःखमवाप्नुयात् ॥ द्वितीयायां द्रव्यहानिः पशुपुत्रविनाशनम् । तृतीया रोगदा ज्ञेया, चतुर्थी भंगकारिणी ॥ कुलक्षयं तथा षष्ठी दशमी धननाशिनी ।
विरोधकर्व्यमा पूर्णा न स्याच्छाखावरोपणम् ॥ श्लोकार्थों को तालिका में समझिए
-द्वारशाखावरोपण में शुभाशुभ तिथि फलसहित तालिका| तिथियाँ | १ | २ | ३ || ५ | ६ | || ९ १० | पूर्णिमा | अमावस्या |
द्वारशाखावरोपण में लग्नशुद्धि-(मु.प्र.)
केन्द्र त्रिकोणेषु शुभैः पापैन्यायारिगैस्तथा ।
धूनाम्बरे शुद्धियुते द्वारशाखावरोपणम् ॥ अन्वय :- (द्वारशाखावरोपणलग्नकुण्डल्याम्) केन्द्रत्रिकोणेषु (१,४,७,१०,५ तथा ९ एषुस्थानेषु) शुभैः (शुभग्रहै: स्थितैः सद्भिः) पापैः (पापग्रहै:) व्यायारिगैः (तृतीयैकादशषष्ठस्थानगतैः सद्भिः) तथा यूनाम्बरे (सप्तदशमस्थानयोः) शुद्धियुते (शुभापापग्रहरहितयोः सतोः) द्वारशाखावरोपणम् शुभम्।
अर्थ :- जिस दिन जिस समय में द्वारशाखा बैठानी हो उस समय की लग्नकुण्डली में शुभग्रह केन्द्र (१.४.७.१०) और त्रिकोण (९,५) में होने चाहिएँ, तथा अशुभग्रहों की स्थिति तृतीय षष्ठ और एकादश स्थान में हो एवं सप्तम तथा दशमस्थान में शुभ या पाप कोई भी ग्रह न हो। ऐसे लग्न में द्वारशाखा बैठानी शुभावह होती है। द्वारशाखावरोपण में राहुविचार भी आवश्यक होता है एतदर्थ मुहूर्तदीपककार लिखते हैं
................ चापादगुः" सत्यम् पूर्वदिशः क्रमेण तमसि द्वारं न सत्सम्मुखे ॥ अर्थात् - धनु संक्रान्ति से तीन-तीन सक्रान्तिपर्यंन्त राहु निवास दक्षिणावर्त क्रम से पूर्व दक्षिण पश्चिम एवं उत्तर दिशा में रहता है अत: दिशा में राहु हो उसे सामने रखकर अर्थात् उस दिशा में द्वार नहीं करना चाहिए।
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