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[ मुहूर्तराज
ग्रन्थान्तर में द्वार चक्र-(ज्योतिर्निबन्धे)
द्वारचक्रं प्रवक्ष्यामि भाषितं विश्वकर्मणा । सूर्यभाद् भचतुष्कं तु शिरस्योपरि विन्यसेत् ॥ द्वे द्वे कोणे प्रदातव्ये, शाखायुग्मे द्वयम् द्वयम् । अधश्च त्रीणिदेयानि वेदा मध्ये प्रतिष्ठिताः । राज्यं स्यादूर्ध्वनक्षत्रे कोणेषूद्वासनं भवेत् । शाखायां लभते लक्ष्मीमधश्चैव मृतिर्भवेत् । मध्यमेषु भवेत्सौख्यं चिन्तनीयं सदा बुधैः ॥
अर्थ :- “सूर्यक्षत्”ि श्लोक के तुल्य ही है।
इस प्रकार विस्तारपूर्वक द्वारचक्र के विषय में चर्चा के पश्चात् जिन-जिन चन्द्रनक्षत्रों में द्वारशाखावरोपण करना चाहिए उन्हें बतला रहे हैं
द्वारशाखास्थापन नक्षत्र-(मु.प्र.)
पुष्यश्रुतिमृगे हस्ते चाश्विन्युत्तरयोर्वरम् । स्वातौ पूष्णि च रोहिण्यां द्वारशाखावरोपणम्
अर्थ :- पुष्य, स्वाती, मृग, श्रवण, हस्त, अश्विनी, तीनों उत्तरा, रेवती और रोहिणी इन नक्षत्रों में द्वारशाखाएँ बैठानी चाहिएँ।।
उपर्युक्त नक्षत्रों में से किसी भी नक्षत्र के दिन द्वारशाखा बैठाना उपयुक्त है परन्तु द्वारागों का विचार कर के ही उस नक्षत्र में द्वारशाखा अवरोपण करना चाहिए। जैसे कि अश्विनी नक्षत्र द्वारस्थापना के लिए ग्राह्य नक्षत्र है। यदि सूर्य भी अश्विनी नक्षत्र पर हो तो यह अश्विनी नक्षत्र सूर्य नक्षत्र से प्रथम क्रमांक का होने ये शुभ है पर यदि सूर्य महानक्षत्र शतभिषक् हो तो अश्विनी नक्षत्र शतभिषा से गणना करने पर पाँचवें क्रमांक पर आने से उसकी स्थिति द्वारकोण पर होने से शुभावह नहीं।
द्वारशाखावरोपण निमित्त जो दो नक्षत्र ग्राह्य है, वे भी सूर्यमहानक्षत्र से गणितवशात् द्वार के कोणों एवं देहली में स्थित होने पर अग्राह्य हो जाते हैं, केवल मस्तक, शाखाओं और मध्यावकाश में स्थित होने पर ही ग्राह्य होते हैं। एतद् ज्ञानार्थ भी हम नीचे एक सारणी देंगे जिससे इन द्वारशाखा नक्षत्रों की सूर्यनक्षत्रवशात् ग्राह्याग्राह्यता भलीभाँति ज्ञात की जा सकेगी।
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