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[ मुहूर्तराज प्रतिपदा गृहारम्भ में दारिद्रय, चतुर्थी धनहानि, अष्टमी उचाट, नवमी शस्त्र घात, अमावस राजभय और चतुदर्शी स्त्री विनाश करती है। गेहारम्भ में पश्चाङ्गशुद्धि - (मु.चि.वा.प्र. श्लो. १८ वाँ)
भौमार्करिक्तामायूने चरोने च विपञ्चके ।
व्यष्टान्त्यस्थैः शुभैगेहारम्भस्त्र्यायारिगैः खलैः ॥ अन्वय - भौमार्करिक्तामाने (भौमसूर्यवाररिक्तामावास्याप्रतिपद्रहिते) तथा चरोने (चरराशीन्वर्जयित्वा) विपञ्चके (धनिष्ठोत्तरार्धशतभिषक्पूर्वाभाद्रदोत्तराभाद्रपदारेवतीनक्षत्राभावे) शुभैः शुभग्रहै: व्यष्टान्त्यस्थैः (अष्टमद्वादशभावौ वर्जयित्वा न्यत्र स्थितैः) खलैः पापग्रहै: व्यायारिगैः (तृतीयैकादशषष्ठभावगतैः) एवं विधे काले गेहारम्भः कर्तव्यः ।
अर्थ - मंगल, रवि वारों को, चरराशियों (मेष, कर्क, तुला, मकर) को पञ्चक को (धनिष्ठोत्तरार्ध, शत., पू.भा., उ.भा. और रेवती) त्याग कर अन्य वारों, राशियों, नक्षत्रों में गेहनिर्माण शुभद है। तथैव विवाहप्रकरणोक्त बाणपञ्चकों का भी त्याग करना चाहिए तथा च गेहनिर्माणकाल की कुण्डली में शुभग्रह अष्टम एवं द्वादश स्थान में न हों तथा पापग्रह तृतीय एकादश और षष्ठस्थान में हों ऐसे समय में गेहारम्भ करना चाहिए। गेहारम्भ में त्याज्य एवं ग्राह्यवार - (मु.प्र.)
आदित्यभौमवास्तु सर्वे वाराः शुभावहाः ।
केचिच्छनि प्रशंसन्ति चौरभीतिस्तु जायते ॥ अर्थ - गेहारम्भ में रवि एवं मंगल को छोड़कर अन्य सभी वार शुभकारी है। कुछ लोग शनि की भी प्रशंसा करते हैं पर शनिवार को गेहारम्भ से उस घर में चोर भय तो बना रहता है। गेहारम्भ के नक्षत्र
त्र्युत्तरेऽपि रोहिण्यां पुष्ये मैत्रे करद्वये ।
धनिष्ठाद्वितये पौष्णे गृहारम्भः प्रशस्यते ॥ अर्थ - तीनों उत्तरा, रोहिणी, पुष्य, अनुराधा, हस्त, चित्रा, धनिष्ठा, शततारका और रेवती इन नक्षत्रों में गेहारम्भ प्रशंसनीय माना गया है। ___ यहाँ यह शंका होती है कि “भौमार्करिक्ता” इस श्लोक में तो पंचक निषिद्ध है और “व्युत्तरे" में केवल पू. भाद्र के अतिरिक्त पंचकीय नक्षत्रों को ग्रहण किया है, तो इसका समाधान है कि ऊपर जो पंचक निषिद्ध किये हैं वह स्तंभादि निर्माण विषयक है जैसा कि माण्डव्य का कथन है-धनिष्ठापञ्चके नैव कुर्यात्स्तम्मसमुच्छ्रयः। सूत्राधारशिलान्यासप्राकारादि समारभेत्॥
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